The most elevated stage! | (77th) Avyakt Murli Revision 03-12-70

The most elevated stage! | (77th) Avyakt Murli Revision 03-12-70

1. निरहंकारी-निराकारी-अलंकारी बनना है (तो देह-अहंकार नहीं आएँगा), यह भी मन्मनाभव है… तब ही सर्व का कल्याण होगा (स्वयं का भी)… हम है ही विजयी रत्न, संकल्प-कर्म में विजयी

2. मास्टर सर्वशक्तिमान की श्रेष्ठ स्व-स्थिति में स्थित रहने से, परिस्थिति से पार रहेंगे… अपने स्व के भाव में रहने से, भाव-स्वभाव के चक्कर से परे रहते… कामना से मुक्त होने से ही सामना करने की शक्तियां आती

3. हमारा अन्तिम स्टेज है ही इच्छा मात्रम अविद्या… अपना सम्पूर्ण स्वरूप बिल्कुल स्पष्ट दिखाई दे, अभी-अभी पुराना चोला छोड़ा, और यह श्रेष्ठ वस्त्र धारण किया… एसी प्रतिज्ञा (प्रयत्न नहीं!) करनी है, तब साक्षात्-रूप साक्षात्कार-मूर्त बन प्रत्यक्षता करेंगे

4. मास्टर सर्वशक्तिमान अर्थात कभी हार खाने वाले नहीं, मार-हार से परे… नहीं तो देवता-मूर्तियों के हार बनाने padenge… हम तो बलिहार होने वाले हैं, complaint से परे

सार

तो चलिए आज सारा दिन… सदा बाबा पर बलिहार हो, अपने निराकारी स्थिति वा मन्मनाभव का अभ्यास कर… सदा विजयी स्थिति का अनुभव कर, इच्छा-मात्रम्-अविद्या साक्षात्-रूप सम्पूर्ण बनते-बनाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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