Becoming an Authority of Experience in each subject, by stabilising in Swaman in a second! | सेकण्ड में स्वमान के स्वरूप बन, हर सब्जेक्ट में अनुभव की अथॉरिटी बनो | Baba Milan Murli Churnings 15-12-2019
1.
- हम ब्राह्मण-आत्माएं, विशेष कोटों में कोई है… जिन्होंने साधारण-रूप में आए भगवान् को पहचान लिया… उनको दिल में समाकर, दिल का प्यार प्राप्त कर लिया (बाबा के प्यारे ते प्यारे बन गए)
- हम नेचरल योगी-जीवन वाले है… उठते-बैठते-चलते-फिरते-कर्म में निरन्तर-सदा योगी
- बाबा सदा हमें भाग्यशाली, स्वमान-धारी, स्वदर्शन-चक्रधारी रूप में देखते… हमें कितने स्वमान मिले हुए हैं (जिन्हें याद करने से तुरन्त उनका स्वरूप बन, लवलीन हो जाते, देह-भान से परे)
तो इन स्वमानों में स्थित-स्वरूप-अनुभवी होने में मेहनत न लगे (सदा मोहब्बत में रहकर, जबकि स्वयं आलमाइटी ने हमें यह अथॉरिटी दी है)… हर सब्जेक्ट-पॉइंट-वरदान के अनुभवी-मूर्त बनना हैं (फिर कोई माया-देहभान-व्यक्ति हमें हिला नहीं सकते… कभी-कभी शब्द समाप्त, सदा नेचरल नेचर)… स्वमन-सीट पर अनुभव-स्विच की लाइट से अंधकार समाप्त… तब ही बाप-समान, स्मृति-स्वरूप, समर्थ बनेंगे (हर कर्म में)
2. अचानक में एवर-रेडी अर्थात् ही वरदान-स्वमान का संकल्प किया, और स्वरूप बनें (तब ही वरदान फलीभूत होते, यह करना ही पड़ेगा)… अभी से करने से ही बहुतकाल का अभ्यास समय पर काम आएगा… जैसे देह-भान नेचरल हो गया है, वैसे ही अब बनना है:
- देही-अभिमानी… स्वमान-धारी
- ज्ञान-स्वरूप… अर्थात् लाइट-माइट सम्पन्न
- योग-स्वरूप… अर्थात् कर्मेन्द्रिय-जीत स्वराज्य-अधिकारी, युक्तियुक्त जीवन
- तो गुणों की धारणा ऑटोमेटिक होगी
- सच्चे-सेवाधारी (सेवा भी ऑटोमेटिक)… मन्सा-वाचा-कर्म से, सम्बन्ध-सम्पर्क में स्नेह-सहयोग-उमंग-उत्साह देते रहना… चाहे कोई कैसा भी हो संस्कार-वश, हमारी सदा शुभ भाव-भावना हो (कोई और संकल्प-घृणा नहीं)… जबकि हम प्रकृति को भी परिवर्तन करने वाले है, और यह प्रभु-परमात्म परिवार एक ही बार मिलता
बाप-समान निराकारी-निरहंकारी-निर्विकारी, फरिश्ता-भव के वरदानी बनना है… जबकि हमें बाबा पर इतना स्नेह है (स्नेह के विमान में ही पहुंचे है), बाबा भी हर एक को मेरे कहते
3. हम सेवा अच्छे उमंग-उत्साह से करते-कराते, सेवा का मेवा-फल-कमाई प्राप्त करते रहते (मधुबन के ज्ञान-स्नेह-परिवार-एकान्त के वाइब्रेशन-वायुमण्डल में सदा ज्ञान-स्नान है, योगी-प्रभु प्यार वाली आत्मायें है)…. बाबा हमें देख खुशी में गीत गाते रहते, वाह बच्चे वाह (हम उनके दिल में, वह हमारे दिल में है)
सार (चिन्तन)
सदा बाबा की मोहब्बत में, सेकण्ड में अपने भिन्न-भिन्न स्वमान-वरदानों के अनुभवी-स्वरूप बन… बहुत सहज स्वयं को ज्ञान-योग-धारणा-स्वरूप सच्चे सेवाधारी अनुभव करते, अपनी शुभ भावना-सेवा द्वारा सर्व को भी अंधकार से दूर करते… सम्पूर्ण निराकारी-निर्विकारी-निरहंकारी फरिश्ता-स्वरूप बनते-बनाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!
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