दादी ईशू जी की मुख्य विशेषताएं

दादी ईशू जी की मुख्य विशेषताएं

मैं बहुत खुश!

ईश्वर के साथ रहने वाले इशू दादी जी!

काफी वर्षों से, जब भी किसी ग्रूप को मिलते, दादी एक ही बात कहते थे ‘मैं बहुत खुश हूँ’ वा ‘मैं बहुत खुश हुई’… दादी जी इतने आनंद से सम्पन्न रहते थे, तो सोचने की बात है दादी जी की पूरी यात्रा ही कितनी खुशियों से भरी हुई रही होंगी… जो अब भी सदा ही बेफिक्र बादशाह, रूहानी मौज में नजर आते थे! ?

आपकी विभिन्न, बेहद, अथक सेवाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद दादी जी… आप सदा हमारे लिए प्रेरणा स्रोत रहेंगे! ???


सम्पूर्ण विश्वास पात्र, इकॉनमी के अवतार

आदि से दादी जी अपनी पूर्ण ईमानदारी के कारण बापदादा के *सम्पूर्ण विश्वास पात्र* थे, तब तो भण्डारे (Treasury) के निमित्त बनी… हम भी परमात्म विश्वास पात्र बने! ?

सदा *इकॉनमी की अवतार* थी, इसलिए बाबा-मम्मा उन्हें moneyplant कहते, जरूरत के समय सदा उनकी बचत काम आती थी! ?

हम भी एकनामी-economy द्वारा अपने सर्व समय-श्वास-संकल्प ज्ञान-गुण-शक्तियों के *ख़ज़ाने* को *जमा* कर विश्व कल्याण में हर पल *सफल* किया करे! ?


मुरली का बहुमुल्य योगदान!

दादी जी ही वह महान् आत्मा थे, जो साकार बापदादा की तेजस्वी तेज वाणी को फटाफट shorthand में *लिख लेते* थे! ?

उन्ही के बदौलत आज भी हम उस समय (टेप मशीन के पहले) की साकार मुरलियों को *accurate शब्दे-शब्द* पढ़ पाते!… दादी जी का कितना न धन्यवाद करे! ?

तो ऐसी मुरली का *पुरा regard* रखने… सदा क्लास के पहले कुछ समय योग में बैठ, फिर *सच्चे गोप-गोपी* बन ज्ञान मुरली की तान पर झूम उठे… फिर सारा दिन *मास्टर मुरलीधर* बन उसी ज्ञान की स्मृति, वा मनन-चिन्तन-मंथन-सिमरण द्वारा योगयुक्त शान्ति-प्रेम-आनंद से भरपूर हो, हर पल स्वयं-सर्व का कल्याण करते रहे! ?


समाने की महान शक्ति!

दादी जी की सम्पूर्ण विश्वास पात्रता कारण बाबा ने उन्हें *पत्र व्यवहार* में राइट हैण्ड रूप में निमित्त रखा था! ?

तो दादी जी को खुशखबरी-अच्छी बातों के साथ-साथ कुछ सेंटरो से कमजोरी-समस्याओं की बातें भी ज्ञात होती होगी… फिर भी दादी जी इतना *शुद्ध-ह्रदय दिव्य-दर्पण* थे, इतनी विशाल समाने की शक्ति थी, जो सदा उनके मुख से शुभ भावना के ही बोल सुनते थे!

हम भी घर-ऑफिस के बड़े है, तो सबकी बातों को ऐसा समा ले; और अपने श्रेष्ठ *धारणा-मूर्त* example, *गुणग्राही* दृष्टि, शक्तिशाली *शुभ भावना* द्वारा सबको सशक्त कर उनकी काबिलियत के शिखर पर पहुंचाया करे!… यह भी बहुत बड़ा योगदान है, जिससे बहुत *दुआएं* मिलती! ?


बाबा की सौगात!

दादी जी को साकार बाबा ने एक घड़ी सौगात में दी थी (जो बिना battery, pulse से चलती)… दादी जी को इसका *इतना regard / नशा* था, वह सदा पहने रखते, सदा क्लास में दिखाते थे! ?

हमें भी बाबा ने बहुत सौगातें दी है – *विशेषताएं* , *वरदान* कार्ड, स्पेशल अटेन्शन / पालना, आदि… हमें भी उसका नशा हो, उस विशेषता / वरदान को *स्मृति* में रख, उसका *स्वरूप* ही बनके रहे!… तो स्वतः उसी स्मृति अनुसार श्रेष्ठ संकल्प-बोल-कर्म *स्वतः* चलेंगे; हमारे *उदाहरण* से और सब भी धारणा-मूर्त बनते जायेंगे, हम साथ में *सतयुग* लाएंगे! ?


अन्त तक सेवा!

दादी जी *अन्त तक अपनी सेवा पर उपस्थित* रहे… हर बाबा मिलन टर्न में यदि दादी से यज्ञ-कारोबार हेतु मिलना चाहो, तो time announce करते थे! ?

उनके सामने हमारी सेवाएं तो कितनी छोटी और कम है… तो हमें तो कितना *प्यार* से, *दिल* से, *निमित्त* -निर्मान-निःस्वार्थ-निर्मल हो सेवा में रहना चाहिए! ?

और सेवा से सबसे पहले फायदा हमारा ही होता, किसी को *गुलाब देने से सुगंध हमारे हाथों में* रह जाती, तो क्यों न ऐसे जीवन रूपी गुलदस्ते को ख़ुशनुमा बन महाकाया करे! ?


एक बाबा दूसरा न कोई!

दादी जी की एक और मुख्य विशेषता थी, जिस कारण उन्हें Treasury और पत्र व्यवहार में निमित्त रखा था… व थी एक बल एक भरोसा, *एक बाबा दूसरा ना कोई*, सम्पूर्ण वफादारी; क्योंकि भल उनकी संगठन में सबके साथ बहुत अच्छी मैत्री थी, परन्तु किसी एक प्रति भी विशेष एक्स्ट्रा झुकाव नहीं था! ?

हम भी एक बाबा को साथ रख, सबको देते रहे… क्योंकि जब ऐसे एकव्रता हो बाबा के साथ ही *combined सर्व गुण-शक्तियों से सम्पन्न* रहते, तो स्वतः हमारे हर कदम, स्मृति-वृत्ति-दृष्टि-कृति से औरों को भी वह *दिव्य सतोगुण* प्रवाहित होते रहते… तो अपने प्यारे संबंधों की सच्ची सेवा करने के लिए ही, एक बाबा दूसरा ना कोई की धारणा अवश्य पक्की किया करें! ?


निर्माण-चित्त!

दादी जी की एक मुख्य विशेषता थी नम्रता; क्योंकि भल उन्हें यज्ञ की बहुत मुख्य ऊँच सेवाओं (Treasury वा पत्र-व्यवहार) के निमित्त रखा था, परन्तु इस बात का उन्हें जरा भी उल्टा भान नहीं था… *बिल्कुल निर्मान-नम्रचित्त-निरहंकारी* हो रहते थे! ?

वास्तव में हमारे ब्राह्मण जीवन में अहंकार तो आ ही नहीं सकता, क्योंकि हम जानते हैं पहले हम क्या थे, और जो भी कुछ है सब *बाबा के ज्ञान-गुण-शक्तियों की कमाल* हैं (और अभी बहुत पुरूषार्थ बाकी है!)… तो ऐसे नम्रचित्त होंगे तो बहुत ही सहज-स्वतः-स्वाभाविक सबको बाबा से जोड़ेंगे, जैसे हमारा अस्तित्व बिल्कुल ही समर्पित हो गया, और हममे *बाबा ही बाबा दिखाई देंगे* … यही तो प्रत्यक्षता है! ?


वर्णन नहीं!

दादी जी ने कभी अपनी सेवाओं का *वर्णन नहीं किया* (शायद इसी कारण उनकी सेवाओं को सभी कम जानते)… और इसी *गुप्त-निमित्त भाव* कारण उन्होंने जबरदस्त आध्यात्मिक कमाई-प्रालब्ध जमा की है! ?

तो हम छोटी से छोटी सेवा भी करे, याद रखे मार्क्स ज्यादा स्थिति-भाव-भावना पर है… जितनी *योगयुक्त* -ऊंची-महान स्थिति, जितनी बेहद की उदारता- *कल्याण* की भावना, उतना *प्राप्ति* ज्यादा… फिर इन प्राप्तियां को और बाबा की सेवा में लगा सकेंगे, ऐसे *हर पल सफल* करते, स्वयं-सर्व को कल्याण करते रहेंगे! ?


छोटे बच्चे प्रिय!

दादी जी को छोटे बच्चे बहुत ही *प्रिय* थे, स्टेज पर उनके साथ झूम उठते थे! ?

दादी जी की सूक्ष्म उपस्थिति अब भी हम बच्चों के साथ सदा है… सभी दादीयां हमें अब *सम्पूर्णता* की ओर प्रेरित कर रहे, तो अभी सदा बैठे शक्तिशाली अशरीरी स्थिति, और चलते-फिरते कर्म में निरन्तर *फरिश्ता* स्थिति में स्थित रहा करे… तो औरों लिए भी हम *साक्षात्* example बन, सबको बाबा से ही लवलीन करते रहेंगे… यही समय है! ?


ईश्वर के साथ!

*ईश्वर के साथ रहने वाले इशू दादी जी*… आप सदा हमे बाबा के समीप-पास-साथ रहने की प्रेरणा देते रहेंगे! ?

जब भी मन-बुद्धि द्वारा बाबा के साथ रहने (वा कोई भी योग का) अभ्यास करते, वह *संस्कार बनता* जाता… अर्थात्‌ फिर वह संकल्प दोहराना, visualise सहज हो जाता, तुरन्त उस *अनुभूति* में समा सकते… इसलिए कभी किया योग व्यर्थ नहीं जाता (भल कभी परिस्थिति हावी हो भी जाये, फिर उस संस्कार द्वारा *श्रेष्ठ स्थिति* में जल्दी-से आ सकते!) ?

थोड़ा भी यथार्थ प्रयास *प्राप्ति* देता ही देता! (स्वास्थ्य अच्छा होता जाता, मन खुश, कार्य-क्षमता श्रेष्ठ, संबंध मधुर, वातावरण आदि)… जिससे हमें और प्रोत्साहन मिलता, चार्ट को *और कुछ मिनट* बढ़ाते, 4-8 घंटे के लक्ष्य तक तेज़ी से बढ़ते जाते!… इसलिए इस सहजयोग की युक्ति *‘बाबा मेरे साथ है’* को तो अपने जीवन का महामंत्र ही बना ले! ?


अन्तर्मुखी!

दादी जी को ज्यादा भाषण करने-बोलने का शौक नहीं था, सदा *अन्तर्मुखी* रह बाबा की दी हुई सेवा प्यार से करना पसंद करते थे!… बोलने का कहने पर “हाँ जी” का पाठ अवश्य बजाते थे, और 2-4 वाक्यों में ही *दिल छू लेते!* ?

जब हम मन और मुख का *मौन* रखते, तो हर पल सफल बहुत सहज कर सकते, हर पल मन को सशक्त करने में उन्नति अनुभव करते (क्योंकि व्यक्त भाव ही एकाग्रता तोड़ उन्नति से दूर करता)… तो कुछ समय मौन रखने के साथ-साथ याद रखे, सबसे बड़ा मौन है *व्यर्थ जानकारी से परे* जाना (कुछ बहुत जरूरी हो, तो 1-2 मिनट से ज्यादा नहीं)… क्योंकि इसी *होली-हंस धारणा* से मन को स्वच्छ रख, सुबह डले ज्ञान-योग के बीज को सारा दिन बहुत सुन्दर फलीभूत कर सकते (यही हमारे जीवन का अनुभव है!)… इससे हमारी छूपी विशेषताएं निखरने लगती, बाबा की आशाओं को पूर्ण करने लगते, हमारे *हीरो पार्ट* को सही अर्थ में बजा सकते! ?

तो सदा व्यर्थ जानकारी का मौन रख, अन्तर्मुखी हो हर पल ज्ञान-योग के हर पॉइंट की गहराई का अनुभव करते-कराते, *अपने वरदानी जीवन को स्वर्णिम हीरे-समान* बनाते रहे! ?


सार

आज हमने दादी जी की मुख्य विशेषताएं देखी… उनकी विभिन्न सेवाएं (Treasury में इकॉनमी, पत्र व्यवहार में समाने की शक्ति, मुरली shorthand का अमूल्य योगदान, आदि)… और उसमें प्रयोग किये महान गुण (सम्पूर्ण वफादारी, निमित्त भाव, वर्णन नहीं, अन्तर्मुखी, आदि) ?

हमने दादी जी के महामंत्र “मैं बहुत खुश हूँ / हुई” को भी समझा, कैसे उनको बाबा को दी हुई घड़ी का regard-नशा था, वा बच्चों कितने प्रिय थे। ?

उनका नाम (ईशू दादी) ही हमें सदा ईश्वर के साथ रहने की प्रेरणा देता रहेंगा! ?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *