Considering everything as Baba’s Amanat! | (40th) Avyakt Murli Revision 25-12-69

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1. जैसे बाबा हम रूहों से खुशबू लेते, हमें भी सदा रूह समझ हर संकल्प-बोल-कर्म में रूहानियत लानी है… इसके लिए सदा स्वयं (मन-संस्कार), सर्व (जिज्ञासू-सेन्टर) को अमानत समझना है, तो अनासक्त रहेंगे, रूहानियत आएंगी… तब हमारे फीचर्स में फ़रिश्ते-समान संकल्प-बोल-कर्म में हल्कापन आएँगा, हम तुरन्त परख-निर्णय कर सकेंगे

2. हम ऑल-राउंडर तो है, अभी विश्व महाराजन् बनना है… अर्थात सब के साथ ऎसे सम्बन्ध हो, जो सब स्नेह-पुष्पों की वर्षा करे… इसके लिए सब के सहयोगी बनना है, नजदीक सम्बन्धि वह, जो सबको कुछ न कुछ सहयोग देंगे

3. हमने उंगली दी है पर्वत उठाने लिए… लेकिन अब एक-एक पुष्प अकेले के बजाए, सबको गुलदस्ते के रूप में साथ रूप-रंग से चमकना है… तब सर्विस में सफलता मिलेंगी, सब बाबा से जुड़ेंगे

4. हम है आत्माओं के सम्बन्ध की नीव डालने वाले, जितना हम मजबूत qualification वाले होंगे, उतना वह क्वालिटी बनेंगे… इसके लिए हमें बाप-समान बनना है

सार

तो चलिए आज सारा दिन… अपना सबकुछ बाबा की अमानत समझ, सदा अपने को रूह समझ रूहानियत से भरपूर रह, फ़रिश्ते समान हल्का बन… सबके स्नेही-सहयोगी बन, सेवा में सफलता पाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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