A clear fortune! | Avyakt Murli Churnings 02-02-2020

A clear fortune! | Avyakt Murli Churnings 02-02-2020

1. बाबा हमारे मस्तक पर भाग्य-रेखा की स्पष्टता देख रहे.. दाता-विधाता-भाग्यविधाता के बच्चे होने कारण भाग्य वर्से के रूप में सहज-अविनाशी तो है, लेकिन जितना भाग्य धारण कर सेवा में लगाते उतना और बढ़ता… वह सदा स्वयं को भाग्यवान अनुभव करते, चेहरे-चलन झलक-फलक द्वारा सब भी उन्हें भाग्यवान समझते… भाग्यवान-आत्माएंं:

  • सदा मिट्टी-फर्श से ऊपर फरिश्ते रहते
  • सदा सम्पन्न, इच्छा-मात्रम-अविद्या
  • सदा महादानी-वरदानी बन देते रहते
  • सदा ताज-तख्त-ततिलकधारीनिराकारी-निर्विकारी-निरहंकारी… सदा मास्टर-सर्वशक्तिमान

2. वरदान-भूमि के हर कर्म-चरित्र-कदम (चाहे अनाज-सब्ज़ी की सेवा) में वरदानों की झोली भर सकते… हर सेकण्ड-संकल्प व्यर्थ-मुक्त (परिवार-पढ़ाई भी है), फिर यह अभ्यास वहां भी सहयोग देता

  • महाराष्ट अर्थात् महान बनना-बनाना
  • कर्नाटक, सदा हर्षित रहना-करना
  • U. P, शीतल-नदि बन शीतला-देवी बनना-बनाना

बड़ों से

आदि से अविनाशी, ब्रह्मा-बाप-समान हर कदम अनुभव की अथॉरिटी द्वारा राज्य-अधिकार की भी अथॉरिटी प्राप्त है (सदा साथ रहेंगे, फॅमिली-भक्ति में भी)… सिर्फ अभी बुद्धि से साथ रहना… सब हममें बाबा को देखते (कर्म-वाक्य-दृष्टि-पालना), ऐसी न्यारी-प्यारी आत्माएं (तो स्वयं में नहीं फंसाना, सदा अथक-सेवाधारी)

(दादीजी से) आदि से जिम्मेदारी का ताज निभाने वाले… अन्त में भी बाबा ने दृष्टि द्वारा ताज-तिलक दिया… अभी भी समान बन सदा साथ निभाते

पार्टीयो से

1. कुमार अर्थात्‌ निर्बन्धन (व्यर्थ-संकल्प के बन्धन से भी… संकल्प से ही कमाई-अशरीरी-याद की यात्रा करते)… जिस हल्केपन से स्वतः तीव्र-गति वाले तीव्र-पुरूषार्थी बन मंजिल पर पहुँचते… पुराने व्यर्थ का खाता समाप्त, अब नया खाता (व्यवहार का उदाहरण), अब हर कदम नया-समर्थ-बाप समान

2. बेहद-माताएं बेहद-आत्माओं प्रति रहमदिल बन सेवा-कल्याण बिना रह नहीं सकते.. हमारे परिवर्तन से औरों को भी उत्साह आता.. त्याग-तपस्या से सेवा में सफलता

3. सदा निर्विघ्न विघ्न-विनाशक बन सबको बाबा से जुड़ाना.. इस सेवा के उमंग के साथ स्व-उन्नति के बैलेन्स से ब्लैसिंग मिलती

सार

सदा बुद्धि से बाबा के साथ हल्के रह, अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य को जीवन में धारण कर… सदा सम्पन्न फरिश्ता बन तीव्र-गति से आगे बढ़ते… वरदानी बन सर्व का कल्याण करते विघ्न-विनाशक बनते-बनाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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