Finishing the margin! | (54th) Avyakt Murli Revision 21-05-70

Finishing the margin! | (54th) Avyakt Murli Revision 21-05-70

1. बाबा हमारी मार्जिन (कितना आगे जाना बाकी है) और माइट (शक्ति) देख रहे

2. ज्ञान का बीज अविनाशी है, उसमें जितना बाबा के संग (पुरुषार्थ) का जल देते, उतना फल-स्वरूप बनते… पुरूषार्थ की भिन्नता मिटाने लिए चाहिए एकता, जिसके लिए:

  • एकनामी (एक का ही नाम लेने वाले)
  • इकॉनमी (संकल्प-समय-ज्ञान की)

तो मैं-पन बाबा-बाबा में समा जाएँगा, जो ही माया-विघ्न से बचने की ढाल है

3. स्पष्टता से आती सरलता… जो जितना सरल, उतना याद भी सरल होगी, औरों को भी सरल पुरूषार्थी बना देगा… यही यादगार दे जाना है

सार

तो चलिए आज सारा दिन… जो भी मार्जिन बाकी है, उसे सम्पन्न करने ज्ञान से भरपूर बन बाबा के संग में रहते शक्तिशाली बन… सबके साथ सरलता-एकता से चलते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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