Considering ourselves a guest! | (22nd) Avyakt Murli Churnings 17-07-69
1. अपने को देह-दुनिया-पदार्थ से मेहमान समझने से सहज लगाव-मुक्त व्यक्त में रहते आत्म-अभिमानी अव्यक्त-स्थिति में रहेंगे, सम्पूर्ण बनते जाएँगेे, औरों के मन के भावों को भी जान सकेंगे… फिर वहां नई विश्व के मालिक बनेंगे
2. यह समय है आपने जमा के खाते को बढ़ाकर, न सिर्फ खुद सन्तुष्ट रहना, बल्कि औरों को (भिखारी आत्माओं को) भी दृष्टि-बोल दारा सन्तुष्ट करना… हम रचयिता है, जितनी बड़ी रचना उतनी वहां बड़ा राज्य
सार
तो चलिए आज सारा दिन… सदा अपने को इस देह-दुनिया में मेहमान समझ सहज आत्म-अभिमानी अव्यक्त-स्थिति का अनुभव करते… सदा सन्तुष्ट रह सबको दृष्टि-बोल द्बारा सन्तुष्ट करते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!
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