The true celebration! | (48th) Avyakt Murli Revision 05-03-70
1. बाबा मिलन ही मनाना है… और दूसरा मनाना है, आप समान बनाना (उनसे प्रतीज्ञा का जल लेना)… जितना खुद न्योछावर होंगे औरों की भी क्यू लगेगी, इसलिए क्यों-क्यों कि क्यू को पहले समाप्त करना है
2. पाण्डव दल में एसा बल भरना है, कि माया किसी के अन्दर आसुरी संकल्प भी न ला सके, तब प्रत्यक्षता होगी… इसलिए खुद ऎसा मजबूत बनाना है, एक सेकंड में सुख-शान्ति की प्यास बुझा सके, ऎसा दर्शनीय मूर्त बनना है… स्नेह-सहयोग-संगठन-सहनशीलता के बल से सम्पन्न
3. हमारे स्थान (मधुबन) का महत्व हमसे ही है, इसके लिए अपनी प्रतिज्ञा को बढ़ाना है… एकता, एक की लगन में मगन, एकरस ही दिखाई दे, तब प्रत्यक्षता होंगी
4. स्वयं भगवान् हमें वन्दे-मात्रम कहते, इसी स्मृति में रहने से नयन-चेहरा-बोल-चलन में खुशी झलकेगी… सब के दुःख कट हो, हर्ष-खुशी में आ जाएंगे… अपने संकल्प-संस्कार-कर्म-समय को चेक-चेंज करते, रोज़ कोई स्लोगन को प्रैक्टिकल में लाना है
सार
तो चलिए आज सारा दिन… सदा प्रश्नों से पार रह, बाबा से मिलन मनाते (एक की लगन में मगन, न्योछावर), अपने को मजबूत-एकरस-खुशी से भरपूर बनाते रहे… तो हम दिव्य दर्शनीय मूर्त बन, सबको की खुशी से भरपूर करते, बाबा से जुड़ाते, प्रत्यक्षता लाते, सतयुग बनाते रहेंगे… ओम् शान्ति!
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