Becoming a spiritual projector! | (47th) Avyakt Murli Revision 02-02-70

Becoming a spiritual projector! | (47th) Avyakt Murli Revision 02-02-70

1. हमारे मस्तक-नयन प्रोजेक्टर है, जितनी रूहानियत की लाइट होंगी (और साक्षी होंगे), उतना बाबा-तीनों लोकों का सबको साक्षात्कार करा सकते… जितनी लाइट-पावर ज्यादा, उतना पुरुषार्थ-भविष्य-सेवा स्पष्ट होंगी, अपनी और सबकी… ऎसी लाइट होंगी, जो अंत में बुरी वृत्ति वाले भी आएँ, तो उनको शरीर दिखेगा ही नहीं, एसी पावर बढ़ानी है

2. हम handle है, सेवा के जिम्मेवार, जिनके द्बारा heads कार्य करते, तो उनके राइट hand बनना है… सेवा में सफलता लिए नशा और निशाना (पुरुषार्थ-सेवा का) ठीक चाहिए… एक सेकंड-संकल्प भी स्वयं-सर्व की सेवा के बिना न जाए… निरन्तर योगी बनने लिए व्यर्थ संकल्पों से बचे रहना है, इसके लिए स्वयं को गेस्ट समझना है, तो रेस्ट नहीं लेंगे, और वेस्ट से बचे रहेंगे

3. सर्विसएबुल के साथ पावरफुल, ऐक्टिव के साथ एक्यूरेट बनना है (हर बात में, मन्सा-वाचा-कर्मणा)

सार

तो चलिए आज सारा दिन… सदा अपने को गेस्ट समझ, वेस्ट से बचे, रूहानियत की लाइट-शक्ति से भरपूर रह… सबको रुहानी प्रोजेक्टर बन, बाबा से जुड़ातेबाबा का राइट hand बन सेवा करते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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The complete stage! | (46th) Avyakt Murli Revision 26-01-70

The complete stage! | (46th) Avyakt Murli Revision 26-01-70

1. जैसे बाबा स्वयं को मेहमान समझते (आना और जाना)… ऎसे समझने से न्यारा-उपराम-अव्यक्त-अलग कर्मातीत रहेंगे… संकल्प किया और हुआ

2. अपने को परमधाम-निवासी (यहां पर ईश्वरीय कार्य लिए अवतरित) समझनै से मधुरता-स्नेह-वैराग्य सम्पन्न बनेंगे, सब भी सहज मेहसूस करेंगे… सफलता स्वरूप बन-बनाएंगे (यही संगम की प्रारब्ध है, जबकि हम सर्वशक्तिमान की सन्तान है), इसी स्मृति में रहना है… स्मृति में निश्चय-शक्ति है, तो स्थिति-कर्म भी ऎसे रहेंगे, कभी हार नहीं होगी

3. फर्ज-भाव से माया का मर्ज नहीं लगता… बाबा की मदद सदा रहती… औरों को आगे बढ़ाते रहना है

4. जितनी सेवा कर सकते, उतनी करनी है… एकान्त में गहराई में जाकर परिवर्तन करना है… ईश्वरीय स्नेह-सहयोग देने से मायाजीत बनने का सहयोग मिलता… यहां के ईश्वरीय स्नेह से वहां का स्नेह जुटता, अनेकों के बजाय एक से स्नेह

5. जो ज्ञान मंथन के लिए ख़ज़ाना मिला है, उसे सदा प्रयोग मे लाने से, बुद्धि को बिजी रखने सेे, माया से बचे रहेंगे… जैसे समय बीती को बिंदी लगाता, हमें भी लगाना है कमजोरीयों को, तो हम समय-समान तेज भागेंगे, शक्ति भरेगी, समय से पहले पहुंच जाएंगे

6. बन्धन हो तो भी लगन से याद कर, चरित्रों का अनुभव कर सकते, तो विघ्न भी समाप्त हो जाएंगे… हमारा एक से जुड़ा हो, अनेकों से टूटा हो, तो सहज सर्वशक्तिमान से शक्ति मिलेगी, चेहरा अव्यक्त खुशी से भरपूर रहेंगे सब की सेवा होंगी (रहमदिल बन)… सिर्फ संकल्प शक्तिशाली चाहिए, यह समय वापिस नहीं आएँगा, पूरा अटेंशन चाहिए, होश में रहना है, प्रतीज्ञा से प्रत्यक्ष फल मिलता 

7. चलन की अलौकिकता से, लौकिक की सेवा होंगी… अपने परिवर्तन से example बनना है

8. बाबा मिलन सबसे बड़ा भाग्य है, कब को अब करना है, सर्वशक्तिवान साथ है तो स्थिति से परिस्थिति-वायुमंडल बदलना सहज है… सेकंड में पदमों की कमाई, हिम्मत रखना है, माया-शेर पर विजयी, स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन

सार

तो चलिए आज सारा दिन… बीती को बिंदी लगाए, सदा अपने को परमधाम से अवतरित मेहमान समझ शक्तिशाली स्मृति द्बारा श्रेष्ठ स्थिति का अनुभव कर… अलौकिक बन, सबको ईश्वरीय स्नेह-सहयोग देते, खुश-शक्तिशाली बनते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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The importance of time! | (45th) Avyakt Murli Revision 25-01-70

The importance of time! | (45th) Avyakt Murli Revision 25-01-70

1. कर्म करते भी अव्यक्त स्थिति कायम रखनी है… इसके लिए बुद्धि की लाइन सदा clear चाहिए, अपने पर attention-निश्चय, बातों को सेकंड में परिवर्तन करना… समय कम है (तकदीर बनाने का, सतयुगी मंजिल पर पहुंचने का), इसलिए एक सेकंड भी व्यर्थ न जाए, जम्प लगानी है … बाबा से गुण-ग्रहण करते, सर्वगुण सम्पन्न बनना, फिर स्नेह की सौगात वापिस ले जाना है, जिससे विजयी बनते

2. जिस्म देखने से दुःख होता, रूह देखने से राहत मिलती… शूरवीर अर्थात स्वयं के विघ्न सेकंड मे समाप्त (परिस्थित-वायुमंडल को परिवर्तन करने वाले बहादुर), सारा समय सेवा के लिए… सम्पूर्णता का नक्शा तैयार कर तेज पुरुषार्थ करना है, तो बाबा की पूरी मदद मिलेंगी… सम्पूर्ण आहुति (मन-वचन-कर्म से) देने से ही सम्पूर्ण सफलता मिलती, इसका यही समय है

3. नयों को समय-परिस्थिति का सहयोग है, सिर्फ हिम्मत-निश्चय पक्का चाहिए, सेकंड में जन्मसिद्ध अधिकार मिलता… सदा सुखदाई बन रहना है, हम न्यारे-अलौकिक है, कुछ खिंच नहीं सकता… बाबा से compare करते रहने से, चलन श्रेष्ठ होती जाएंगी

4. हम एक मधुबन घर के है, सबका कनेक्शन एक से है, ऎसे एकरस रहेंगे… एक की ही याद से सर्व प्राप्ति है, माया सिर्फ आखिरी शो कर रही, घबराकर कमझोर होने से ही माया का वार होता-बेहोश करती, हमारे साथ तो सर्वशक्तिमान है… हमें स्मृति-स्वरूप रहना है (बाबा हमें कितना ऊंच देवता बनाते), विस्मृति के संस्कार-गंदगी समाप्त करने है (अन्त से पहले)… व्यर्थ संकल्प-समस्या का बिस्तरा बन्द, कब के बदले अब

5. बाबा से स्नेह है, तो जल्दी सम्पूर्ण बनना है, औरों को भी आगे बढ़ाना है… कर्म के पहले (वा बीच-बीच) में भी चेकिंग करने से स्थिति एकरस रहेंगी, आदत पड़ जाएंगी

सार

तो चलिए आज सारा दिन… समय कम है, इसलिए सभी पुरुषार्थ की युक्तियों को प्रैक्टिकल में लाते, सेकंड में परिवर्तन का जम्प लगाकर, सदा सर्वशक्तिमान बाबा से combined… सर्व गुण-प्राप्ति सम्पन्न-सम्पूर्ण बनते, सबको सुखदाई बनते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति


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The power of Shrimat! | (44th) Avyakt Murli Revision 24-01-70

The power of Shrimat! | (44th) Avyakt Murli Revision 24-01-70

1. बाबा के वर्से के अधिकारी बनना अर्थात, देह-सम्बन्ध-वस्तु-माया से अधीन नहीं… बाबा को नैया देना अर्थात, श्रीमत पर हर कर्म को अलौकिक बनाना (जिससे सबको प्रेरणा मिलती) … सदा आत्म-अभिमानी रहने से सदा सुखी रहते

2. सदा अव्यक्त-स्थिति का वरदान याद रखने से, सहज अव्यक्त आनंद-स्नेह-शक्ति अनुभव होता… इसके लिए सिर्फ वरदान-वरदाता को याद रखना है, जो कि सबसे प्रिय वस्तु है… विस्मृती का कारण है कमजोरी, जो श्रीमत पर न चलने से आती, इसलिए सदा कर्म पहले चेकिंग करनी है, तो कर्म-जीवन श्रेष्ठ रहेंगा

3. औरों को बाबा का परिचय देने से वर्तमान-भविष्य दोनों श्रेष्ठ बनता… स्वयं को जगत-माता समझना (जिससे कल्याण होता) वा शिव-शक्ति समझना है (कमझोरी समाप्त), दोनों साथ याद रखने से मायाजीत बनते… नष्टोमोहा (देह से भी) बनने से स्मृति-स्वरूप बनेंगे, इसके लिए स्वयं को समर्पित-निमित्त समझना है, तो बाबा भी गुण-सहित हम पर समर्पण होंगे

4. सदा स्वयं को विजयी रत्न समझना है, निश्चयबुद्धि की कभी हार नहीं हो सकती… विघ्नों को पेपर समझना है (जो भिन्न-भिन्न होते), घबराने के बजाय गहराई में जाना है, अव्यक्त वातावरण बनाने में बिजी रहना है

5. शिव-शक्ति सबकुछ कर सकती, भल माया शेर-रूप में आए, हमें स्वयं को बदलना है… हम ही कल्प पहले वाली विजयी आत्माएं है, हिम्मत रखने से मदद मिलती, संकल्प का फाउण्डेशन मजबूत रखना है… कोशिश समाप्त कर अव्यक्त कशिश लानी है… संकल्प-बोल-कर्म समान, यही है तीव्र पुरूषार्थी

6. बाबा को याद करना सहज है… जिससे ज्ञान emerge होता, सहयोग मिलता, और स्मृति वहां भी काम आती… मैं परमधाम-निवासी आत्मा अवतरित हुई हूँ, ऎसी योगयुक्त स्थिति में, दो बोल भी भाषण-समान है

7. जो एम रखा है, उसे प्राप्त जरूर करना है… कोशिश शब्द समाप्त, निश्चय-बुद्धि विजयन्ती..

8. समय से पहले तैयार रहने से, एकरस स्थिति रहेंगी… सम्पूर्ण लक्ष्य रख, सम्पूर्ण पुरुषार्थ करना है, बाप-समान… जानना, और तुरन्त स्थिति बनना-धारणा में आना

9. यहां का सुख-शान्ति-विश्राम साथ ले जाना है… हम सर्वशक्तिमान के बच्चे, वातावरण भी परिवर्तन कर सकते… सिर्फ एक बाबा और मैं, तीसरा कोई नहींं, एसी ऊँची स्थिति में रहना है

10. बाबा-साथ की याद-अग्नि द्बारा, माया दूर से ही भाग जाएंगी, शक्तिशाली-विजयी रहेंगे… फिर कम समय में, ज्यादा सेवा होंगी

11. हम थके हुए हैं (आधा-कल्प से), इसलिए बाबा को विशेष स्नेह है… कहां भी याद कर सकते (जिससे मन के भाव शुद्ध) होते… सेवा के बंधन में अपने को बांधने से, और सब बंधन समाप्त हो जाते, श्रेष्ठ कर्म से श्रेष्ठाचारी बनते, ललकार करनी है

12. अव्यक्त में बाबा की छत्रछाया नीचे सब होता, हम भी वहां आते-जाते रहने से अव्यक्त-फ़रिश्ता समान रहते… हल्के, बन्धन-मुक्त… एक आँख में सम्पूर्ण स्थिति, दूसरे में राज्य पद

सार

तो चलिए आज सारा दिन… सदा श्रीमत पर बाबा की छत्रछाया के नीचे, आत्म-अभिमानी अव्यक्त स्वमान-धारी स्थिति में स्थित रह, वरदाता बाप कि याद-अग्नि द्बारा… संकल्पों को मजबूत रख, हर कर्म अलौकिक-विजयी बनाते… सबकी सेवा करते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Doing spiritual service! | (43rd) Avyakt Murli Revision 23-01-70

Doing spiritual service! | (43rd) Avyakt Murli Revision 23-01-70

1. आवाज में आना मजबूरी लगे, एसे अशरीरी होकर सबको सुनाने से उन्हें मनरस-आंतरिक सुख का अनुभव होगा… जो ऎसे अव्यक्त अनुभवों द्बारा आए हैं, वह अभी भी निर्विघ्न है… खुद सहज पुरूषार्थी बनकर, सबको भी लक्ष्य तक पहुंचा सकेंगे

2. सेवा की युक्तियां:

  • चित्रों में अव्यक्त चैतन्यता चाहिए… जो दूर से आकर्षित करे
  • टॉपिक कोई भी हो, स्थिति टॉप की चाहिए… तो सहज मोड़ सकेंगे
  • वायुमण्डल अव्यक्त चाहिए, शुरू से अंत तक… ऎसे सेवाकेंद्र चिराग समान लगेंगे
  • व्यक्त मूर्त में, अव्यक्त आकर्षण चाहिए
  • तब सबके आगे sample बनेंगे… हमारी अव्यक्त स्थिति से, समय का घंटा बजे

3. बाबा-परिवार के स्नेह के सूत्र में बंधे रहना है… सबको पहले से मददगार बनाना है (वाणी से अहंकार तकरा सकता, प्रैक्टिकल लाइफ से नहीं)… जितनी बुद्धि-पुरुषार्थ की लाइन clear होगी, तो संकल्प किया और हुआ… इसके लिए व्यर्थ से बचना है, तो अव्यक्त स्थिति बढ़ेंगी, और बाबा की शुभ प्रेरणाएं स्थाई रहेंगी

4. यह अव्यक्त अनुभव साथ ले जाना है, इसलिए लौकिक को अलौकिक बनाना है, पुराना-पन समाप्त… अलौकिक सेवा करना अर्थात, सब को लाइट से जुड़ाना, इसलिए खुद देह से न्यारा रहना… आत्म-अभिमानी बनने से सबकी आशीर्वाद मिलती

5. Godly स्टूडेंट को अपने लक्ष्य-प्रमाण लक्षण चाहिए, ऎसी शक्तिशाली प्रैक्टिकल स्टेज में रहने से बड़ो से भी अच्छी सेवा कर सकते, इच्छा-हिम्मत रखने से मदद भी मिलेंगी… स्थूल सेवा भी अलौकिक सेवा करने का साधन समझना है… जितना योगयुक्त होंगे, कम बोलने से ज्यादा काम होगा, विघ्न समाप्त हो अटल-एकरस-example बनेंगे बाप-समान… नयन-मस्तक से निराकार प्रगट हो

6. जो सदा दुःख में साथ देता, जिससे स्नेह हैं… उसको अपना युगल बना देना है, कभी अलग न हाना… तो साहस मिलेगा, माया दूर रहेंगी, स्थिति-कर्म मजबूत रहेंगे… अकेले में आत्मा और साथ में रूहानी युगल, वही सबसे प्रिय वस्तु है

7. मधुबन खान है, इसलिए जितना हो सके भरना चाहिए, जितना वहां सम्पन्न … हर कदम में पदमों की कमाई

8. हम निर्बंधन है, उल्टी सीधी से बचे हुए… इसलिए हमें lottery मिली है, तो सदा श्रेष्ठ स्थिति में रहना है

9. तन की सर्जरी करने से तन्खा मिलती… और मन ठीक करने से दुआओं द्बारा अतिन्द्रीय सुख मिलता

10. संगम का समय बहुत कम है, इसलिए जितने दिन मिले, लास्ट सो फास्ट जाना है… हमें सिर्फ हिलना नहीं, बाप से पूरा सुख-शान्ति का वर्सा लेना है

11. अब बाबा सदा साथ है, इसलिए एकमत रहना है, गुणदान करना है… अपनी original स्थिति याद रखनी है… अर्पण होने से वरदान मिलते

12. महाबली अर्थात, त्याग का संकल्प भी न आए, तो महान शक्ति मिलती… सर्वशक्तिवान हमारा साथी है, तो कमझोरी आ नहींं सकती

सार

तो चलिए आज सारा दिन… बुद्धि की लाइन clear रख, सदा आत्म-अभिमानी अशरीरी अव्यक्त अलौकिक स्थिति का अनुभव करते… सबको बाबा से जुड़ाते, सर्व प्राप्तियों से भरपूर करते… सब की दुआएं कमाते, सब को और आगे बढ़ाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Going beyond Sound in a second! | आवाज से परे | (42nd) Avyakt Murli Revision 22-01-70

Going Beyond Sound in a second! | आवाज से परे | (42nd) Avyakt Murli Revision 22-01-70

1. अव्यक्त दुनिया में आवाज नहीं, इसलिए बाबा ड्रिल कराते (अभी-अभी आवाज में, अभी-अभी परे), फिर औरों के मन के भावों को भी सहज जान सकेंगे… ऎसी बुद्धि की लाइन clear हो, इसलिए अटूट-अटल-अथक चाहिए, फिर भविष्य भी बिल्कुल स्पष्ट दिखेगा, जैसे टीवी… इसलिए बाबा सूर्य को साथ रखना है, तो माया अंधकार दूर रहेगा

2. अपने अटूट-एकरस स्नेह से, बाबा हम स्नेही बच्चों को मिलन-मेले में दो सौगात देते, शुभ-चिन्तन (जिससे स्थिति बनती) और शुभ-चिन्तक (जिससे सेवा होती)

3. बाबा हमारे 3 रूप एक साथ देखते… वर्तमान-पुरूषार्थी और भविष्य-फ़रिश्ता (सब अपने नम्बर अनुसार सम्पूर्ण जरूर बनेंगे) और भविष्य-देवताअव्यक्त सहयोग देते रहते, अब तो उन्हें देह-समय का भी बन्धन नहीं

4. अभी-अभी देह से न्यारा (बिल्कुल अशरीरी), और अभी-अभी देह में कर्म लिए, ऎसा हल्का बनना है… इसलिये संस्कार को ईजी बनाना है, ईजी-अलर्ट

5. हम ही कल्प पहले वाले, पुराने, कोटों में कोई आत्माएं है… इसलिए लास्ट सो फास्ट जाकर, राज़ाई पद पाना है

सार

तो चलिए आज सारा दिन… अभी-अभी आवाज से परे अशरीरी, और वापिस देह में… इसी अभ्यास को बार-बार करते, बुद्धि की लाइन clear रख सदा हल्के शुभ-चिन्तक बन… फास्ट अपने सम्पूर्णता के लक्ष्य पर पहुंचते-पहुंचाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Coming closer to perfection! | (41st) Avyakt Murli Revision 18-01-70

Coming closer to perfection! | (41st) Avyakt Murli Revision 18-01-70

1. बाबा हमारी (सितारों की) सम्पूर्णता की समीपता देख रहे (तब ही हम सब बातें परख सकेंगे)… चित्र के साथ, विचित्र को याद रखने से चरित्र धारण होंगे

2. एक वर्ष जो अव्यक्त स्नेह-सहयोग-पालना मिली, उसके रिटर्न में चेक करना है, हम कहां तक व्यक्त भाव से परे बने (जिससे चलन में भी अलौकिकता आती)… निश्चय के पेपर में तो पास हुए (हमें अब भी साकार-परिवार से स्नेह-सहयोग-शक्ति मिलती), अभी सबको स्नेह-शक्ति देने का पेपर होगा (भल छोटी-मोटी समस्याएं आती रहेंगी, तन-मन-सम्बन्ध-वायुमण्डल की)… पेपर समझने से पास हो जाएंगे

3. विल-पावर प्राप्त करने लिए सबकुछ विल कर देना है… झाटकू बनने की शक्ति ही कुछ और है, रस्सियां तोड़नी है

4. विदेही को युगल बनाने से विदेही बनने में सहयोग मिलता, सहज सफलता मिलती, हम मुश्किल को सहज करने वाले है… फास्ट जाने वाले कहीं फँस नहीं सकते, इसलिए लास्ट स्थिति सदा याद रखनी है

सार

तो चलिए आज सारा दिन… बाबा की wonderful अव्यक्त पालना का रिटर्न देने… व्यक्त भाव छोड़, सबकुछ बाबा को सोप, सदा उससे बुद्धि जोड़े रखे… तो हमारी हर चलन में अलौकिकता-शक्ति आते, हम सम्पूर्ण बनते-बनाते, सतयुग बनाते रहेंगे… ओम् शान्ति!


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Summary of all 1969 Avyakt Murlis

Summary of all 1969 Avyakt Murlis

कल हमने 1969 की सारी अव्यक्त मुरलीयों का चिन्तन पूरा किया (टोटल 40 मुरली) … तो आज इन सभी मुरलीयों का सार देखते (1 छोटे आर्टिकल मेंं, उसमें भी कोई ब्लू अक्षरों को टच करने से, उस पूरी मुरली का सार खुल जाएंगा)… इन्हें बहुत प्रेम से, बाबा की याद में स्वीकार करना जी

अव्यक्त स्थिति

मुख्य बात, बाबा ने अव्यक्त स्थिति बढ़ाना का इशारा दिया, जिससे ही अव्यक्त मिलन होता:

नई सहज पुरुषार्थ की विधियां

बाबा ने बहुत सारी सहज शक्तिशाली युक्तियां बताई (पहली बार), सहज सम्पूर्ण बनाने… फोलो फादर करना, अपने को मेहमान समझ, ट्रस्टी बनना (सबकुछ बाबा की अमानत हैं), जिससे सम्पूर्ण समर्पित निश्चय-बुद्धि परवाने बनते… बाबा की ऊंची दृष्टि देखते, उसकी आशाओं का दीपक जरूर बनना है, अलर्ट-attractive

पुरुषार्थ से प्राप्तियां!

पुरुषार्थ से प्यार ही समस्याओं पर विजयी बनाता… इसलिए याद को स्नेह-रूप के साथ शक्ति रूपअग्नि रूप भी बनाना… बुद्धि को भी सूक्ष्मसाफ़ कर परखने की शक्ति बढ़ानी है, सरल-चित कर… तब ही परिवर्तन अविनाशी बन, संगठन वा सेवा में सफलता मिलेगी (सेवा भी भिन्न युक्तियों भी बताई)… और नंबर वन, बेस्ट टीचर, मधुबन का शो-पीस बनेंगे

सार

तो चलिए आज सारा दिन… बीती-आलस्य को बिन्दी लगाए, ब्रह्मा बाप समान सम्पूर्ण समर्पण-भाव जागृत कर… पुरुषार्थ से प्यार (और बाबा की स्नेह-शक्ति-अग्नि स्वरूप याद द्बारा) अव्यक्त स्थिति मजबूत करते रहे… तो सहज संगठन-सेवा में सफलता पाते, नंबर वन बनते-बनाते, सतयुग बनाते रहेंगे… ओम् शान्ति!


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Considering everything as Baba’s Amanat! | (40th) Avyakt Murli Revision 25-12-69

Considering everything as Baba’s Amanat! | (40th) Avyakt Murli Revision 25-12-69

1. जैसे बाबा हम रूहों से खुशबू लेते, हमें भी सदा रूह समझ हर संकल्प-बोल-कर्म में रूहानियत लानी है… इसके लिए सदा स्वयं (मन-संस्कार), सर्व (जिज्ञासू-सेन्टर) को अमानत समझना है, तो अनासक्त रहेंगे, रूहानियत आएंगी… तब हमारे फीचर्स में फ़रिश्ते-समान संकल्प-बोल-कर्म में हल्कापन आएँगा, हम तुरन्त परख-निर्णय कर सकेंगे

2. हम ऑल-राउंडर तो है, अभी विश्व महाराजन् बनना है… अर्थात सब के साथ ऎसे सम्बन्ध हो, जो सब स्नेह-पुष्पों की वर्षा करे… इसके लिए सब के सहयोगी बनना है, नजदीक सम्बन्धि वह, जो सबको कुछ न कुछ सहयोग देंगे

3. हमने उंगली दी है पर्वत उठाने लिए… लेकिन अब एक-एक पुष्प अकेले के बजाए, सबको गुलदस्ते के रूप में साथ रूप-रंग से चमकना है… तब सर्विस में सफलता मिलेंगी, सब बाबा से जुड़ेंगे

4. हम है आत्माओं के सम्बन्ध की नीव डालने वाले, जितना हम मजबूत qualification वाले होंगे, उतना वह क्वालिटी बनेंगे… इसके लिए हमें बाप-समान बनना है

सार

तो चलिए आज सारा दिन… अपना सबकुछ बाबा की अमानत समझ, सदा अपने को रूह समझ रूहानियत से भरपूर रह, फ़रिश्ते समान हल्का बन… सबके स्नेही-सहयोगी बन, सेवा में सफलता पाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Becoming successful in service! | (39th) Avyakt Murli Revision 20-12-69

Becoming successful in service! | (39th) Avyakt Murli Revision 20-12-69

1. जैसे शुरू में हिम्मतवान बन बाबा के समीप रहे, स्नेह-मदद ली (जिस अव्यक्त-पालना के कारण एक-समान अलौकिक आकर्षण-मूर्त व्यक्ति दिखाई दिए)… ऎसे अभी 5 बातें (एकता-स्वच्छता-महीनता-मधुरता-महानता) धारण कर विशेष बनना है, जिस सम्पूर्ण संस्कार द्बारा बाबा प्रत्यक्ष होंगे

2. प्लान्स बनाने के साथ प्लेन याद चाहिए (सिर्फ एक बाबा), तब सफलता मिलती… अब फेल नहीं होते, लेकिन छोटी बातें फील करते, इस अन्तर को मिटाने से सब हमपर मिटेगे… हम ही समझदार हिम्मतवान थे, जो सागर में नहाये

3. एवररेडी अर्थात कोई भी direction मिले, सेकण्ड में तैयार… अभी तो हमारे पास स्नेह-शक्ति दोनों है… सेवा-लोगों के साथ रहते भी नीर्बन्धन… अभी तो बहुत पेपर आने है, जिनको पास करना है महीन-बुद्धि बन

4. महीन-बुद्धि अर्थात हर परिस्थित का सामना कर मोल्ड करे… इसके लिए चाहिए हल्का, नर्म (सेवा-भाव, स्नेह-भाव, रहमदिल, निर्माण) और गर्म (शक्तिशाली, मालिक-पन}… दोनों की समानता से महानता आएंगी… तब कहेंंगे अव्यक्त स्थिति, रस्सियाँ छूटी हुई

5. सबसे बड़ा बन्धन है शरीर का, अन्त मती जिसके परे जाने से ही पास विद आनर होंगे… जिसके लिए देह-चोले को लूज़ (लगाव-मुक्त, न्यारा) रखना है बहुतकाल से, जिससे सेकण्ड में छोड़ सके, एवर-रेडी, सोचा और हुआ)… ऎसे आत्माओं की मृत्यु भी सेवा करती, सन शोज फादर, यह अनोखा मेडल है

6. सेवा में आते भी न्यारे-अलौकिक-अव्यक्त रहने से सबकी बीच हीरे-समान चमकेंगे… औरों को भी अलौकिक बनाएंगे, तब ही सब कुर्बान हो वारिस बनेंगे

7. अन्त में रिजल्ट announce होंगी, 3 बातों से… कितना विजयी रहे, कितने वारिस बनाए, अन्त में कैसे गए… अभी भी मेकउप का समय है

सार

तो चलिए आज सारा दिन… महीन-बुद्धि हिम्मतवान बन देह से न्यारे बन एक बाबा की याद में रह… अलौकिक निर्बंधन हीरे समान चमकते-चमकाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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