3 Written & Creative BK Numasham Yog Commentary

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1. मीठी बातें | 2. मन्सा सकाश | 3. सतोगुणी अनुभूति


नुमःशाम योग 1: मीठी बातें

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इस नुमःशाम के सुन्दर समय में… हम बैठे हैं अपने मन के साथ… एक बहुत लंबी (5000 वर्ष की!) यात्रा पूरी किये हुए

अपने साथ बातें करते… हे मेरे मन, तू कितना न भाग्यशाली है… तेरे द्वार स्वयं भगवान् आये हैं

एक धीमी आवाज सुनाई देती “आओ बच्चे”… मैं सर्व ज्ञान-गुण-शक्तियों का सागर हूँ… मेरा सबकुछ तुम्हारा है (पवित्रता, शान्ति, प्रेम, सुख, आनंद सब)… तुम मेरे वारिस बच्चे हो

इस सुन्दर दृश्य (बापदादा बाहें पसारे हुए) को मैं कुछ समय निहारता रहता… बाबा की बाहों में समाता जाता… बाबा मुझे दृष्टि-वरदान देते कितना प्यार करते

परमधाम में प्रकाशमय बिन्दु… ज्ञान सूर्य, मेरा मीठा बाबा है… उनकी सतोगुणी उर्जा में नहाकर… मैं तरोताजा हो गया हूँ


नुमःशाम योग 2: मन्सा सकाश (BK Numasham Yog Commentary)

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(नुमःशाम योग 2)… इस नुमःशाम की पावन वेला में… मैं फरिश्ता सो देवता आत्मा… मन-बुद्धि से विश्व का चक्र लगा रहा हूँ

मेरा बुद्धियोग परमधाम शिवबाबा से जुड़ा हुआ है… पवित्रता, शान्ति, प्रेम, सुख, आनंद, शक्ति से मेरा अन्तर्मन भर चुका है… यह उर्जा स्वतः चारों ओर फैलती

इस सतोगुणी उर्जा (वा स्वतः फैलते सकाश) का प्रवाह जारी रखने… मैं बाबा से मीठी-मीठी बातें करते रहता… अपने भाग्य की सराहना करता

बाबा आप कितने मीठे हो… हमें क्या से क्या बना देते… अपने दिल में ही हमको स्थान दे दिया है

मेरा फरिश्ते समान जीवन, दिव्य मुस्कान ?, गुण-मूर्त स्वरूप, ईश्वरीय दिनचर्या द्वारा… मैं सबके दिल की आश, उदाहरण-मूर्त, आधार-मूर्त आत्मा हूँ

सदा बाबा से लवलीन ❤️ रह… सबको बेहद प्यार बांटने वाली… मैं निरन्तर सेवाधारी, विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ


नुमःशाम योग 3: सतोगुणी अनुभूति (BK Numasham Yog Commentary)

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इस नुमःशाम के विश्राम की पलों में… मैं आत्मा deep silence का अनुभव करती… बिल्कुल ही संकल्पों को कम कर दें

इसी शान्ति की गहराई में… परमात्म-प्यार समाया है (जिसने यह शान्ति सिखाई)… इसी प्यार के अनुभव में सुख है

यही सुख की गहराई आनंद का रूप लेती… यही सतोगुणी अनुभूति मेरी आन्तरिक शक्ति बढ़ा रही… यही शक्ति मुझे स्वराज्य अधिकारी (सो विश्व राज्य अधिकारी) बनाती

मेरा आभामण्डल (aura) दिव्य बन रहा है… आसपास वातावरण सुगंधित हो रहा… वायुमण्डल शक्तिशाली

यह प्रकंपन स्वतः चारों ओर फैलते… शिवबाबा की याद में, मेरी स्थिति परिपक्व (एकरस, अचल, अड़ोल) हो गई है…सबके लिए विघ्न-विनाशक हूँ… सतयुगी ऊँच पद निश्चित है


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