The mirror of Avyakt stage! | (57th) Avyakt Murli Revision 07-06-70

The mirror of Avyakt stage! | (57th) Avyakt Murli Revision 07-06-70

1. सम्पूर्णता के समीप अर्थात, अव्यक्त भाव द्बारा दूसरों के मन के भावों को भी तुरन्त परख सके… तो हम भी व्यर्थ से परे, एकरस रहेंगे… दर्पण को साफ-स्पष्ट करने लिए चाहिए सरलता-श्रेष्ठता-सहनशीलता… स्मृति-वाणी-कर्म-सम्बन्ध सब प्लेन, तब प्लान-प्रैक्टिकल एक होंगे, प्लेन (एरोप्लेन) समान सफलता मिलेंगी… सफलता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है

2. दिव्य-मूर्त (वा सम्पूर्णता के समीप) अर्थात सबको सम्मान देने वाले, तब ही विश्व सम्मान देगा… औरों के समीप अर्थात उनके संस्कारों के समीप, सदा हाँ जी (तो उनके संस्कार भी सरल हो जाएंगे)

3. हम संकल्प-बोल-कर्म द्बारा लाॅ-मेकर्स है… विधाता याद रहने से विधि-विधान दोनों ठीक रहते, सफलता सहज मिलती… साहस-शक्ति का पेपर भी क्रॉस करना है

4. बंधन होते हुए भी, अपने को ईश्वरीय सेवा के बंधन में बांधने के बल से, बंधन समाप्त होते… सम्पर्क में आने से औरों को भी बचा सकते, आप-समान बना सकते, ऎसी कमाल की सर्विस करनी है

5. व्यक्त भाव से परे, एक सेकण्ड की शक्तिशाली अव्यक्त स्थिति भी लम्बा समय चलती… जिसमें सर्व प्राप्तियां है, मेहनत कम, सफलता अधिक मिलती

6. अव्यक्त-मूर्त बाबा से जो अन्तर है, उसे अन्तर्मुखी हो मिटाना है, संस्कारों को समीप लाना अर्थात समीप बनना… बाप-समान विघ्नों से पार होने, स्नेह में डूब जाना है (अपने को मिटा देना, बाबा से मिलाना)… अपने गुप्त स्नेह-सफलता के संस्कार को प्रत्यक्ष में लाना है, फिर अपने अव्यक्त वा भविष्य रूप को सामने रखना है

7. स्नेह का रिटर्न सहयोग देना है, मास्टर सर्व समर्थ बन… बिन्दु रूप (ब्रेक) सहज करने, शुद्ध संकल्पों में रमण करना है (मोड़ने की शक्ति)… तो बिन्दु रूप सहज हो जाएँगा

सार

तो चलिए आज सारा दिन… अपनी शक्तिशाली अव्यक्त स्थिति के दर्पण को स्पष्ट रख, सदा बाबा के प्यार में डूबे रह… अपनी श्रेष्ठ लाॅ-मेकर्स की स्मृति द्बारा सबको सम्मान देते, सबके संस्कारों के समीप रहते, ईश्वरीय सेवा करते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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