Murli Yog 27.9.24

Murli Yog 27.9.24

मीठी शान्ति, दिव्य सुख वा खुशी की चमत्कारी ताकत के वन्डरफुल मालिक 👑 बनना; यही है स्नेह ❤, प्यार का सबूत; साथ-साथ स्वमान में स्थित रह सर्व को सम्मान देने वाले माननीय बनना; श्रेष्ठ कार्यों के जिम्मेवार बन मन्दुरूस्त रहना… Murli Yog 27.9.24!

हमें सम्मुख गर्म-गर्म हलुआ 😋 मिलता… अर्थात् मीठे-मीठे, रूहानी बच्चें कह वह रूहानी, सुप्रीम, बेहद बाप हम आत्माओं 🪔 को राजयोग 🧘‍♀️ की शिक्षा पढ़ाते… ओम् शान्ति अर्थात् हम आत्मा-स्टार्स ऊपर शान्ति, निराकारी, ब्रह्म तत्व में थी; इस कर्मक्षेत्र पर शरीर ले कर्म करती…

… हम आत्माएं 🕯️ ही पहले ईश्वरीय राज्य, वैकुण्ठ, सुखधाम में लक्ष्मी-नारायण 🫅🏻👸🏻 मालिक के ऊंच पद 🏆 वाले देवता थे; ईश्वरीय वन्डर ऑफ वर्ल्ड पैराड़ाइज के वर्से में deitism… आत्मा में ही राज्य करने की ताकत 💪🏻 है!

याद में रहने वाले है पुण्य आत्मा, सतोप्रधान; पवित्र, चमत्कारी; महारथी पहलवान 🤼‍♂️, विजयी 🇲🇰 (क्योंकि बाबा है पतित-पावन, सर्वशक्तिमान, वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी!)… तो दिल अन्दर कितनी खुशी होनी चाहिए; हम हेवन स्थापन कर रहे…

… पढ़ाई भी सहज है; बिगर खर्चे मम्मा कैसी नम्बरवन, होशियार 🧠, राजयोगिन बन गयी… परन्तु खबरदार, अक्लमंद भी रहना है; भाई-बहन सो भाई-भाई बनना है (फिर वहां ऊपर भी भाई-आत्माओं से मिलेंगे!)…

… यह न्यारा ज्ञान है… इस ड्रामा 🎭 में एक सेकण्ड न मिले दूसरे से… आबू सर्वोत्तम, श्रेष्ठ, बड़ा तीर्थ है जहां से सर्व की सद्गति होती; अन्त में महिमा होंगी (अहो शिवबाबा ✨ तेरी लीला!)

हम सदा स्वमान में स्थित 🎯 रह… सर्व को सम्मान देने वाले… माननीय है!

हद की इच्छाओं से परे रह… सभी श्रेष्ठ सेवा के कार्यों में, ब्राह्मण आत्माओं की उन्नति, आदि में जिम्मेवार बनने से… प्रत्यक्षफल सदा मन्दुरूस्त, खुश, मन्मनाभव रहते!

हम स्नेही वा ज्ञानी आत्माओं के प्यार का सबूत है… सबकुछ न्योछावर, कुर्बान करना… (व्यर्थ संकल्प 💭, गुण-विशेषता का अभिमान, आदि सर्व मूल कमजोरियां!)


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Murli Yog 26.9.24

Murli Yog 26.9.24

मीठे, लाड़ले, प्रिय बन एक से प्रीत, संग, पास रह कल्याणकारी 💫 खुशी, सुख, शान्ति के मालिक बनना; ऐसे रूहानी वायब्रेशन द्वारा शक्तिशाली वायुमण्डल 🌬️ बनाना अर्थात् देने से स्वतः सम्पन्न 🪙 बनना; यह है ज्ञान-घृत द्वारा सदाकाल के लिए आत्म-दीप 🪔 जगाना वा स्नेह ❤ का रिटर्न देना… Murli Yog 26.9.24!

जबकि हमें मीठा बाबा मिला है… हम लाड़ले बच्चे उनके पास आये हैं… उसके अति प्रिय ईश्वरीय सन्तान बने हैं (और इसी ईश्वरीय संग में रहते!)… तो ईश्वर से पूरा वर्सा लेने…

… सदा ईश्वरीय मत, राय पर उठते, बैठते, चलते, फिरते 🚶 याद द्वारा पावन, सतोप्रधान बनना; अर्थात् आत्म-दीप जगाने का कल्याण कर, सद्गति पानी है; सदा खुश, सुधरा हुआ क्रोध-जीत बनना है…

… तो सुखधाम की बादशाही, राज्य के मालिक लक्ष्मी-नारायण 🫅🏻👸🏻 बनने का ऊंच ते ऊंच पद 🏆 प्राप्त करते… जहां सब सतोप्रधान अर्थात् आत्म-ज्योति जगी हुई है; 21 जन्मों के लिए ज्ञान-घृत भरपूर!

तो इस वन्डरफुल 👌🏻 ज्ञान द्वारा सबको पावन बनाए, सच्ची खुशी दिलानी है; यह बाबा को मदद देनी है… रूहानी बाप, टीचर, सतगुरू की रूहानी 💐 पढ़ाई, विद्या द्वारा जन्म-जन्मांतर कल्प-कल्पान्तर का फायदा है… तो खबरदारी से चलना; यह होलीएस्ट ऑफ होली स्थान है!

ऐसे हम रूहानी वायब्रेशन्स द्वारा शक्तिशाली वायुमण्डल बनाने वाले; सबसे श्रेष्ठ सेवाधारी है… सर्व की शुभ इच्छाएं पूर्ण करने वाली मूर्ति बनने का दृढ़ संकल्प 💭 करने से; अर्थात् देने से स्वयं स्वतः सम्पन्न बन जाते!

बाबा का हमसे इतना स्नेह है कि कमी देख नहीं सकते; हमारी गलती भी अपनी समझते; हमें सम्पन्न, सम्पूर्ण 💯🔋, समान देखना चाहते… तो इस स्नेह का रिटर्न; स्वयं को टर्न करना अर्थात् सिर्फ रावण का शीश उतार देना है!

Thanks


Murli Yog 24.9.24

Murli Yog 24.9.24

सबसे प्यारे ❤️ के समीप रहने का विशेष, हीरे 💎 समान, हीरो पार्ट बजाते जीवनमुक्त सुखों के दैवी स्वराज्य 👑 की कमाई जमा करना; ईश्वरीय बुद्धि, अच्छे पुरूषार्थी अर्थात् सिर्फ हिम्मत 💪🏻 का पहला कदम उठाने से बाबा की सम्पूर्ण मदद प्राप्त करना… Murli 💌 Yog 24.9.24!

जबकि बाबा सबसे प्यारी चीज़ है… हमारी उनसे अलौकिक सगाई है… उनका परिचय मिला है… वह कहते भी हैं मामेकम् याद करो…

… तो बाबा पढ़ाने आये, उससे 15 मिनट पहले ही आकर… उस रूहानी, आत्माओं 🪔 के, कल्याणकारी 💫 बाबा की याद में बैठना है… जिससे बाबा के समीप, नजदीक, पास मुक्ति में जाते…

… फिर नये सुखधाम, स्वर्ग की राजधानी, बादशाही के वर्से में फुल पूज्य देवता; नारायण, श्रीकृष्ण-समान बनते… तो ऐसी वन्डरफुल कमाई लिए अपना याद का समय नोट करना; अर्थात् सच्चा-सच्चा चार्ट 📝 लिखने में ही फायदा, कल्याण है!

हम ब्राह्मण ही निमित्त है ज्ञान का रास्ता देने (इसलिए देवियों की पूजा 🙏🏻 होती!)… ईश्वरीय सेवा से हमारी कमाई जमा हो; साल्वेन्ट, पद्मापद्म-पति बनते… परन्तु जब उस समर्थ, वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी की याद में करते (जो अभी सम्मुख, डायरेक्ट है; भल फिर ब्राह्मण ही शिवबाबा के खज़ाने, भण्डारे से पलते!)

इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर हमें डायरेक्ट श्रीमत द्वारा ईश्वरीय बुद्धि मिली है; जो आत्मा समझ, पवित्र बन, दिव्यगुण धारण करते… बाबा भक्ति की हर बात पीछे की प्रैक्टिकल एक्टिविटी; अर्थात् वन्डरफुल बातें सुनाते (रूद्र, सालिग्राम; महालक्ष्मी, दुर्गा, आदि) … अभी वह अव्यक्त हमारे साथ है!

इस संगमयुग, स्मृति 💭 के युग में हम स्मृति-स्वरूप रह हीरो पार्ट बजाने वाले विशेष, हीरे-समान आत्माएं है… तो सदा यह दिल का गीत बजता रहे ‘वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य’… तो सदा अपना अविनाशी ऑक्युपेशन ‘मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ’ याद रहे, तब कहेंगे विशेष आत्मा!

हर बात में सिर्फ हिम्मत 💪🏻 का पहला कदम उठाने से, हम बाबा की सम्पूर्ण 💯 मदद के पात्र हैं… सिर्फ अच्छा पुरूषार्थ ✊🏻 करना है (इच्छा नहीं रखनी है), तब प्रालब्ध जमा होती! ✅


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Avyakt Murli 💌 Yog 22.9.24 (Rev. 18.1.02)

Avyakt Murli 💌 Yog 22.9.24 (Rev. 18.1.02)

अटूट स्नेह ❤, प्यार, लव की शक्ति में एकरस समाकर, लीन हो सारे विश्व 🌍 को समर्थी, मुक्ति, सुख-शान्ति; निःस्वार्थ स्नेह, सम्मान, सहारा दे सन्तुष्ट कर सहज, फर्स्टक्लास दुआएं, पुण्य की लिफ्ट प्राप्त करने वाले भाग्यवान सिकीलधे, खुश वाह-वाह, लवली जागती ज्योत बन सन शोज़ फादर करना… Avyakt Yog 22.9.24 (Rev. 18.1.02)!

आज हम स्मृति 💭 स्वरूप, समर्थ स्वरूप बच्चे स्नेह ❤ की यादों में समाये हैं (हम बाबा को स्नेह-माला पहनाते, बाबा हमें!)… इस परमात्म-स्नेह के वरदान ने हमें बाबा का बनाये, नई जीवन प्रदान की है… ब्रह्मा बाप जैसे सदा, निरन्तर स्नेह में समाये, लव में लीन रहने से यह स्नेह छत्रछाया ☂️ के रूप में हमें मायाजीत, मेहनत-मुक्त, सदा सहज रखता… सहज समर्पित करता, बाप समान बनने का सबूत दिलाता, मजे में रखता!

हम सदा समर्थ. व्यर्थ-मुक्त रहेंगे तब सारे विश्व 🌍 को समर्थी दिला सकेंगे… अभी पुकार सुन बेहद मास्टर मुक्तिदाता का पार्ट बजाना है (तो छोटी बातों से स्वतः मुक्त रहेंगे!)… दुखियों को सुख-शान्ति की अंचली देनी है (यह भी फॉलो 👣 फादर है!)

ब्रह्मा बाप का अन्त में नष्टोमोहा स्मृति-स्वरूप बनना ही अर्जुन के यादगार रूप में चलता; अभी अव्यक्त रूप में हमारे बैकबॉन, करावनहार बन सॉन शोज़ फादर द्वारा फास्ट सेवा करा रहे; तो वाह ड्रामा 🎭 वाह… अभी लास्ट सो फास्ट एक्जाम्पल बनने तीन शब्दों की अन्तिम शिक्षा रूपी शिवमंत्र को स्वरूप में लाते (मन्सा निराकारी, वाचा निरहंकारी, कर्मणा निर्विकारी!)… तो दिन में भी बीच-बीच में समय निकाल सेकण्ड में देह से न्यारे, निराकारी आत्म स्वरूप में स्थित 🎯 होना; कर्म में भी साकार कर्मेन्द्रियों द्वारा कराने वाली करावनहार, न्यारी, बन्धनमुक्त ✂️ आत्मा हूँ (जैसे बाप; इसलिए निराकारी स्थिति से निराकार बाप की याद स्वतः रहती!)

समय पर बाबा को पहचान, वर्से के अधिकारी ✊🏻 बनना, यह सर्वश्रेष्ठ भाग्य है… हम महान, फास्ट संकल्प शक्ति से जन्म लेने कारण फास्ट पुरूषार्थ, प्रालब्ध वाले सिकीलधे है (सब खुश हो वाह-वाह करते; साइंस भी हमें बेहद सेवा में साथ देंगी, सब सहज करेंगी!)… हम शक्तियों ⚡ में मायाजीत बनने की शक्ति है… फूल 🌸 सजाना भी स्नेह की निशानी, सबूत हैं!

हम फीचर्स द्वारा फ्यूचर का साक्षात्कार कराते… सेवा से समीप आते, और प्राप्त दुआओं के पुण्य का खाता एक्स्ट्रा लिफ्ट का कार्य करता… हम मधुबन 🏫 के रूहानी चांसलर सबको राजी करने की सेवा करते, इसलिए बाबा खास याद करते (अटूट प्यार में अच्छे पास है!)… गुलज़ार दादी जी की हिम्मत 💪🏻 को विशेष मुबारक है, जो रथ के रूप में ब्रह्मा बाप समान 33 वर्ष पूरे किए!

अथक, जागती ज्योत 🕯️ बन देखने, सुनने, खुशी में नाचने वाले बाबा के समीप है (तो नाम-सहित पर्सनल यादगार स्वीकार कर मीठा मुस्कराते रहना!)… लिविंग वैल्यू सिखाते लवली लिविंग बन गयी… दुआएं 🌬️ लेने का नम्बरवन, सहज पुरुषार्थ है (साथी हमें देखकर ही खुश हो जाये!)… ऐसे निःस्वार्थ सेवा के लिए बालक 👶🏻 सो मालिक बन सबकी राय को सम्मान देते आगे बढ़ना 🚶 (तो सफलता ✅ ही सफलता है!)… निःस्वार्थ स्नेह ही सबको समीप, सम्मान के सम्बन्ध में लाता; सहारा बनता, संस्कार परिवर्तन करता, माला में पिरोता… हम शक्तिशाली आत्माओं 🪔 के तपस्या का बल अभी सेवा करा रहा (अनुभूति कराने लिए अनुभूति स्वरूप बनना!)

हम सदा सन्तुष्ट रह, सन्तुष्ट करने वाले सन्तुष्टमणि है… दृढ़ता के वरदान से सहज सफलता पाते; जैसा समय. वैसी विधि 📝 से सिद्धि पाते; संकल्प रूपी बीज शक्तिशाली तो वाणी, कर्म स्वतः सफल; तो हर कर्म त्रिकाल के दर्शी बन करना… एक के रस 🍹 में एकरस रहने से और कोई प्राप्ति आकर्षित नहीं करती!


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Murli Yog 21.9.24

Murli Yog 21.9.24

मीठे, पावन मिलन से श्रृंगारे, दिव्य ✨, प्यारे प्रिन्स ?? बनने का रूहानी नशा; ‘सब अच्छा है’ की मज़बूत स्मृति ? से अचल-अड़ोल रहना… Murli Yog 21.9.24… आज विश्व शान्ति दिवस पर; शान्ति सागर ? में समाये शान्त स्वरूप, शान्तिदूत बन; सबको शान्ति की अंचली देते रहना!

हम मीठी-मीठी रूहानी आत्माएं ?️… अपने रूहानी, निराकार, पतित-पावन बाप के पास, कल्याणकारी ? मिलन मेले में अर्थात् मामेकम् याद, राजयोग ?‍♀️ की अग्नि में है… तो बाबा धोबी बन हमें योगबल से शुद्ध, पावन बनाने का श्रृंगार कर घर ले जाते; फिर सद्गति!

हम इस अकाल-तख्त पर निराकार, अविनाशी आत्मा है जो श्रेष्ठ कर्म करती… हम आत्मा ? ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती; ऐसी अविनाशी पार्टधारी है…

… हम आत्मा भाई-भाई अपने बेहद बाप से बेहद वर्सा, मिलकियत, प्रॉपर्टी में… गोल्डन, कंचन दुनिया ?; स्वर्गिक, नई बादशाही, राजधानी के मालिक बनते… हम देवता होंगे; श्रीकृष्ण स्वर्ग का पहला, प्यारा, नम्बरवन प्रिन्स; पानी भी कितना शुद्ध होंगा!

तो कितना नशा हो; फिर ऐसे पारलौकिक बाप को भूल कैसे सकते; औरों को भी परिचय क्यों नहीं दे! … ज्ञान सागर वा सूर्य ☀ हमें पढ़ाकर नॉलेजफुल बनाते; तो जरूर बोलने लिए मुख चाहिए… तो श्रीकृष्ण के ही अन्तिम जन्म के भाग्यशाली रथ में प्रवेश कर; उन्हें ग्रेट ग्रेट ग्रैण्ड फादर, प्रजापिता बनाते; जिनके हम एडाप्टेड़ ब्राह्मण बच्चे है… यह अनादि, अविनाशी बना, बनाया ड्रामा है!

हम बालक ?? सो मालिक, अधिकारी ✊? है… जिनके पास मन-घोडे को वश करने श्रीमत की मज़बूत लगाम है… तो मन-बुद्धि ? साइडसीन देखने में लग भी जाए; फिर श्रीमत की लगाम टाइट करने से मंजिल पर पहुंच जायेंगे! (AV 9.1.96; पांच दिन से!)

जो हो रहा अच्छा, जो होने वाला और भी अच्छा; इस स्मृति से अचल-अड़ोल ?? रहते… अपने परिवार के सहयोगी आत्माओं, भाई-बहनों को वस्तु, सैल्वैशन, नाम, मान, शान दे… स्वयं निर्मान रहना; यह देने में ही सदाकाल का लेना समाया हुआ है!


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Murli Yog 20.9.24

Murli Yog 20.9.24

नई. पावन, दिव्य, सुहावनी सुख, शान्ति, आनंद, तृप्ति के स्वराज्य ? की प्राप्ति से सिरताज प्रिन्स ?? बनना-बनाना; महादानी, शुभ कामना-धारी, विश्व-कल्याणकारी बन… Murli ? Yog 20.9.24!

उस सर्व आत्माओं के रूहानी, पतित-पावन परमपिता; शान्ति, आनंद सागर ?; सर्व के सद्गति दाता, बीज… उनकी याद, राज-योग-अग्नि से सतोप्रधान बनते…

… साथ में अपना स्वीट, शान्तिधाम घर भी याद करते (जहां जाना हैं!)… फिर प्राप्ति, सुख वा माल-मिलकियत के पावन स्वर्ग, पैराड़ाइज, राम राज्य को भी याद करते!

यह उत्तम बनने का सुहावना, कल्याणकारी ? संगम है; जबकि भगवान् ? शिवबाबा हमें नई दुनिया के मालिक; पवित्र, सिरताज, दैवी प्रिन्स बनाते… हम सच्चे खुदाई खिदमतगार सबको समझाते, एक से अनेक होते; इसलिए यह बड़ी, ईश्वरीय यूनिवर्सिटी ? चाहिए!

आत्मा में ही पार्ट है, वा अच्छे-बुरे संस्कार बनते जिसका फल ? मिलता; अभी हम ग्रेट ग्रेट ग्रांड-फादर के एडाप्टेड़ ब्राह्मण बच्चे है… यह वैरायटी धर्मों का बेहद झाड़, विराट लीला, कुदरती ड्रामा, बाजोली का खेल है जो रिपीट होता; जिसका क्रियेटर, डायरेक्टर स्वयं एक्ट में आया है!

हम समर्थ होने कारण… सर्व शक्तियों ⚡ केे खज़ाने के… अधिकारी है!

फीलिंग, किनारा, परचिंतन नहीं… परन्तु जो बाबा के संस्कार वह हमारे ओरिजनल संस्कार… सदा विश्व-कल्याणकारी, शुभ चिन्तनधारी; और सर्व लिए शुभ-भावना शुभ कामना-धारी! (AV 9.1.96; चार दिन से!)

महादानी कभी किसके प्रति यह बदले, सहयोग दे, कदम आगे बढ़ाये; ऐसी भावना नहीं रखते (वह भी परवश, शक्तिहीन से!)… इन्साफ, आदि मांगने से भी परे रहने वाले ही तृप्त रह सकते!


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Murli Yog 19.9.24

Murli Yog 19.9.24

सर्वगुण सम्पन्न ?, दिव्य; बाप समान सुख, आनंद के सागर ? बनने की बेहद उन्नति, फायदा, कल्याण ? के लिए पवित्र याद की ताकत ??; बाबा के पास रहना… Murli Yog 19.9.24!

बेहद टीचर ने हम आत्माओं ? से बात कर, बहुत सहज ज्ञान का तीसरा नेत्र दे स्वदर्शन चक्रधारी ? बनाया है… अभी मुख्य श्रीमत है अपनी उन्नति, कल्याण, फायदे लिए अपने से बातें कर… अटेन्शन से, और भूल; अपने बुद्धि की याद, योग अपने बेहद बाप के साथ रखना!

?? इस ताकत से ही पावन, सतोप्रधान बन… लिबरेट हो; मुक्ति, घर में बाबा के पास जाते… फिर नये स्वर्ग की बादशाही, राज्य के मालिक बनने का ऊंच पद ? पाते; वर्से में (सद्गति!)

आत्मा ही सुखी, सर्वगुण सम्पन्न वा बाप समान ज्ञान, सुख, आनंद सागर बनती (सबको सुख देने वाली!)… तो डायरेक्ट मदद करने युक्ति से ट्रांसफर करना; बाबा ही बागवान, खिवैया, सर्व का सद्गति दाता, ऊंच ते ऊंच भगवान् ? है; सबको कशिश होंगी!

हम दृढ़ प्रतिज्ञा से… सब सहज पार करने वाले… मास्टर सर्वशक्तिमान ✊? है!

कामनाओं से न्यारे होने से सर्व कामनाएँ पूरी होती… तो facilities मांगने के बजाए मास्टर दाता बन सैल्वेशन, आदि दो… तो सदा के लिए महान बन; सदा की उन्नति, सफलता ✅, प्राप्ति होती!

छोटी-सी व्यर्थ बात, दृश्य, वातावरण ? का प्रभाव… पहले मन ? पर होता; फिर बुद्धि सहयोग देती, करते-करते संस्कार बनता (जो युद्ध कराता, खुशी गुम करता!)… ब्राह्मण अर्थात् रूलर इनसे मुक्त है! (AV 9.1.96; तीन दिन से!)


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पवित्रता अर्थात् क्या? | man ki pavitrata in hindi

पवित्रता अर्थात् क्या? | man ki pavitrata in hindi

Q. योग ? में आत्मा ✨ के 7 अनादि गुणों ? (ज्ञान ?, पवित्रता, शान्ति, प्रेम ❤️, सुख, आनंद, शक्ति ⚡) की अनुभूति ? में आप ज्ञान के बाद पवित्रता लेते… तो योग में पवित्रता अर्थात् क्या? (ज्ञान का तो पहले भेजा था!)

A) पवित्रता अर्थात् देह-दुनिया बिल्कुल स्मृति ? में न आये… मन-बुद्धि को कोई भी स्थूलता अंश-मात्र आकर्षित न करे (सिर्फ आत्मा, ☝? परमात्मा, दिव्यगुण, घर, सतयुग, आदि की दिव्य अनुभूतियों में रहे; स्वतः, निरन्तर योगी!)… बुद्धि का चित्र भी एक एंगल में स्थिर! ?

?? इस मूल धारणा में अनेक धारणाएं समाई हुई है ??:

  1. निरन्तर स्वभाविक आत्मिक दृष्टि ?️ रहै… थोड़ा भी देह दिखे, तो याद रहे कि आत्मा इस साधन ? को चला रही (फॉकस आत्मा पर!)
  2. पवित्रता अर्थात्‌ आत्म-अभिमानी; निरन्तर देह-भान से परे… थोड़ा भी देह याद आये; तो स्मृति रहे यह बाबा की अमानत ? हैं, सेवा के लिए अमूल्य ? सौगात ?! ?
  3. कम संकल्प ? में ही योगयुक्त हो जाते (एक संकल्प में स्थित होना भी सहज!)… मन सहज धैर्यवत होता, स्वतः ज्ञान का ही चिन्तन चलता,… बुद्धि / आंखें ? स्थिर, शरीर अशरीरी (statue) सहज… दिव्यगुणों के संस्कार नेचुरल नेचर! ?
  4. पवित्रता अर्थात् एक बाबा दूसरा न कोई… कोई याद आये, तो भी वह बाबा के बच्चे लगे, अर्थात्‌ बाबा याद आये! ?
  5. पवित्रता अर्थात् चित्त बिल्कुल साफ-स्वच्छ-खाली; इसलिए मुरली ? की हर पॉइंट सुनते (साथ में)… उसकी अनुभूति अन्दर समाती जाती, स्वरुप बनते जाते! ?
  6. बाबा ने कहा है पवित्रता अर्थात् दिनचर्या ? जरा भी ऊपर-नीचे भी न हो… साधारणता से भी परे (अर्थात्‌ निरन्तर विशेष!)

B) इस सम्पूर्ण पवित्रता की कई विशेष प्राप्तियां है… जैसे:
° पवित्रता में शान्ति, प्रेम, सुख, आनंद आदि सर्व दिव्यगुण व प्राप्तियां ? समाई हुई है! ?
° बहुत सारी शक्ति ⚡ बचती; अथक, हल्के रहते
° पवित्र आत्मा सदा ही बाबा को बहुत समीप, साथ अनुभव करती ?
° सभी धारणाएं / श्रीमत / मर्यादा नेचुरली प्रिय ❤️ लगती!
° सेवा में स्वतः एक अद्भूत जौहर ?️ भर जाता


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man-ki-pavitrata-in-hindi

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A) पवित्रता अर्थात् देह-दुनिया बिल्कुल स्मृति ? में न आये… मन-बुद्धि को कोई भी स्थूलता अंश-मात्र आकर्षित न करे (सिर्फ आत्मा, ☝? परमात्मा, दिव्यगुण, घर, सतयुग, आदि की दिव्य अनुभूतियों में रहे; स्वतः, निरन्तर योगी!)… बुद्धि का चित्र भी एक एंगल में स्थिर! ?

?? इस मूल धारणा में अनेक धारणाएं समाई हुई है ??:

  1. निरन्तर स्वभाविक आत्मिक दृष्टि ?️ रहै… थोड़ा भी देह दिखे, तो याद रहे कि आत्मा इस साधन ? को चला रही (फॉकस आत्मा पर!)
  2. पवित्रता अर्थात्‌ आत्म-अभिमानी; निरन्तर देह-भान से परे… थोड़ा भी देह याद आये; तो स्मृति रहे यह बाबा की अमानत ? हैं, सेवा के लिए अमूल्य ? सौगात ?! ?
  3. कम संकल्प ? में ही योगयुक्त हो जाते (एक संकल्प में स्थित होना भी सहज!)… मन सहज धैर्यवत होता, स्वतः ज्ञान का ही चिन्तन चलता,… बुद्धि / आंखें ? स्थिर, शरीर अशरीरी (statue) सहज… दिव्यगुणों के संस्कार नेचुरल नेचर! ?
  4. पवित्रता अर्थात् एक बाबा दूसरा न कोई… कोई याद आये, तो भी वह बाबा के बच्चे लगे, अर्थात्‌ बाबा याद आये! ?
  5. पवित्रता अर्थात् चित्त बिल्कुल साफ-स्वच्छ-खाली; इसलिए मुरली ? की हर पॉइंट सुनते (साथ में)… उसकी अनुभूति अन्दर समाती जाती, स्वरुप बनते जाते! ?
  6. बाबा ने कहा है पवित्रता अर्थात् दिनचर्या ? जरा भी ऊपर-नीचे भी न हो… साधारणता से भी परे (अर्थात्‌ निरन्तर विशेष!)

B) इस सम्पूर्ण पवित्रता की कई विशेष प्राप्तियां है… जैसे:
° पवित्रता में शान्ति, प्रेम, सुख, आनंद आदि सर्व दिव्यगुण व प्राप्तियां ? समाई हुई है! ?
° बहुत सारी शक्ति ⚡ बचती; अथक, हल्के रहते
° पवित्र आत्मा सदा ही बाबा को बहुत समीप, साथ अनुभव करती ?
° सभी धारणाएं / श्रीमत / मर्यादा नेचुरली प्रिय ❤️ लगती!
° सेवा में स्वतः एक अद्भूत जौहर ?️ भर जाता


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सुख अर्थात् क्या? | what is sukh

सुख अर्थात् क्या? | what is sukh

Q. 7 गुण ? (ज्ञान ?, पवित्रता ✨, शान्ति, प्रेम ❤️, सुख, आनंद, शक्ति ⚡) की अनुभूति में ज्ञान ?, पवित्रता, शान्ति, प्रेम ? के बाद सुख आता… तो सुख अर्थात्‌ क्या?

A. सुख अर्थात्‌ एक बहुत मीठी, हल्की-सी गुड-फीलिंग जो निरन्तर ? अन्दर बहती रहे! ?… इसे कई नाम दे सकते:

  1. सुख अर्थात्‌ सन्तुष्टता… जो बेहद की अर्थात् subconscious तक भरी हुई हो! ?
  2. सुख अर्थात्‌ तृप्ति… जो गहरी समाई हो, बहुत समय ⏰ के सतोगुणी ? अनुभवों के फलस्वरुप! ?
  3. सुख अर्थात्‌ सर्व प्राप्तियों की भरपूरता… जबकि बाबा ने हमें सभी ज्ञान-गुण-शक्तियों के खज़ाने ?, सर्व सम्बन्धों की अनुभूति से सम्पन्न किया है! ?
  4. सच्चा सुख अर्थात् अतीन्द्रिय सुख… जो बाबा के ज्ञान ?-चिन्तन ?, बाबा से योग ? द्वारा ही प्राप्त होता!
  5. सुख अर्थात् सर्व आवश्यकताएं पूरी… क्योंकि वास्तव में आत्मा को 7 अनादि गुणों ? की ही आवश्यकता होती; जिसका बाबा तो अखुट सागर ? है!
  6. सुख की अनुभूति बढ़ती जब हमारी आत्म-बैटरी ? चार्ज होती… इसके लिए तो बाबा ने अमृतवेले से रात्री हमें ऐसी नम्बरवन योगी दिनचर्या ? दी है! ?

B) सुख से कुछ विशेष प्राप्तियां:
° सुखी आत्मा नेचुरली प्रसन्न, हर्षित ? रहती; इच्छा मात्रम अविद्या!
° सुख का ही ऊंच स्तर आनंद है, जिसकी अनुभूति में सर्व शक्तियां ⚡ strongerge होती!
° उनके प्रकंपन ✨ से औरों को भी सम्पन्नता की अनुभूति होती!


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सतोप्रधान अर्थात् क्या? | satopradhan meaning

सतोप्रधान अर्थात् क्या? | satopradhan meaning

Q. सतोप्रधान बनना अर्थात् क्या?

A. सतोप्रधान अर्थात् आत्मा रूपी battery को फुल चार्ज करना (तमो से रजो से सतो, 1% से 25%, 50% और आखिर 100%!) ?

इससे मुख्य प्राप्ति – हम सदा अपने सतोगुण (ज्ञान, पवित्रता, शान्ति, प्रेम, सुख, आनंद, सर्व शक्तियां वा सारे दिव्यगुणों) के अनुभव में रहेंगे (बिना किसी आधार, परिस्थिति-व्यक्ति-कमजोर शरीर होते भी!)… और भविष्य में तो नंबरवन सूर्यवंशी पद प्राप्त कर, प्रकृति का सम्पूर्ण सुख प्राप्त करेंगे (सारा कल्प भी विभिन्न प्राप्तियां होती रहेंगी, क्योंकि battery धीरे-धीरे उतरती) ?

योग द्वारा सतोप्रधान बनने की विधि है मन को स्वच्छ -शुद्घ कर, अशरीरी (Statue!) हो… अपनी बुद्धि रूपी तार को powerhouse (निराकार ज्योति-बिन्दु स्वरूप शिवबाबा, सर्व गुण-शक्तियों के सागर!) से लगाना, तो इस स्मृति की करन्ट से सतोगुण का अनुभव हो आत्मा रूपी battery चार्ज होती… बुद्धि का कनेक्शन जारी रखने मन द्वारा भी भिन्न-भिन्न योग के संकल्प करते रहना! ?

जीवन में लगातार battery को चार्ज करते रहने की सर्वोत्तम विधि है “चार्ट” … भल शुरू में कई बार “0, No, कम संख्या” लिखनी पड़े; परन्तु यही चार्ट हमारे पुरूषार्थ की गाड़ी को धक्का देंगी… फिर जैसे ही थोड़ी-सी भी प्राप्ति होंगी, तो चार्ट की लगन लग जायेंगी, और फिर तो प्राप्ति ही प्राप्ति है! ?


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