स्वराज्य अधिकारी राजाओं की दरबार | The gathering of self-sovereign emperors! | Avyakt Murli Churnings 22-09-2019

स्वराज्य अधिकारी राजाओं की दरबार | The gathering of self-sovereign emperors! | Avyakt Murli Churnings 22-09-2019

गीत: मस्तक सिंहासन पर…

मुरली सदा क्लास में पूरी सुननी चाहिए… अतः इस लेख का सिर्फ यह उद्देश्य है, कि मुरली सहज याद रहे, ताकि सारा दिन उसका अभ्यास-धारण करना सहज हो जाए… लेकिन मुरली पहले क्लास में ही सुननी है

सार

1. बाबा हम स्वराज्य-अधिकारी योगी-योग्य, स्वमान-निर्माण वाली आत्माओं की दरबार देख रहे… जो है:

  • दिव्य तिलक-धारी
  • पवित्रता के ताज-धारी… जिसमें सर्व विशेषताओं की मणियां चमक रही
  • सर्व गुणों की माला पहने
  • श्रेष्ठ स्थिति के सिंहासन पर
  • 10 दास-दासीयां सहित (5 तत्व वा 5 विकार, जो दुश्मन से परिवर्तन हो सेवाधारी बन गए)

2. सतयुग में 5 तत्व भी सेवा करेंगे:

  • सूर्य की अग्नि… भोजन बनाने वाली भण्डारी बनेंगी
  • वायु… पंखे का काम करेंगा… और जिससे वृक्ष भी भिन्न-भिन्न साज़ों से मनोरंजन करेंगा
  • आकाश… बेहद का highway बन जाएंगा (पुष्पक-विमान के लिए)… कोई एक्सीडेंट नहीं होंगे
  • जल… इत्र-फुलेल का काम करेंगा… जड़ी-बूटियाँ से सुगंधित
  • धरती… श्रेष्ठ फल देंगी (फलों में ही मिठास-नमकीन होगा… जैसे टमाटर में खटाश)
  • श्रेष्ठ सीन-scenery होंगी

3. तो अभी 5 विकारों को परिवर्तन करना है:

  • काम को शुभ-कामना में परिवर्तन
  • क्रोध अग्नि को योग-अग्नि
  • लोभ को शुभ-चाहना… मैं भी बाप-समान संकल्प-बोल-कर्म से निःस्वार्थ बेहद सेवाधारी बनूँ
  • मोह बाबा से… फिर हमारे संकल्प-बोल में बाबा ही दिखेगा
  • अभिमान को देही-अभिमानी

तो अभी दृढ़ता से विकारों को अंतिम विदाई देनी है… अंश को भी योग-अग्नि में जलाकर भस्म करना… फिर राख को भी ज्ञान-सागर में डुबो देना

कुमारीयों से

श्रेष्ठ कुमारी अर्थात विश्व-कल्याणकारी, सम्बंध-नोकरी के बंधन से न्यारी, बाप की प्यारी… खुद judge कर फैसला करना है, खुद के उमंग से सहज आगे बढ़ते, समस्याएं भी छोटी लगती… अपने भाग्य को बढ़ाकर, सेवाधारी का भी भाग्य प्राप्त करना है

सेवाधारी अर्थात!

1. सेवाधारी अर्थात सदा याद-सेवा-जीवन-युग की मोजों में रहने वाले… जिससे:

  • तन-मन सदा स्वस्थ रहता
  • मन सदा खुशी में नाचता रहता
  • हमें देख सब मूंज से मौज में आ जाएंगे

2. सेवाधारी अर्थात सदा सफलता-स्वरुप… सफलता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, इसी निश्चय-नशे से विजय प्राप्त करते रहना है

और पॉइंट

निरंतर बाबा के स्नेह में समाए रहना है… संगमयुग में वियोग हो नहीं सकता, सिर्फ मिलन की रेखा बदल सकती (व्यक्त-अव्यक्त)

सार (चिन्तन)

तो चलिए आज सारा दिन… विकारों को परिवर्तन कर, सदा स्वराज्य अधिकारी (ताज-तख्त-तिलक-माला धारी) बन, बाबा के स्नेह में समाए रह … सदा मोजों की जीवन अनुभव करते, विश्व कल्याणकारी बनते, सतयुग का सर्वश्रेष्ठ भाग्य प्राप्त करते-कराते रहे… ओम् शान्ति!


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