The gift of divine eyes! | दिव्य नेत्र | Avyakt Murli Churnings 08-09-2019

The gift of divine eyes! | दिव्य नेत्र | Avyakt Murli Churnings 08-09-2019

मुरली सदा क्लास में पूरी सुननी चाहिए… अतः इस लेख का सिर्फ यह उद्देश्य है, कि मुरली सहज याद रहे, ताकि सारा दिन उसका अभ्यास-धारण करना सहज हो जाए… लेकिन मुरली पहले क्लास में ही सुननी है

सार

आज त्रिकालदर्शी बाप अपने त्रिनेत्री बच्चों का तीसरा नेत्र कितना स्पष्ट-शक्तिशाली है, वह देख रहे… बाबा ने 100% शक्तिशाली दिया है, हम यथाशक्ति प्रयोग करते… अब श्रीमत की दावा द्बारा फिर से 100% शक्तिशाली दिव्य-नेत्र बनाना है… यह दिव्य-नेत्र है:

  • दूरबीन… जिससे तीनों लोकों-कालों को स्पष्ट अनुभव कर सकते, अपना देवता-पूज्य-फ़रिश्ता स्वरूप सब
  • यंत्र… जिससे यथार्थ आत्मिक-स्वरूप और आत्मा के दिव्य गुण ही दिखते… यंत्र ठीक नहीं, तो ही काले अवगुण दिखते
  • टी.वी… जिससे हमारी पूरी 21 जन्मों की फिल्म, ताज-तख्त-तिलक, राज्य के नजा़रे देख सकते

सदा दिव्य-नेत्र से देखने (वा दिव्य-बुद्धि से सोचने) सेे complaint समाप्त, complete बन जाएँगे… अभी दिव्य प्राप्तियों से सम्पन्न-समर्थ बनना है

पार्टियों से

1. हम सर्व सम्बन्धों के स्नेह में समाए रहने वाली गोपिकाएं है, इसलिए सहजयोगी निरन्तर-योगी है, यही संगमयुग का अनुभव विशेष वरदान है… सम्बंध निभाते, उस शक्ति से निरन्तर लगन में रहना

2. ऊंची स्थिति में रहने से विघ्नों का प्रभाव नहीं पड़ता (जैसे स्पेस में धरती का आकर्षण नहीं)…स्नेह emerge कर मोहब्बत में रहने से मेहनत से छूट जाएँगे, शक्तिशाली रहेंगे

चुने हुए महावाक्य

1. शुभ चिन्तक बनने से सब स्वतः स्नेही-सहयोगी-समीप सम्बंध में आते, उन्हों भी सेवा का बल मिलता

2. अभी हमें माइट बन सबको माइक बनाना है (उनके अनुभव बाबा को प्रत्यक्ष करेंगे), औरों की भी एनर्जी ईश्वरीय कार्य में लगानी है… अब वारिस बनाने की सेवा करनी है, हम विश्व कल्याणकारी है, बाबा के हाथो में हाथ

3. बड़ी दिल से सेवा करनी-करानी है, संकुचित दिल नहीं रखना किसी के प्रति… बड़ी दिल से मिट्टी भी सोना, कमझोर से शक्तिशाली, असंभव भी सम्भव होता… सहयोगी भी धीरे-धीरे सहजयोगी बन जाएँगे

सार (चिन्तन)

तो चलिए आज सारा दिन… सदा दिव्य-बुद्धि से सोचते और दिव्य-नेत्र से देखते, सदा अपने श्रेष्ठ देवता-फ़रिश्ता स्वरूप अनुभव करते, बाबा के प्यार में डूबे रह… सदा श्रेष्ठ-ऊँची स्थिति का अनुभव करते, सबको सेवा में सहयोगी-सहजयोगी बनाते, सतयुग बनाए चले… ओम् शान्ति!


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