Becoming world maker! | (61st) Avyakt Murli Revision 25-06-70

Becoming world maker! | (61st) Avyakt Murli Revision 25-06-70

1.

  • जितना स्वयं के चेकर बनते
  • उतना मेकर बनते (लॉ मेकर, न्यू वर्ल्ड मेकर, पीस मेकर… सेवा में भी, हमारे सामने सब realize करेंगे)
  • तब रूलर बनेंगे

2. माया-समय के अधीन होने के बजाय… अधिकारी-रूलर समझने से उदार-चित्त बन उदाहरण स्वरूपउद्धार करेंगे

3. माया पहले सूक्ष्म आलस्य-सुस्ती के रूप में आती (फिर विकराल रूप लेती), जिसके चेकर बनना है… सूक्ष्म रूप-संकल्प जैसे कि:

  • श्रीमत से verify न कराना
  • 6-8 घंटा अव्यक्त स्थिति नहीं रह सकती
  • कम सीट है, हम नहीं बन पाएंगे
  • तन-मन की सुस्ती
  • फिर कर लेंगे
  • प्रवृत्ति में रहते, वैराग भूल जाना
  • हमें ईश्वरीय सम्बन्ध (साकार से बुद्धि द्बारा सहयोग लेने का सम्बन्ध) से दूर करते

तीव्र पुरूषार्थी बन इस सुस्ती को हाई जम्प देना है, तो बहुत बातों से बच जाएंगे… प्रतीज्ञा से परिपक्वता आती… अब नहीं तो कब नहीं

4. हम पुराने स्नेही है… बाबा हमें इशारों की अव्यक्त भाषा तरफ ले जाते, जिससे परख-शक्ति दूरांदेशी-बुद्धि बनती, शक्तिशाली बनते… जितना बुद्धि-समय-सीट का प्रोग्राम फिक्स, तो प्रोग्रेस-कार्य भी फिक्स… सम्पूर्ण बन सबकी सम्पूर्ण बनाने का सबूत देना है

सार

तो चलिए आज सारा दिन… सदा अपने को अधिकारी-सम्पूर्ण स्थिति में स्थित कर, बाबा की स्नेह भरी यादों में रह… स्वयं के चेकर बन, माया-सुस्ती से परे रह, विश्व के मेकर-रूलर बनते-बनाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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