Becoming a ruler over the self! | Avyakt Murli Churnings 18-07-69

Becoming a ruler over the self! | Avyakt Murli Churnings 18-07-69

1. इस पाठशाला का पहला पाठ हैं पुराने-पन (देह-दुनिया-सम्बन्धी) से मरजीवा बनना… पुराने संस्कार भी ऎसे लगे जैसे किसी और के है, पराये शूद्र संस्कार हम स्वीकार नहीं कर सकते, अब नया जीवन है

2. निमित समझने से (सेवा में भी, शरीर में भी, तो अधीन नहीं होंगे) नम्रता आती, जिससे सफलता मिलती (सब झुकते)

3. पहले दृष्टि बदलनी है (आत्मा भाई-भाई की, तो सृष्टि पुरानी लगती), स्थिति-परिस्थिति-गुण-कर्म सब बदल जाएँगे

4. स्वराज्य अधिकारी बनने से ही फिर वहां राजा बनेंगे… अधिकारी बनने के लिए उदार-चित्त बन पढ़ने-पढ़ाने में बिजी रहना… अव्यक्त दृष्टि, मन की वृत्ति से सेवा करनी है

सार

तो चलिए आज सारा दिन… सदा स्वराज्य-अधिकारी माया-जीत बन, आत्मिक दृष्टि वा निमित्त-नम्र भाव से… सफलता-पूर्वक श्रेष्ठ स्थिति-गुणों द्बारा सेवा करते, सतयुग बनाये चले… ओम् शान्ति!


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