The mirror of Avyakt stage! | (57th) Avyakt Murli Revision 07-06-70

The mirror of Avyakt stage! | (57th) Avyakt Murli Revision 07-06-70

1. सम्पूर्णता के समीप अर्थात, अव्यक्त भाव द्बारा दूसरों के मन के भावों को भी तुरन्त परख सके… तो हम भी व्यर्थ से परे, एकरस रहेंगे… दर्पण को साफ-स्पष्ट करने लिए चाहिए सरलता-श्रेष्ठता-सहनशीलता… स्मृति-वाणी-कर्म-सम्बन्ध सब प्लेन, तब प्लान-प्रैक्टिकल एक होंगे, प्लेन (एरोप्लेन) समान सफलता मिलेंगी… सफलता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है

2. दिव्य-मूर्त (वा सम्पूर्णता के समीप) अर्थात सबको सम्मान देने वाले, तब ही विश्व सम्मान देगा… औरों के समीप अर्थात उनके संस्कारों के समीप, सदा हाँ जी (तो उनके संस्कार भी सरल हो जाएंगे)

3. हम संकल्प-बोल-कर्म द्बारा लाॅ-मेकर्स है… विधाता याद रहने से विधि-विधान दोनों ठीक रहते, सफलता सहज मिलती… साहस-शक्ति का पेपर भी क्रॉस करना है

4. बंधन होते हुए भी, अपने को ईश्वरीय सेवा के बंधन में बांधने के बल से, बंधन समाप्त होते… सम्पर्क में आने से औरों को भी बचा सकते, आप-समान बना सकते, ऎसी कमाल की सर्विस करनी है

5. व्यक्त भाव से परे, एक सेकण्ड की शक्तिशाली अव्यक्त स्थिति भी लम्बा समय चलती… जिसमें सर्व प्राप्तियां है, मेहनत कम, सफलता अधिक मिलती

6. अव्यक्त-मूर्त बाबा से जो अन्तर है, उसे अन्तर्मुखी हो मिटाना है, संस्कारों को समीप लाना अर्थात समीप बनना… बाप-समान विघ्नों से पार होने, स्नेह में डूब जाना है (अपने को मिटा देना, बाबा से मिलाना)… अपने गुप्त स्नेह-सफलता के संस्कार को प्रत्यक्ष में लाना है, फिर अपने अव्यक्त वा भविष्य रूप को सामने रखना है

7. स्नेह का रिटर्न सहयोग देना है, मास्टर सर्व समर्थ बन… बिन्दु रूप (ब्रेक) सहज करने, शुद्ध संकल्पों में रमण करना है (मोड़ने की शक्ति)… तो बिन्दु रूप सहज हो जाएँगा

सार

तो चलिए आज सारा दिन… अपनी शक्तिशाली अव्यक्त स्थिति के दर्पण को स्पष्ट रख, सदा बाबा के प्यार में डूबे रह… अपनी श्रेष्ठ लाॅ-मेकर्स की स्मृति द्बारा सबको सम्मान देते, सबके संस्कारों के समीप रहते, ईश्वरीय सेवा करते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Seeing our perfect form! | (56th) Avyakt Murli Revision 29-05-70

Seeing our perfect form! | (56th) Avyakt Murli Revision 29-05-70

1. जब सम्पूर्णता के समीप होंगे, तो हमारे आकारी (लाइट का फ़रिश्ता) और भविष्य देव-रूप दोनों स्पष्ट सामने दिखेंगे… ऎसे अनुभव होगा कि अभी-अभी पुराना वस्त्र उतारा, और अभी यह बनें… फिर औरों को भी अनुभव होगा

2. ऎसे देह-भान को छोड़, संकल्प को भी विल करने से, (विल पावर) शक्ति-समानता आती… बिल्कुल हल्का रहते, हम तो निमित्त है, बाबा की हर पल मदद मिलती

3. फर्स्ट बनने के लिए:

  • फास्ट (व्रत) रखना… एक बाबा दूसरा ना कोई, एक की ही स्मृति
  • फास्ट जाना… अर्थात तीव्र पुरूषार्थी

4. महारथी अर्थात माया पर सदा विजयी, उसे विदाई दे देना… इसके लिए knowledge के साथ शक्ति चाहिए, तब ही ज्ञान स्वरूप में आता, सफलता मिलती

5. तीव्र पुरूषार्थी अर्थात फरमानवरदार, एक संकल्प भी फरमान से विपरित नहीं… ज्ञान-स्नान की शक्ति से, माया (अछूत) पास भी न आए

सार

तो चलिए आज सारा दिन… सदा अपने सम्पूर्ण आकारी और देव-रूप (और बाबा) को सामने रख, अपनी सम्पूर्णता की ओर तीव्रता से आगे बढ़ते… अपने संकल्पों को भी विल कर, हर पल बाबा के फरमान पर चलते, ज्ञान-योग की शक्ति से हल्के-मायाजीत बनते-बनाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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The power of determination! | (55th) Avyakt Murli Revision 28-05-70

The power of determination! | (55th) Avyakt Murli Revision 28-05-70

1. अब फैसला करना है, फिर agreement-engagement होगी (सेवा), फिर समारोह (सफलता)… साहस रखा है, तो माया का सामना होगा, इसलिए हिम्मत-उत्साह द्बारा विघ्नों को हाई-जम्प देना है (इसलिए स्वयं-सम्बन्ध में हल्का रहना है)

2. काली बनना अर्थात किसी से प्रभावित नहीं, औरों को बाबा पर बलि चढ़ाने वाले, सब के विघ्न हल करने वाली… ऎसी मायाजीत-एकरस स्थिति बनाने लिए विनाश-स्थापना के नगाड़े याद रखने है

3. स्नेही-सहयोगी बनने से शक्तिशाली बनना है… कहां स्नेही, कहा शक्तिशाली बनना, इस परख द्बारा व्यर्थ से बचे रहना है… हम हारने वाले नहीं, लेकिन बाबा की गले का हार है, कोई पर संकल्प से भी अर्पण नहीं… तिलक अर्थात शिक्षाओं को स्मृति में रखना, धारण करना… सफलता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, जो संकल्प-मस्तक-नयन-चेहरे से दिखता… हम उम्मीदवार, कमाल करने वाले शोपीस है

4. प्रतिज्ञा के बीज को हिम्मत-संग का जल देने से फलीभूत होगा… खुद पर आलमाइटी गवर्नमेंट की सील लगानी है, सिर्फ वाया परमधाम-वैकुण्ठ जाएँगे

सार

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि हम बाबा के बन गए हैं (agreement), तो सदा अपने श्रेष्ठ टाइटल्स को स्मृति में रख, हिम्मत-उत्साह द्बारा शक्तिशाली मायाजीत स्थिति का अनुभव करते… सबके विघ्नों को हरते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Finishing the margin! | (54th) Avyakt Murli Revision 21-05-70

Finishing the margin! | (54th) Avyakt Murli Revision 21-05-70

1. बाबा हमारी मार्जिन (कितना आगे जाना बाकी है) और माइट (शक्ति) देख रहे

2. ज्ञान का बीज अविनाशी है, उसमें जितना बाबा के संग (पुरुषार्थ) का जल देते, उतना फल-स्वरूप बनते… पुरूषार्थ की भिन्नता मिटाने लिए चाहिए एकता, जिसके लिए:

  • एकनामी (एक का ही नाम लेने वाले)
  • इकॉनमी (संकल्प-समय-ज्ञान की)

तो मैं-पन बाबा-बाबा में समा जाएँगा, जो ही माया-विघ्न से बचने की ढाल है

3. स्पष्टता से आती सरलता… जो जितना सरल, उतना याद भी सरल होगी, औरों को भी सरल पुरूषार्थी बना देगा… यही यादगार दे जाना है

सार

तो चलिए आज सारा दिन… जो भी मार्जिन बाकी है, उसे सम्पन्न करने ज्ञान से भरपूर बन बाबा के संग में रहते शक्तिशाली बन… सबके साथ सरलता-एकता से चलते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Getting married to God! | (53rd) Avyakt Murli Revision 14-05-70

Getting married to God! | (53rd) Avyakt Murli Revision 14-05-70

1. बाबा दर्पण लाए हैं, जिसमें अपने अर्पण-मय होने का मुखड़ा देख सकते… सम्पूर्ण अर्पण (समर्पण) अर्थात देह-भान (कर्मेंद्रीयां), स्वभाव-सम्बन्ध सब अर्पण, तब सम्पूर्ण कहेंगे… ऎसे सदा सुहागिन (बिंदु रूप) बनने से श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त होता

2. पुरूषार्थ तेज़ करने लिए 4 बातें याद रखनी है:

  • उद्देश्य
  • बाबा का आदेश (जिससे सफलता मिलती)
  • बाबा का सन्देश (सेवा)
  • स्वदेश (अब घर जाना है)

3. हम लाॅ-मेकर्स है (जस्टिस), इसलिए हर संकल्प-कदम संभाल के उठाना है… क्योंकि वह जैसे कि लाॅ बन जाता, सब फोलो करते… ऎसी अपनी जिम्मेदारी समझने से, छोटी बातों से सहज परे रहते

4. संगम के तिलक-तख्तनशीन, सर्विस का ताज, और गुणों के गहने से हम सम्पन्न है (संगम पर ही बीजरूप बाबा द्बारा सभी दैवी रीति-रस्म के बीज पडते)… समर्पण-समारोह अर्थात मधुबन के मन्दिर में आत्मा-परमात्मा का लगन होना, लॉ-मेकर्स का (कोर्ट)

5. हम है उपकारी (भल कोई कितने भी अपकार करे), अधिकारी और निरहंकारी… तब ही ताज-तख्त कायम रहता

सार

तो चलिए आज सारा दिन… सदा अपने को बाबा पर अर्पण, श्रेष्ठ भाग्यवान सुहागिन आत्मा समझ… सदा अपनी श्रेष्ठ लाॅ-मेकर की स्मृति द्बारा निरहंकारी बन सबकी सेवा करते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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The power to pack-up! | (52nd) Avyakt Murli Revision 05-04-70

The power to pack-up! | (52nd) Avyakt Murli Revision 05-04-70

1. सभी पॉइंट का सार है पॉइंट बनना, अर्थात विस्तार को समेटना-समाना… बीज-रूप स्थिति का अभ्यास, अभी-अभी आवाज में, अभी देह से परे

2. हम उम्मीद की विशेषता वाली विशेष आत्मा है, अभी श्रेष्ठ बनना है, अलंकारी और आकारी (जिसके लिए चाहिए लाइट)… निर्भयता-एकता-एकरस (ज्योति-ज्वाला और हल्केपन-शीतलता का बैलेंस, लाइट हाउस) … मेहनत कम, सफलता ज्यादा… सुनने के साथ स्वरूप बनना, सेन्स के साथ इसेन्स

3. तिलक अर्थात… आत्मिक स्मृति और भविष्य राजतिलक की निशानी-नशा

4. भक्ति में जो फूल चढ़ाए थे, उसका रिटर्न बाबा न्यारा (देह से)-प्यारा का पुष्प देते… हर्ष के साथ आकारी, यही आकर्षण-मूर्त है… हमारे पास पुरुषार्थ-सेवा दोनों का बल है… जितना बाबा के कर्तव्य में सहयोगी, उतना स्नेह मिलता… जितना बाप-समान निर्माण, उतना स्वमान

5. सम्पूर्ण अर्पण के दर्पण से बाबा का साक्षात्कार होंगा, सूरत से ही अल्लाह-समान दिखेंगे… जो ओते सो अर्जुन… तृप्त आत्मा अर्थात निर्भय-सन्तुष्ट… सहनशक्ति की कमी अर्थात सम्पूर्णता की कमी, तो अभी सदा अपने को शक्ति समझ विजयी बनना है, कमजोरी समाप्त

6. हम जादूगर बच्चे अव्यक्त को व्यक्त में लाते… अब ज्ञान-स्वरूप याद-स्वरूप बनना-बनाना है, समय के इन्तज़ार के बदले इन्तज़ाम करना है, एवर रेडी (पुरुषार्थ-संस्कार से भी)… नर्म (कोमल) और गर्म (शक्तिशाली), कोमल के साथ कमाल

7. श्रेष्ठ-मणि अर्थात सब कार्य श्रेष्ठ (सरलता-सहनशीलता… शीतल-मधुर के ज्वाला शक्ति)… मस्तक-मणि अर्थात मस्तक पर विराजमान, आस्तिक, सदा हाँ-जी… हम लक्की सफलता के समीप सितारे है

8. जितना विदेही बनेंगे (देह-भान से न्यारे), उतना स्नेह दे-ले सकेंगे, समीप रहेंगे (बाबा से भी)… कमजोरी को स्मृति में भी नहीं लाना, मास्टर सर्वशक्तिमान अर्थात सब कुछ सम्भव, मुश्किल भी आसान… अकेले है तो भी बाबा साथ है, संगठन मैं है तो भी अकेले (न्यारा-प्यारा)

9. जितना स्थिति एकरस, उतना पूजन-योग्य… तीव्र पुरूषार्थी अर्थात कब के बदले अब दिखाना… सम्पूर्ण अर्थात सर्वशक्ति-सम्पन्न, फिर वहां सर्वगुण-सम्पन्न

10. स्नेह-सहयोग-सम्बन्ध-सहन, सभी शक्तियां धारण करनी है… साहस-हिम्मत से मदद मिलती है (बाबा-परिवार की)… शक्ति (माया पर विजयी बनने लिए) और स्नेह (सम्बन्ध में), दोनों चाहिए

सार

तो चलिए आज सारा दिन… विस्तार को समेटकर बीजरूप विदेही बन, सदा अव्यक्त को साथ रख याद-स्वरूप बन… सबके स्नेही-प्यारे बन, हर कार्य में सहज सफलता पाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Being Master of all Powers! | मास्टर सर्वशक्तिमान | (51st) Avyakt Murli Revision 02-04-70

Being Master of all Powers! | मास्टर सर्वशक्तिमान | (51st) Avyakt Murli Revision 02-04-70

1. बाबा एक सेकण्ड में आवाज से परे ले जाना सिखाते, यही सम्पूर्णता (वा मास्टर सर्वशक्तिमान) की निशानी है, फिर याद-सेवा सब सहज हो जाएँगा, प्राप्ति ज्यादा… हमें आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता, साथ में गार्ड बन औरों को भी आगे बढ़ाना है 

2. फिर सबकी सूरत से ही उनकी संकल्प-स्थिति समझ जाएंगे… और हमारी सूरत से भी अन्तिम-भविष्य स्वरूप स्पष्ट दिखेगा, साक्षात् साकार बनेंगे तब साक्षात्कार होंगे… जितना पुरुषार्थ स्पष्ट, उतना प्रालब्ध भी स्पष्ट, सन्तुष्ट होंगे, इसके लिए सरल-साफ बनना है… ऎसे एग्जाम्पल बनने से एग्ज़ाम में पास होंगे… चारों बल (याद-स्नेह-सहयोग-सहन) समान चाहिए, तब समीप कहेंगे

3. जितना बहुतकाल से हिम्मतवन बनने की लिंक जुटी हुई होगी, उतनी अन्त में एक्स्ट्रा मदद मिलेगी… सर्विस में ईन-चार्ज बनने के साथ योग में बैटरी चार्ज करनी है, बाबा-समान जिम्मेवारियां की लहरे में भी तले में जाना, इसलिए बीच-बीच में आवाज से परे जाना है, जितना साहस है उतनी सहन-शक्ति भी हो

4. श्रेष्ठ पुरूषार्थी बनना है, निश्चयबुद्धि विजयी, विजय के संकल्प से भी सर्वस्व त्यागी… जैसे यहां सहयोगी है, वैसे वहां भी बनेंगे… बाबा को पूरा फालो करना है

5. स्वयं को पहले सम्भालने से ही यज्ञ को संभाल सकते… सेवा में ललकार करने लिए अंगीकार (स्वीकार) नहीं करना है (मैं-मेरा, तू-तेरा का), जैसे बाबा… बाबा-बाबा कहते रहने से परम बल मिलता

6. बाबा सम्पूर्ण होने कारण, जो होने वाला है, वह उन्हें पहले ही टच हो जाता… बाप-समान साक्षी-उपराम बनने से सबके प्यारे रहेंगे, अभी सो भविष्य में

सार

तो चलिए आज सारा दिन… हिम्मतवान साफ-दिल मास्टर सर्वशक्तिमान बन, सेकण्ड में आवाज़ से परे जाने की ड्रिल करते… अपनी बैटरी को चार्ज कर, सदा सन्तुष्ट बन, साक्षीनिमित्त भाव से सेवा करते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Becoming a Maharathi! | (50th) Avyakt Murli Revision 26-03-70

Becoming a Maharathi! | (50th) Avyakt Murli Revision 26-03-70

1. बोलते हुए भी बोल से परे रहे, एसी स्थिति बनानी है… महारथी अर्थात प्रैक्टिस-प्रैक्टिकल, संकल्प-कर्म में कोई अन्तर नहीं, जैसे ब्रह्मा बाप… महारथी अर्थात कर के दिखाने वाले, निश्चय-बुद्धि महान

2. नई दुनिया का प्लान प्रैक्टिकल में लाना, अर्थात पुराने कोई संस्कार-संकल्प प्रैक्टिकल में नहीं लाना… वृत्ति-दृष्टि-संकल्प-संस्कार-स्वरूप तक भी परिवर्तन… अगर बाप-समान संस्कार नहीं, तो उन संस्कारों को टच भी नहीं करना है… बाप जैसे गुण-कर्तव्य-सीरत अपनानी हे

3. हम सफलता के सितारे है… गुड्डी का खेल (अर्थात व्यर्थ संकल्प की रचना-बर्थ कर, उनसे तंग होने वाले नहीं), एसी कमजोरी के संस्कार बहुत पुराने लगे, एसी सम्पूर्णता की छाप लगानी है, तब और भी सम्पूर्णता के समीप आएँगे

4. मैं-मेरा, तू-तेरा से भी उपराम रह बाबा-बाबा करना है, तब प्लेन याद रहेंगी… बिन्दु स्वरूप में टिकना सहज करने, सारा दिन उपराम-प्लेन रहना है, हम सबके लिए प्रेरणा-मूर्त है… हद के boundary से ही bondage होती… बेहद में रहने से बेहद स्थिति अनुभव करेंगे… ऎसा सम्पूर्ण अभी से बनना है, जिससे हमारी प्रत्यक्षता होगी (वा करनी है)

5. अपनी दृष्टि-वृत्ति पलटाने से, नज़र से निहाल कर सकेंगे, अर्थात स्नेह-सम्बन्ध में लाएंगे… एक जगह बैठकर अनेकों की सेवा करनी है (वह अनुभव करे जैसे कोई हाथ पकड़ कर ले आ रहे, तमोगुणी के भी संस्कार परिवर्तन होने लगेे)… अब बेहद को सुख देना है, तब ही सब सुखदाता के रूप में स्वीकार करेंगे… फील-फेल होने से परे, फ़्लोलेस, फूल पास बनना है

सार

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि हम नई दुनिया को प्रैक्टिकल लाने वाले है, तो सदा पुराने-पन से उपराम बन… सदा बिन्दु रूप में सहज स्थित रह, बाबा की प्लेन याद में रह बाप-समान सम्पूर्ण फ़्लोलेस बन अनेकों को सुख देते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Spiritual Significance of Holi | (49th) Avyakt Murli Revision 23-03-70

Spiritual Significance of Holi | (49th) Avyakt Murli Revision 23-03-70

1.

  • स्थित की स्पिरिट से पुरुषार्थ की स्पीड आती, जिससे सेवा में सफलता होती… इसलिए होली के अर्थ-स्वरूप बीती सो बीती, पास्ट को बिल्कुल खत्म कर देना है, जैसे कि पिछले जन्मों की बात हो (चित्त-चिन्तन-वर्णन नहीं)… यह है रंगना
  • ऎसे सरल-चित्त बनने से नयन-मुख-चलन में मधुरता का गुण प्रत्यक्ष होता… यह है मिठाई
  • और सब के साथ संस्कार-मिलन होता (जिसके लिए समाना-भुलाना-मिटाना होता, सबको सम्मान-सत्कार देना)…यह है मंगल-मिलन मनाना

इसी विधि से सिद्धि प्राप्त करनी है, जिससे क्यू लगेगी

2. हम सर्विसएबुल होने कारण शुभ-चिन्तक है, सब की चिंताओं को मिटाने वाले… इसके लिए बनना है, बालक सो मालिक… एक से अनेकों के सम्पूर्ण संस्कार बनाना… बिंदी रूप बनना है

3. देखने के साथ… ऎसा श्रेष्ठ बनना, सब के सम्बन्धों के समीप, बाबा के भी दिल-पसन्द

दादियों से मुलाकात

1. हम बालक-मालिक है, इसलिए बने हैं बाबा के दिलतख्तनशीन, सर्विस के तख्तनशीन, और भविष्य राज्य के तख्तनशीन… इसके लिए सिर्फ निशाना (ज्ञान) और नशा (योग) accurate रखना है

2. अब वाणी से परे, silence से साक्षात्कार कराना है… हम में बापदादा दिखाई दे (इससे ही फिर परमात्मा के अनेक रूप की बात भक्ति में चली है)… ऎसी समानता-समीपता की चेकिंग करनी है

स्पष्टता से श्रेष्ठता-सफलता-समीपता-समानता आती… आदि-रत्न अनादि गाए जाते

3. हम सूर्यमणि (शक्ति) और चन्द्रमणि (शीतल) दोनों है, इस समझ (लाइट) के साथ माइट लाने से ही, सर्विस में सफलता मिलेगी

4. जैसे एक जन्म में अनेक जन्मों का भाग्य (ताज-तख्त-तिलक-सुहाग) बनाते, वैसे इसी एक जन्म में जन्मों के हिसाब-किताब चुक्तू होते… इसके लिए साक्षी (जिससे व्याधि भी खेल लगती)-साहसी बनना है, तो बाबा का सहयोग भी मिलेंगा… साक्षी से साक्षात्कार होंगे

5. स्नेह-सहयोग-शक्ति में समानता आने से समाप्ति होंगी… अभी स्नेह वा सेवा (जिम्मेवारी) के डबल ताज से, वहां भी मिलेगा

6. सर्वस्व त्यागी बनने से सर्व के स्नेही-सहयोगी बनते, सब का स्नेह मिलता… इसी श्रेष्ठ कल्याण के संकल्प से सर्व प्राप्ति-पद-सत्कार से अधिकारी बनते

सार

तो चलिए आज सारा दिन… सदा साहसी बन बीती सो बिन्दी कर, ज्ञान-योग-सरलता सम्पन्न बन, मधुरता वा शुभ चिन्तन से सबके साथ चलते… बाबा के समान-शक्तिशाली बनते, सब का कल्याण करते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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The true celebration! | (48th) Avyakt Murli Revision 05-03-70

The true celebration! | (48th) Avyakt Murli Revision 05-03-70

1. बाबा मिलन ही मनाना है… और दूसरा मनाना है, आप समान बनाना (उनसे प्रतीज्ञा का जल लेना)… जितना खुद न्योछावर होंगे औरों की भी क्यू लगेगी, इसलिए क्यों-क्यों कि क्यू को पहले समाप्त करना है

2. पाण्डव दल में एसा बल भरना है, कि माया किसी के अन्दर आसुरी संकल्प भी न ला सके, तब प्रत्यक्षता होगी… इसलिए खुद ऎसा मजबूत बनाना है, एक सेकंड में सुख-शान्ति की प्यास बुझा सके, ऎसा दर्शनीय मूर्त बनना है… स्नेह-सहयोग-संगठन-सहनशीलता के बल से सम्पन्न

3. हमारे स्थान (मधुबन) का महत्व हमसे ही है, इसके लिए अपनी प्रतिज्ञा को बढ़ाना है… एकता, एक की लगन में मगन, एकरस ही दिखाई दे, तब प्रत्यक्षता होंगी

4. स्वयं भगवान् हमें वन्दे-मात्रम कहते, इसी स्मृति में रहने से नयन-चेहरा-बोल-चलन में खुशी झलकेगी… सब के दुःख कट हो, हर्ष-खुशी में आ जाएंगे… अपने संकल्प-संस्कार-कर्म-समय को चेक-चेंज करते, रोज़ कोई स्लोगन को प्रैक्टिकल में लाना है

सार

तो चलिए आज सारा दिन… सदा प्रश्नों से पार रह, बाबा से मिलन मनाते (एक की लगन में मगन, न्योछावर), अपने को मजबूत-एकरस-खुशी से भरपूर बनाते रहे… तो हम दिव्य दर्शनीय मूर्त बन, सबको की खुशी से भरपूर करते, बाबा से जुड़ाते, प्रत्यक्षता लाते, सतयुग बनाते रहेंगे… ओम् शान्ति!


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