Being a true trustee! | Avyakt Murli Revision 18-09-69

Being a true trustee! | Avyakt Murli Revision 18-09-69

1. आकृति के बदले अव्यक्त (आत्मा, जो मुख्य आकर्षण है) को देखने से आकर्षण-मूर्त बन जाएँगे, अब यही अव्यक्त सेवा करनी है… चित्र को न देख विचित्र (चेतन आत्मा) वा चरित्र को देखना है (तो चित्र के भान से परे रहेंगे)… स्वयं को शक्ति समझने से आसक्ति (देह-पदार्थ की) से बचे रहेंगे

2. सबकुछ समझते हुए भी सदा अव्यक्त नहीं रह सकते, क्योंकि देह आकर्षित कर लेता है… इसके लिए बीच में संयम रखना है, तो स्वयं और सर्वशक्तिमान याद रहेंगे (और समय), अलबेलेपन से बचे स्थिति अच्छी रहेंगी, तो सब अच्छा रहेगा… त्रिनेत्री-त्रिकालदर्शी-त्रिलोकीनाथ बन जाएँगे

3. जबकि हमने बाबा को कह दिया “मैं तेरा” (तन-मन-धन सहित, अर्थात सरेण्डर), आप जहां बिठाए… तो स्वतः मोहजीत बन जाएँगे, मन मन्मनाभव रहेगा, तन-धन भी ठीक रहेगा

सार

तो चलिए आज सारा दिन… सदा अपने को अव्यक्त शक्ति आत्मा समझ, सबकुछ बाबा का समझ, हर कर्म में बाबा-मर्यादाओं को बीच में रखे… तो सदा मन्मनाभव द्बारा श्रेष्ठ स्थिति अनुभव करते, सबकी सेवा करते, सतयुग बनाते रहे… ओम् शान्ति!


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