The Art of keeping a Time Table! | (59th) Avyakt Murli Revision 18-06-70

The Art of keeping a Time Table! | (59th) Avyakt Murli Revision 18-06-70

1. जैसे जब चाहे तब बोलते, वैसे एक सेकण्ड में व्यक्त से अव्यक्त हो सके, इस ड्रिल से स्थिति की मजबूती की वृद्धि होती… अव्यक्त स्थिति बढ़ाने लिए, सार में लाने की शक्ति बढ़ानी है

2. हम बड़े है, इसलिए आत्मा की उन्नति (अव्यक्त स्थिति) के लिए भी मन का टाईम-टेबल बनाना है… फिर चेक करना सफल हुए, क्यों नहीं, फिर चेंज लाना है, और बिंदी लगाना… प्रतीज्ञा, फिर प्लान, प्रैक्टिकल, फिर चेकिंग… समय से पहले सम्पूर्ण बनना (वा निरन्तर अतिन्द्रीय सुख की अनुभूति करना) है

3. sensible अर्थात सेन्स के साथ इसेन्स भी… अपनी नेचर (संस्कार) cure करने लिए फास्ट रखना है (टाईम टेबल और नुकसानकारक बातों का), पुराने संस्कारों को समेटना-समाना है.. भिन्न-भिन्न स्लोगन सामने रखने है:

  • कर के ही छोड़ेंगे, ऎसे निश्चयबुद्धि ही विजयी बनते, फिर समस्याएं भी खेल लगती
  • अब नहीं तो कब नहीं, अलबेलापन समाप्त
  • जो कर्म में करूँगा, मुझे देख सब करेंगे
  • सफलता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है
  • मिटेंगे, लेकिन हटेंगे नहीं

4. हम बड़े है, तो स्थिति-सेवा भी बड़ी चाहिए… 8 घंटे अव्यक्त स्थिति का चार्ट अवश्य चाहिए… जबकि हम बाबा के स्नेह-सम्पर्क में है, तो उन जैसे संस्कार भी होने चाहिए

5. फ़रिश्ता अर्थात अभी-अभी नीचे और अभी ऊपर, फर्श का कोई आकर्षण नहीं

सार

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि हमारा लक्ष्य है सेकण्ड में व्यक्त से अव्यक्त होना, 8 घंटा याद करना… तो सदा अपना श्रेष्ठ मन का timetable रख, शक्तिशाली स्लोगन्स सामने रख, तेज़ उन्नति अनुभव करते, समय से पहले सम्पूर्ण बनतेे-बनाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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The key of spiritual knowledge! | Sakar Murli Churnings 12-09-2019

The key of spiritual knowledge! | Sakar Murli Churnings 12-09-2019

मुरली सदा क्लास में पूरी सुननी चाहिए… अतः इस लेख का सिर्फ यह उद्देश्य है, कि मुरली सहज याद रहे, ताकि सारा दिन उसका अभ्यास-धारण करना सहज हो जाए… लेकिन मुरली पहले क्लास में ही सुननी है

सार

1. परमात्मा (जो जन्म-मरण रहित, परमधाम में रहते, कलियुग-अन्त में दिव्य-अलौकिक रीति ब्रह्मा-तन में प्रवेश कर, ज्ञान देकर, सद्गति-स्वर्ग का मालिक लक्ष्मी-नारायण बनाते… हमारे पास उनका पूरा परिचय है)… वह हमारा बाप है, इसलिए हम उन्हें बाबा-बाबा कहते… साथ में वह हमारा टीचर (आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनाते), सतगुरू, खुदा दोस्त (हमारे साथ खेलते) भी है

2. नम्बर-वन honest फूल बनने लिए… अपने को आत्मा समझ मामेकम् याद द्बारा खामियां (ईर्षा, आदि) निकाल सदा खुश रहना है, देह-दुनिया को भूले

3. मेरे को तेरे में परिवर्तन कर बेफिक्र, खुशी के अटल-अखण्ड खजाने से भरपूर रहना है… ख़ज़ानों को सेवा में लगाकर, जमा के खाते को बढ़ाते जाना है

चिन्तन

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि हमें सर्वश्रेष्ठ ज्ञान की चाबी मिली है, तो सदा ज्ञान के स्मृति-चिन्तन में रह… सारे लॉक खोल, सदा-खुश सर्व-प्राप्ति-सम्पन्न बन… सब को भी सर्व खजा़नों से भरपूर करते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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The easy way of becoming world emperor! | (58th) Avyakt Murli Revision 11-06-70

The easy way of becoming world emperor! | (58th) Avyakt Murli Revision 11-06-70

1. विश्वपति (विश्व की सेवा करनेे वाले शूरवीर) बनने लिए चाहिए ताज (त्याग), तख्त (सेवा) और तिलक (तपस्या)… सेवा में मुख्य है मैं-पन का त्याग, सबकुछ बाबा, यही दृष्टि-वृत्ति चेहरे पर छलके

2. हमें बनना है सिम्पल और sample (तब सब आप-समान बनेंगे)… इसके दो ठप्पे लगाने है:

  • शिव शक्ति (संस्कार-सर्विस-सम्बन्ध में मिटेगे, पर हटेंगे नहीं)
  • ब्रह्माकुमारी (सम्पूर्ण स्नेही-सहयोगी-स्वाहा होने लिए सर्व शक्तियों को धारण करना है… तब ही कर्म-बन्धन समाप्त कर सकेंगे)

सार

तो चलिए आज सारा दिन… विश्वपति बनने लिए सदा अपनी श्रेष्ठ शिव-शक्ति वा ब्रह्माकुमारी की स्मृति में रह, simple-sample बन त्याग-tapasya द्बारा बाबा-बाबा करते, सेवा में लगे रह, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Winning the scholarship! | Sakar Murli Churnings 11-09-2019

Winning the scholarship! | Sakar Murli Churnings 11-09-2019

मुरली सदा क्लास में पूरी सुननी चाहिए… अतः इस लेख का सिर्फ यह उद्देश्य है, कि मुरली सहज याद रहे, ताकि सारा दिन उसका अभ्यास-धारण करना सहज हो जाए… लेकिन मुरली पहले क्लास में ही सुननी है

सार

1. ओम् शान्ति अर्थात मैं (छोटी-अविनाशी) आत्मा हूँ, यह मेरा शरीर है (एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ)… स्वयं निराकार बाप (जिनका पूरा परिचय हमारे पास है, वह पतित-पावन सर्वशक्तिमान शान्ति-प्रेम-सुख के सागर है, संगम पर आते, अपने को servant कहलाते), हमें राजयोग सिखाते, पवित्र-पावन-सतोप्रधान-पूज्य-पारसबुद्धि-देवता डबल-सिरताज लक्ष्मी-नारायण बनाने, स्वर्ग-paradise-सुखधाम में

2. तो हमें यह lottery-scholarship लेने लिए, सिर्फ एक बाबा की याद द्बारा दिव्यगुण-सम्पन्न बनना है, सबकी सेवा करनी है… सदा खुश रहने लिए:

  • ज्ञान बुद्धि में रखना है (बाबा हमें विश्व का मालिक बनाते)
  • बाबा को यथार्थ रीति याद करना है

चिन्तन

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि हमें scholarship लेने का सर्वोत्तम चान्स मिला है, तो सदा श्रीमत को सिर-माथे रख, ज्ञान में फुल बन (ज्ञान-चिन्तन द्बारा) और गुण-शक्तियों में फुल बन (बाबा की याद द्बारा) सदा खुश दिव्यगुण-सम्पन्न बनतेे-बनाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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The mirror of Avyakt stage! | (57th) Avyakt Murli Revision 07-06-70

The mirror of Avyakt stage! | (57th) Avyakt Murli Revision 07-06-70

1. सम्पूर्णता के समीप अर्थात, अव्यक्त भाव द्बारा दूसरों के मन के भावों को भी तुरन्त परख सके… तो हम भी व्यर्थ से परे, एकरस रहेंगे… दर्पण को साफ-स्पष्ट करने लिए चाहिए सरलता-श्रेष्ठता-सहनशीलता… स्मृति-वाणी-कर्म-सम्बन्ध सब प्लेन, तब प्लान-प्रैक्टिकल एक होंगे, प्लेन (एरोप्लेन) समान सफलता मिलेंगी… सफलता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है

2. दिव्य-मूर्त (वा सम्पूर्णता के समीप) अर्थात सबको सम्मान देने वाले, तब ही विश्व सम्मान देगा… औरों के समीप अर्थात उनके संस्कारों के समीप, सदा हाँ जी (तो उनके संस्कार भी सरल हो जाएंगे)

3. हम संकल्प-बोल-कर्म द्बारा लाॅ-मेकर्स है… विधाता याद रहने से विधि-विधान दोनों ठीक रहते, सफलता सहज मिलती… साहस-शक्ति का पेपर भी क्रॉस करना है

4. बंधन होते हुए भी, अपने को ईश्वरीय सेवा के बंधन में बांधने के बल से, बंधन समाप्त होते… सम्पर्क में आने से औरों को भी बचा सकते, आप-समान बना सकते, ऎसी कमाल की सर्विस करनी है

5. व्यक्त भाव से परे, एक सेकण्ड की शक्तिशाली अव्यक्त स्थिति भी लम्बा समय चलती… जिसमें सर्व प्राप्तियां है, मेहनत कम, सफलता अधिक मिलती

6. अव्यक्त-मूर्त बाबा से जो अन्तर है, उसे अन्तर्मुखी हो मिटाना है, संस्कारों को समीप लाना अर्थात समीप बनना… बाप-समान विघ्नों से पार होने, स्नेह में डूब जाना है (अपने को मिटा देना, बाबा से मिलाना)… अपने गुप्त स्नेह-सफलता के संस्कार को प्रत्यक्ष में लाना है, फिर अपने अव्यक्त वा भविष्य रूप को सामने रखना है

7. स्नेह का रिटर्न सहयोग देना है, मास्टर सर्व समर्थ बन… बिन्दु रूप (ब्रेक) सहज करने, शुद्ध संकल्पों में रमण करना है (मोड़ने की शक्ति)… तो बिन्दु रूप सहज हो जाएँगा

सार

तो चलिए आज सारा दिन… अपनी शक्तिशाली अव्यक्त स्थिति के दर्पण को स्पष्ट रख, सदा बाबा के प्यार में डूबे रह… अपनी श्रेष्ठ लाॅ-मेकर्स की स्मृति द्बारा सबको सम्मान देते, सबके संस्कारों के समीप रहते, ईश्वरीय सेवा करते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Benefit of keeping chart! | Sakar Murli Churnings 10-09-2019

Benefit of keeping chart! | Sakar Murli Churnings 10-09-2019

मुरली सदा क्लास में पूरी सुननी चाहिए… अतः इस लेख का सिर्फ यह उद्देश्य है, कि मुरली सहज याद रहे, ताकि सारा दिन उसका अभ्यास-धारण करना सहज हो जाए… लेकिन मुरली पहले क्लास में ही सुननी है

सार

1. संगम पर बाबा ने हमें अपना सत्य परिचय दिया है (उनका नाम-रूप है, वह हमारा बाप-टीचर है)… इसलिए अब हम बाप-वर्से की याद में बैठते हैं (जिससे ही विकर्म विनाश, कमाई होती, हम बाबा के समीप पहुँचते)… इसलिए चार्ट अवश्य रखना है (इसमें ही कल्याण है)

2. शिवबाबा की याद में ईश्वरीय सेवा जरूर करनी है, जिससे 21 जन्मों की कमाई जमा होती… हम सारे राज़ जानते हैं (ड्रामा 5000 वर्ष का है, कृष्ण, देवियाँ, आदि)

चिन्तन

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि इस समय की पुरुषार्थ-स्थिति से ही सारे कल्प का भाग्य बनता, तो सदा चार्ट द्बारा अपनी याद की यात्रा को पक्का बनाते, सर्व प्राप्ति सम्पन्न दिव्यगुण-सम्पन्न बनते-बनाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Seeing our perfect form! | (56th) Avyakt Murli Revision 29-05-70

Seeing our perfect form! | (56th) Avyakt Murli Revision 29-05-70

1. जब सम्पूर्णता के समीप होंगे, तो हमारे आकारी (लाइट का फ़रिश्ता) और भविष्य देव-रूप दोनों स्पष्ट सामने दिखेंगे… ऎसे अनुभव होगा कि अभी-अभी पुराना वस्त्र उतारा, और अभी यह बनें… फिर औरों को भी अनुभव होगा

2. ऎसे देह-भान को छोड़, संकल्प को भी विल करने से, (विल पावर) शक्ति-समानता आती… बिल्कुल हल्का रहते, हम तो निमित्त है, बाबा की हर पल मदद मिलती

3. फर्स्ट बनने के लिए:

  • फास्ट (व्रत) रखना… एक बाबा दूसरा ना कोई, एक की ही स्मृति
  • फास्ट जाना… अर्थात तीव्र पुरूषार्थी

4. महारथी अर्थात माया पर सदा विजयी, उसे विदाई दे देना… इसके लिए knowledge के साथ शक्ति चाहिए, तब ही ज्ञान स्वरूप में आता, सफलता मिलती

5. तीव्र पुरूषार्थी अर्थात फरमानवरदार, एक संकल्प भी फरमान से विपरित नहीं… ज्ञान-स्नान की शक्ति से, माया (अछूत) पास भी न आए

सार

तो चलिए आज सारा दिन… सदा अपने सम्पूर्ण आकारी और देव-रूप (और बाबा) को सामने रख, अपनी सम्पूर्णता की ओर तीव्रता से आगे बढ़ते… अपने संकल्पों को भी विल कर, हर पल बाबा के फरमान पर चलते, ज्ञान-योग की शक्ति से हल्के-मायाजीत बनते-बनाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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The rain of spiritual knowledge! | Sakar Murli Churnings 09-09-2019

The rain of spiritual knowledge! | Sakar Murli Churnings 22-08-2019

मुरली सदा क्लास में पूरी सुननी चाहिए… अतः इस लेख का सिर्फ यह उद्देश्य है, कि मुरली सहज याद रहे, ताकि सारा दिन उसका अभ्यास-धारण करना सहज हो जाए… लेकिन मुरली पहले क्लास में ही सुननी है

सार

1. स्वयं भगवान्-बेहद के बाप ने हमें तुच्छ बुद्धि-विकारी-दुःखी से ब्राह्मण-चोटी बनाया है… अब जितना ज्ञान वर्षा-पढ़ाई को धारण कर, अपने को आत्मा समझ बाबा को याद कर, मर्यादाओं पर चलेंगे, उतना श्रेष्ठ पद बनेगा (माला का मणका, लक्ष्मी-नारायण समान देवता-पारस बुद्धि बनेंगे), नई दुनिया-स्वर्ग-सचखण्ड-सुखधाम में… बाकी थोड़े रोज है, सब बातों में कल्याण है

2. स्वदर्शन चक्रधारी बनने से अनेक व्यर्थ चक्र (देह-भान व्यक्ति-समस्या) से छूट, मायाजीत बन, ज्ञान-योग के पंख द्बारा उड़ती कला में आते… विदेही स्थिति से समस्याओं से सहज पार रहते

चिन्तन

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि हम पर रोज़ बाबा की ज्ञान-वर्षा हो रही, तो उन्हें सम्पूर्ण रीति अपने मे ग्रहण कर (चिन्तन वा उस पर योगाभ्यास द्बारा)… सदा रूहानी मोर ? बन अतिन्द्रीय सुख-आनंद में नाचते, सब को ज्ञान-दान कर आप-समान श्रेष्ठ बनाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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The power of determination! | (55th) Avyakt Murli Revision 28-05-70

The power of determination! | (55th) Avyakt Murli Revision 28-05-70

1. अब फैसला करना है, फिर agreement-engagement होगी (सेवा), फिर समारोह (सफलता)… साहस रखा है, तो माया का सामना होगा, इसलिए हिम्मत-उत्साह द्बारा विघ्नों को हाई-जम्प देना है (इसलिए स्वयं-सम्बन्ध में हल्का रहना है)

2. काली बनना अर्थात किसी से प्रभावित नहीं, औरों को बाबा पर बलि चढ़ाने वाले, सब के विघ्न हल करने वाली… ऎसी मायाजीत-एकरस स्थिति बनाने लिए विनाश-स्थापना के नगाड़े याद रखने है

3. स्नेही-सहयोगी बनने से शक्तिशाली बनना है… कहां स्नेही, कहा शक्तिशाली बनना, इस परख द्बारा व्यर्थ से बचे रहना है… हम हारने वाले नहीं, लेकिन बाबा की गले का हार है, कोई पर संकल्प से भी अर्पण नहीं… तिलक अर्थात शिक्षाओं को स्मृति में रखना, धारण करना… सफलता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, जो संकल्प-मस्तक-नयन-चेहरे से दिखता… हम उम्मीदवार, कमाल करने वाले शोपीस है

4. प्रतिज्ञा के बीज को हिम्मत-संग का जल देने से फलीभूत होगा… खुद पर आलमाइटी गवर्नमेंट की सील लगानी है, सिर्फ वाया परमधाम-वैकुण्ठ जाएँगे

सार

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि हम बाबा के बन गए हैं (agreement), तो सदा अपने श्रेष्ठ टाइटल्स को स्मृति में रख, हिम्मत-उत्साह द्बारा शक्तिशाली मायाजीत स्थिति का अनुभव करते… सबके विघ्नों को हरते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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The gift of divine eyes! | दिव्य नेत्र | Avyakt Murli Churnings 08-09-2019

The gift of divine eyes! | दिव्य नेत्र | Avyakt Murli Churnings 08-09-2019

मुरली सदा क्लास में पूरी सुननी चाहिए… अतः इस लेख का सिर्फ यह उद्देश्य है, कि मुरली सहज याद रहे, ताकि सारा दिन उसका अभ्यास-धारण करना सहज हो जाए… लेकिन मुरली पहले क्लास में ही सुननी है

सार

आज त्रिकालदर्शी बाप अपने त्रिनेत्री बच्चों का तीसरा नेत्र कितना स्पष्ट-शक्तिशाली है, वह देख रहे… बाबा ने 100% शक्तिशाली दिया है, हम यथाशक्ति प्रयोग करते… अब श्रीमत की दावा द्बारा फिर से 100% शक्तिशाली दिव्य-नेत्र बनाना है… यह दिव्य-नेत्र है:

  • दूरबीन… जिससे तीनों लोकों-कालों को स्पष्ट अनुभव कर सकते, अपना देवता-पूज्य-फ़रिश्ता स्वरूप सब
  • यंत्र… जिससे यथार्थ आत्मिक-स्वरूप और आत्मा के दिव्य गुण ही दिखते… यंत्र ठीक नहीं, तो ही काले अवगुण दिखते
  • टी.वी… जिससे हमारी पूरी 21 जन्मों की फिल्म, ताज-तख्त-तिलक, राज्य के नजा़रे देख सकते

सदा दिव्य-नेत्र से देखने (वा दिव्य-बुद्धि से सोचने) सेे complaint समाप्त, complete बन जाएँगे… अभी दिव्य प्राप्तियों से सम्पन्न-समर्थ बनना है

पार्टियों से

1. हम सर्व सम्बन्धों के स्नेह में समाए रहने वाली गोपिकाएं है, इसलिए सहजयोगी निरन्तर-योगी है, यही संगमयुग का अनुभव विशेष वरदान है… सम्बंध निभाते, उस शक्ति से निरन्तर लगन में रहना

2. ऊंची स्थिति में रहने से विघ्नों का प्रभाव नहीं पड़ता (जैसे स्पेस में धरती का आकर्षण नहीं)…स्नेह emerge कर मोहब्बत में रहने से मेहनत से छूट जाएँगे, शक्तिशाली रहेंगे

चुने हुए महावाक्य

1. शुभ चिन्तक बनने से सब स्वतः स्नेही-सहयोगी-समीप सम्बंध में आते, उन्हों भी सेवा का बल मिलता

2. अभी हमें माइट बन सबको माइक बनाना है (उनके अनुभव बाबा को प्रत्यक्ष करेंगे), औरों की भी एनर्जी ईश्वरीय कार्य में लगानी है… अब वारिस बनाने की सेवा करनी है, हम विश्व कल्याणकारी है, बाबा के हाथो में हाथ

3. बड़ी दिल से सेवा करनी-करानी है, संकुचित दिल नहीं रखना किसी के प्रति… बड़ी दिल से मिट्टी भी सोना, कमझोर से शक्तिशाली, असंभव भी सम्भव होता… सहयोगी भी धीरे-धीरे सहजयोगी बन जाएँगे

सार (चिन्तन)

तो चलिए आज सारा दिन… सदा दिव्य-बुद्धि से सोचते और दिव्य-नेत्र से देखते, सदा अपने श्रेष्ठ देवता-फ़रिश्ता स्वरूप अनुभव करते, बाबा के प्यार में डूबे रह… सदा श्रेष्ठ-ऊँची स्थिति का अनुभव करते, सबको सेवा में सहयोगी-सहजयोगी बनाते, सतयुग बनाए चले… ओम् शान्ति!


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