Murli Yog 5.10.24

Murli Yog 5.10.24

सुख, शान्ति, डबल लाइट के गोल्डन वर्से से सम्पन्न 🪙; दिव्य ✨, खुशबूदार फूल 🌸 बन; सर्वशक्तिवान ⚡ के साथ से विजयी 🇲🇰 रह; सबके समीप, सम्मान देते संस्कार मिलन करने वाली ईश्वरीय नेचर बनाना… Murli Yog 5.10.24… आज माँ सन्तोषी समान सदा सन्तुष्ट रहे!

वह सदैव पवित्र, निराकार, रूहानी बाप… शान्ति के सागर 🌊, शान्ति देवा है जो हमें वापस अपने शान्तिधाम, मुक्ति, घर ले जाते (शान्ति का वर्सा!)… वह सुख के सागर भी है; जो हमें फिर सुखधाम, जीवनमुक्ति में भेजते!

तो याद, योगबल से सहज वापस जाते… और सच्चा सोना बनने कारण; फिर उस पवित्र, गोल्डन ऐज में पहुंचते… जो है दिव्यगुणों 🪂 वाले फूलों का बगीचा, गृहस्थ आश्रम; कितना धन 💰, हीरे-जवाहर होते; श्रीकृष्ण की डिनायस्टी, रामराज्य!

हमें आत्मा की पहचान मिली है; तो आत्मा समझ देही-अभिमानी रहना… आत्मा इस भ्रकुटी के चैतन्य अकालतख्त पर चमकती; एक तख्त 🪑 छोड़ दूसरा लेती, जो छोटे से बड़ा होता… अभी पुरूषोत्तम संगमयुगी ब्राह्मण तख्त है; फिर बड़ा फर्स्टक्लास, देवताई, गोल्डन ऐजेड़, सतोप्रधान तख्त मिलता… हम ऐसे वैल्यूबल; अनादि, अविनाशी पार्टधारी है!

यह सत्य बातें स्वयं सत्, चैतन्य, बीजरूप, ज्ञान सागर 🌊 हमें सुनाते… वह भारत में आकर सबकी सद्गति करते; तो यह ऊंच ते ऊंच देश, बड़ा तीर्थ ठहरा… तो जब इतनी प्राप्तियां हुई है, अब कुछ याद नहीं आता (स्वतः वैराग्य!)

हम डबल लाइट 🧖 है (क्योंकि सर्व जिम्मेवारी का बोझ बाप हवाले कर दिया है!)… सबके समीप आते सम्मान देते रहने से सहज संस्कार मिलन होता; ‘मेरे संस्कार’ यह शब्द ✍🏻 ही मिटकर ईश्वरीय नेचर बन गयी है!

सर्वशक्तिवान के साथ पर निश्चय को प्रैक्टिकल में यूज करने से… सहजयोगी, निरन्तर योगी रहते… (कभी हिलते नहीं; बातों को दूर से ही परख समाप्त करते!)… (AV 4.12.95; फिर से!)


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