The fire of God’s love! | (27th) Avyakt Murli Revision 15-09-69
1. जितना निराकारी स्थिति में स्थित रह साकार में आते… तो सबको निराकारी स्वरूप का अनुभव-साक्षात्कार कराए, आप समान बना सकते…
2. हम जगत माताएं वारिस-स्टूडेंट तो है ही, अभी नष्टोमोहा बनना है… जिस परिवर्तन के लिए बाबा से स्नेह की अग्नि चाहिए (तो ममता-बन्धन-लोकमर्यादा-आसुरी गुण सब समाप्त हो जाएंगे)
3. जितना याद में रहेंगे, उतना यादगार बनेंगा, यादगार कायम रखने के लिए याद है… और कर्म में सब आत्माओं की विशेषताएं देखनी-ग्रहण करनी है, तो सर्वगुण-सम्पन्न बन जाएँगे
4. चन्द्रमा-समान:
- गुण (शीतलता)
- सम्बन्ध (ज्ञान सूर्य के समीप)
- कर्तव्य (रोशनी देना)
धारण करना है
सार
तो चलिए आज सारा दिन… निराकारी स्थिति में स्थित रह, ज्ञान-सूर्य बाबा की स्नेह-भरी यादों में मग्न रहे… सबकी विशेषताएं देखते , सब को शीतल रोशनी देते, आप समान बनाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!
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