Becoming a spiritual projector! | (47th) Avyakt Murli Revision 02-02-70

Becoming a spiritual projector! | (47th) Avyakt Murli Revision 02-02-70

1. हमारे मस्तक-नयन प्रोजेक्टर है, जितनी रूहानियत की लाइट होंगी (और साक्षी होंगे), उतना बाबा-तीनों लोकों का सबको साक्षात्कार करा सकते… जितनी लाइट-पावर ज्यादा, उतना पुरुषार्थ-भविष्य-सेवा स्पष्ट होंगी, अपनी और सबकी… ऎसी लाइट होंगी, जो अंत में बुरी वृत्ति वाले भी आएँ, तो उनको शरीर दिखेगा ही नहीं, एसी पावर बढ़ानी है

2. हम handle है, सेवा के जिम्मेवार, जिनके द्बारा heads कार्य करते, तो उनके राइट hand बनना है… सेवा में सफलता लिए नशा और निशाना (पुरुषार्थ-सेवा का) ठीक चाहिए… एक सेकंड-संकल्प भी स्वयं-सर्व की सेवा के बिना न जाए… निरन्तर योगी बनने लिए व्यर्थ संकल्पों से बचे रहना है, इसके लिए स्वयं को गेस्ट समझना है, तो रेस्ट नहीं लेंगे, और वेस्ट से बचे रहेंगे

3. सर्विसएबुल के साथ पावरफुल, ऐक्टिव के साथ एक्यूरेट बनना है (हर बात में, मन्सा-वाचा-कर्मणा)

सार

तो चलिए आज सारा दिन… सदा अपने को गेस्ट समझ, वेस्ट से बचे, रूहानियत की लाइट-शक्ति से भरपूर रह… सबको रुहानी प्रोजेक्टर बन, बाबा से जुड़ातेबाबा का राइट hand बन सेवा करते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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