Becoming Holy & Happy always! | होली पर्व का अध्यात्मिक रहस्य | Avyakt Murli Churnings 17-03-2019
होली का अध्यात्मिक रहस्य
वह एक दिन होली मनाते, हमारा तो पूरा संगमयुग होली है!… होली अर्थात holy पवित्र बनने-बनाने का यादगार, बाबा के संग में रंग जाना… यही सार सभी होली की विधियों में समाया हुआ है:
- पहले है… सभी बुराई रूपी अपवित्रता को जलाकर भस्म कर देना… बाबा के संग द्वारा अविनाशी पवित्रता के रंग में रंग जाना!
- उसके बाद ही… हम एक बाप की संतान आत्मा भाई-भाई इस स्मृति में रह अविनाशी खुशियां मना सकते… दिव्य बुद्धि रूपी पिचकारी में ज्ञान रंग के संग द्वारा औरों को भी उत्साह में ला सकते हैं
- फिर है… स्नेह-सम्पन्न हो मिलना सभी से
इस अविनाशी पवित्रता के फल-स्वरूप हमारा मूड सिर्फ एक दिन खुश नहीं रहता, लेकिन सदाकाल का holy और हैप्पी मूड बन जाता!
भक्ति है हमारा यादगार!
सदा खुशी में रहना है, कि हम समझ से देख रहे हैं… कि एक तरफ हम सच्चा त्योहार मना रहे हैं, और दूसरी ओर उसका यादगार मनाना भी देख रहे हैं:
- हम सदा याद-स्वरूप में रहते हैं, तो हमारे हर कर्म का यादगार पूजा जाता है
- हम सदा प्रेम स्वरूप रहते, वह प्रेम से कीर्तन गाते
- हमारी बहुत श्रेष्ठ जीवन कहानी है, तो उसपर भक्ति में कथाएं बनती
- बाबा नें हमें महिमा-योग्य बनाया, वह महिमा करते
अन्य पॉइन्ट्स
3. बाप के वर्से के अधिकारी अर्थात शक्तिशाली (मास्टर सर्वशक्तिमान), कमझोरी से सदा के लिए मुक्त… हमें तो सर्वज्ञ बाबा मिला है, इसलिए अविनाशी खुशी में नाचते रहना है, खुशी प्रेम ज्ञान आनंद के झूले में झूलते रहना है बाबा के साथ… नीचे आना ही नहीं है (मैले होने), कुछ भी हो जाई!
4. एक बल एक भरोसा अर्थात मधुबन से जो मुरली चलती है उस पर पूरा-पूरा निश्चय-बुद्धि… बाकी सब रास्ते माया के है, उनमें भटकना नहीं है
सार
तो चलिए आज सारा दिन… मैं शुध्द-पवित्र आत्मा, पवित्रता के सागर की सन्तान हूँ… इसी स्मृति-संग में रह अविनाशी खुशी में नाचते-झूलते रहे… औरों को भी अविनाशी उत्साह का रंग लगाते, खुशियों की दुनिया सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!