A divine drishti! | (70th) Avyakt Murli Revision 06-08-70 (2nd)

A divine drishti! | (70th) Avyakt Murli Revision 06-08-70 (2nd)

1. बाप-समान दृष्टि-वृत्ति-संकल्प-वाणी धारण करनो है, अव्यक्त स्थिति में रहकर व्यक्त में आना है… जितना समीप, उतना समान… ऎसी दिव्य-आत्मिक-अलौकिक वृत्ति-दृष्टि बनानी है, कि सृष्टि बदल पावन बन जाए… हमारी यथार्थ दृष्टि (देही देखने की) से सबको साक्षात्कार कराना है (अपने स्वरूप-घर-राजधानी का)

2. हम विशेष आत्माएं है, इसी ईश्वरीय नशे में रहना है, तो नयनों से दिखेगा… ऎसा कोरा-कागज़ बनना है, कि उसमें स्पष्ट-श्रेष्ठ लिखत हो सके, स्पष्टता अर्थात जो बात जैसी है उसी रूप में धारण करना… समान-अल्लाह अर्थात आधार-मूर्त (जो कर्म हम करेंगे, हम देख सब करेंगे), उद्घार-मूर्त (स्व-सर्व का उद्धार)

3. टीका अर्थात:

  • जो बातें सुनाई, उसमें टिक जाना
  • injection अर्थात तन्दुरूस्ती, शक्तिशाली
  • सुहाग-भाग्य की निशानी
  • प्रतीज्ञा (सदा हर बात में पास विद आनर, संकल्पों में भी उलझेंगे नहीं, हिम्मत-वान)

4. सहयोगी बनने से स्नेह मिलता रहेगा… कोमल के साथ कमाल करना, ईश्वरीय चरित्रों पर सब को आकर्षित करना

सार

तो चलिए आज सारा दिन… बाप-समान अव्यक्त-स्थिति वा आत्मिक-दृष्टि धारण कर, बाबा के समीप-स्पष्ट-श्रेष्ठ रह, शक्तिशाली-भाग्यवान बन, आधार-मूर्त उद्धार-मूर्त की स्मृति द्बारा सबको स्नेह-सहयोग देते, ईश्वरीय चरित्रों का अनुभव कराते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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