The power of conviction! | निश्चय-बुद्धि विजयन्ती | (6th) Avyakt Murli Churnings 15-02-69

The power of conviction! | निश्चय-बुद्धि विजयन्ती | (6th) Avyakt Murli Churnings 15-02-69

1. पूरा निश्चय चाहिए, जब तक पढ़ाई चल रही, तब तक सारा कार्य चलता रहेगा (अभी तो बच्चे-भक्त सबकी सेवा करनी है, बाबा रोज़ सुख की सर्चलाइट देते)… हमें स्वयं-बाबा का परिचय मिला है (जो खज़ाना-lottery है), उसमें स्थित रह उसका सबूत देना है… सम्भल कर चलना है, हिम्मतवान बन, आगे तो बहुत कुछ देखना है

2. सौभाग्यशाली अर्थात बाप-टीचर-सतगुरु से पूरा कनेक्शन… सदा सुहागिन अर्थात परमात्मा से सदा के लिए पूरी लगन

3. चित्रों-Museum द्बारा बाबा का परिचय देने की सेवा करते हुए, सबका उद्घार करते रहना है, जिससे पहाड़ उठ जाता (फिर सब साथ जाएँगे)… सवेरे उठ बाबा को याद करते रहना है (संगठन में भी), तो बाबा के नजदीक रहेंगे, मूंझेंगे नहीं

सार

तो चलिए आज सारा दिन… निश्चयबुद्धि बन अपने सत्य स्वरूप में टिक, बाबा को यथार्थ रीति याद करते, स्वयं को सदा सुहागिन-सौभाग्यशाली अनुभव करते रहे… सब का उधार करते, कलियुगी पहाड़ को उठाकर फिर से सतयुग स्थापन कर ले… ओम् शान्ति!


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The power of churning! | चिन्तन की शक्ति | Sakar Murli Churnings 06-07-2019

The power of churning! | Sakar Murli Churnings 06-07-2019

1. विचार करना है, बाबा ने हमें कितना ऊंच-सतोप्रधान-विश्व का मालिक-सुखी बनाया था शिवालय-स्वर्ग-हेवन में, फिर रावण-वश हम कितने विकारी-पापी-दुःखी बन भटक गए… अब फिर से पुरूषोत्तम संगमयुग पर बाबा राजयोग का ज्ञान देकर हमें सिखाते घर गृहस्थ में रहकर पवित्र बन अपने को आत्मा समझ बाबा को याद-संग में रहने का पुरुषार्थ करना, जिससे पाप नष्ट हो फिर से निर्विकारी फूल बन जाते

2. इसको सहज करने पढ़ाई अच्छे से पढ, ड्रामा पर अचल रहना है… औरों को भी सुनाते रहना है, जो समझने वाले होंगे वह समझेंगे, बाकी हमारी सेवा निष्फल नहीं जाती

चिन्तन

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि बाबा ने हमें विचार सागर मंथन करने की इतनी सुन्दर कला सिखाई है, तो रोज की मुरली में से कम-से-कम 5 पॉइन्ट लिखने की आदत डाले… फिर धीरे-धीरे हम सारा दिन मुरली पढ़ते-चिन्तन करते सदा श्रेष्ठ स्थिति में स्थित शान्ति-प्रेम-आनंद से भरपूर-सम्पन्न रहते… सबको करते, सतयुग बनाते रहेंगे… ओम् शान्ति!


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The Art of doing service! | (5th) Avyakt Murli Churnings 06-02-69

The Art of doing service! | (5th) Avyakt Murli Churnings 06-02-69

1. ज्ञान-पढ़ाई के सार का स्वरूप बन, फिर सेवा करनी है:

  • आँखों में बाबा दिखाई दे
  • वाणी से बाबा का ज्ञान
  • हमारी चलन में बाबा का चरित्र समाया हुआ हो
  • हमारे चित्र में बाबा का अलौकिक चित्र दिखाई दे
  • व्यक्त रूप में अव्यक्त-मूर्त देखे

यह ही बाबा की मेहनत का फल-स्वरूप है… इसके लिए याद की यात्रा अव्यक्त स्थिति में स्थित हो (जो आंतरिक अवस्था है), फिर कर्म करना है

2. सदा त्रिमूर्ति याद रखना है, अर्थात तीन बातें छोड़ना (बहाना-कहलाना-मुरझाना) और तीन बातें धारण करना (त्याग-tapasya-सेवा)… इसके लिए ज्ञान के तीसरे नेत्र को use करना… विघ्नों का सामना करना सहज है क्यूंकि समर्थ साथ है, सिर्फ मैं-मैं की कामना छोड़ना है… महिमा छोड़ मेहमान समझना है, तब महान स्थिति (अव्यक्त स्थिति) बनेंगी

3. शिव जयन्ती पर और धूमधाम-उमंग-उत्साह से बाप का परिचय देना है, तो बाबा हमारा भी साक्षात्कार कराएंगे… शक्ति रूप से ललकार करनी है, अर्थात बीजरूप स्थिति में स्थित रह, बीजरूप बाबा की याद में सेवा करना, समय का परिचय देना है… तो सहज-अच्छा फल निकलेगा

4. जैसे बाबा शरीर को न देखते सर्चलाइट देते स्नेह का सबूत दिया… ऎसे हमें भी अमृतवेला रूहाब-शक्ति रूप हो बैठना है (सुस्ती से लाइन clear नहीं रहती)… यही स्नेह में sacrifice है

सार

तो चलिए आज सारा दिन… सदा बीजरूप-शक्तिशाली-महान-अव्यक्त स्थिति में स्थित बीज बाबा की याद में रह, फिर उमंग-उत्साह से सेवा करे… तो स्वतः हमारे चेहरे-चलन-बोल में बाबा दिखते, हम सर्वश्रेष्ठ सेवा करते, सतयुग बनाते रहेंगे… ओम् शान्ति!


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Decorating ourselves with Baba’s remembrance! | Sakar Murli Churnings 05-07-2019

Decorating ourselves with Baba’s remembrance! | Sakar Murli Churnings 05-07-2019

1. हमने बाबा को बुलाया ही था पावन-सुखी बनाने, अब बाबा आया है नई दूनिया-सुखधाम बनाने, पुरानी दुनिया को थोड़ा समय है

2. तो डबल सिरताज बनने लिए, श्रीमत पर:

  • पवित्र बन
  • अपने को आत्मा समझ बाबा को याद करना है (योग से अपने श्रृंगार करना है, जिससे पुराने पाप भी भस्म होतेे… बाकी दुनिया का तो कुछ भी रहना नहीं है)
  • सेवा में लग-बिजी रहना है (जबकि हमें सत्य ज्ञान मिला हैै… और देेह-अभिमानी बन योग में रहकर समझाना है)..

3. जबकि बाबा हमें अमरलोक-स्वर्ग में ले जाते, तो बहुत खुशी में रहना है… इसी रुहानी कमाई में लगना है, सबको भी खुशी से भरपूर करने के निमित्त बनना है

चिन्तन

तो चलिए आज सारा दिन… बाबा की प्यार-भरी यादों में रह, अपनी आंतरिक अवस्था को शक्तिशाली शान्ति-प्रेम-आनंद से भरपूर-सम्पन्न अनुभव करते रहे… यही सच्चा श्रृंगार है, जो चेहरे-चलन की दिव्यता-रॉयलती-अलौकिकता के रूप में प्रत्यक्ष होता… और हम सबको आप समान श्रृंगारते, सतयुग बनाते रहते… ओम् शान्ति!


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The power of experience! | (4th) Avyakt Murli Churnings 02-02-69

The power of experience! | (4th) Avyakt Murli Churnings 02-02-69

अव्यक्त मिलन मनाने की सहज विधि!

1. हमारा शुद्ध ज्ञान-सहित प्यार बाबा को भी खिंच लाता (बाबा का भी हमसे शुद्ध प्यार है, साथ में निर्मोही है, जानते हैं ड्रामा accurate-कल्याणकारी है)… दिव्य-बुद्धि (पुरूषार्थ) से अव्यक्त-वतन (वा सूक्ष्मवतन-वासी बनने) का अनुभव करने में अनोखी-अलौकिक-लाभदायी कमाई है, इसकी सहज बिधि है अमृतवेले याद में इस संकल्प से बैठना हमें अव्यक्त मिलन मनाना है, और अव्यक्त स्थिति में स्थित हो रूहरूहान करना, जिसके लिए सारा दिन अन्तर्मुखी-अव्यक्त रहना है… हमारे में इतनी ताकत है जो अव्यक्त-वतन को नीचे ला सकते, हमें अलौकिक फ़रिश्ता बन पढ़ाई का शो करना है 

2. हमारा अविनाशी स्नेह बाबा को पहुंचता है, वह भी respond करते… इसे कैच करने व्यक्त भाव छोड़ना पड़ेगा

प्रैक्टिकल सेवाओं में!

1. सेवा में मैं-पन के ज्ञान-बुद्धि-सेवा का अभिमान से मायूसी-मुरझाईश-मगरूरी-पन आता, और निमित्त भाव से निराकारी-निरहंकारी-नम्रचित-निःसंकल्प बनते… मतभेद के बजाए स्वादर्शन चक्रधारी बनना है… बाबा की शिक्षा है निर्माण-चित्त हो सबसे प्यार से चलना

2. ड्रामा के silence से शक्ति आती, हमें देख सब सीखेंगे… अभी ज्वाला-रूप ज्वाला-देवी बनना है, माताओं का संगठन 

सार

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि बुद्धि-बल के अनुभवों में ही सच्ची कमाई है, तो सदा ड्रामा की पट्टी पर अन्तर्मुखी-silent रह अव्यक्त फ़रिश्ता बन बाबा को प्यार से साथ रख, सूक्ष्मवतन को ही नीचे लाए… अपने संस्कारों पर शक्तिशाली ज्वाला-रूप बन, औरों के साथ नम्र-चित्त बन बहुत प्यार से चलते… सतयुगी बन-बनाते रहे, ओम् शान्ति!


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Increasing enthusiasm for seva! | Sakar Murli Churnings 04-07-2019

Increasing enthusiasm for seva! | Sakar Murli Churnings 04-07-2019

1. मुरली सुनकर जो सेवा करते वह समाचार Magazine में आते, जिसे पढ़ने से उमंग आता, कि हम भी हमारे श्रेष्ठ भाई-बहनों जैसे सेवा कर, ऊंच पद पाएं… मुख्य है ही पढ़ना और पढ़ाना

2. हम संगम पर खड़े कलियुग-सतयुग के अपार दुःख-सुख स्वर्ग-नर्क का contrast समझते, आत्मा का पार्ट अविनाशी रिपीट होता रहता… यह सब धारण कर, सबको आत्मा समझ सुनाना है

3. यह wonderful रूहानी यूनिवर्सिटी है, सुप्रीम रूह हम रूहों को समझाते, हम उनके adopted ब्राह्मण बच्चें है… फिर हमारे श्रेष्ठ-दैवी संस्कार ट्रांसफ़र हो हम सतयुग में पहुंच जाएंगे, ऊंच पद, जैसे कि कपड़ा बदली करते

चिन्तन 

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि हमारे भाई-बहनें श्रीमत पर इतनी श्रेष्ठ सेवा कर रहे… तो हम भी श्रेष्ठ ज्ञान-योग द्बारा सर्वश्रेष्ठ धारणा-मूर्त बन जाए… तो स्वतः हमारे हर संकल्प-बोल-कर्म द्बारा सेवा होते, हम सतयुग बनाते रहेंगे… ओम् शान्ति! 


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Making our time successful! | Sakar Murli Churnings 03-07-2019

Making our time successful! | Sakar Murli Churnings 03-07-2019

ज्ञान-सागर बाबा नें हमें अपना सारा ज्ञान-धन दे खाली हो गए हैं, अभी हमें यह सम्पूर्ण ज्ञान धारण कर परिचय-सहित बाबा को याद कर भाई-भाई की दृष्टि पक्की कर सम्पूर्ण पावन-सतोप्रधान-पूज्य बनना है, इसी आधार से विश्व में सुख-शान्ति स्थापन होती, बाबा की मिशन ही हैं हमें चेंज कर मनुष्य से देवता बनाकर विश्व में नई दुनिया-स्वर्ग स्थापन करना… औरों को भी समझाते रहना है

चिन्तन

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि यह समय ही है कल्प-कल्पान्तर का सर्वश्रेष्ठ भाग्य बनाने का, तो हर पल अपने समय-श्वास-संकल्प ज्ञान-योग-धारणा-सेवा में सफल करते रहे (चाहे कैसी भी परिस्थिति हो)… तो स्वतः तीव्र पुरूषार्थी बन जाएँगे सदा शान्ति प्रेम आनंद से भरपूर रहते, विघ्न विनाश होते जाते… हम औरों का जीवन भी श्रेष्ठ बनाते, सतयुग बनाते रहेंगे… ओम् शान्ति!


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Surrendering completely to Baba! | (3rd) Avyakt Murli Churnings 25-01-69

Surrendering completely to Baba! | (3rd) Avyakt Murli Churnings 25-01-69

1. अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर अव्यक्त को देखना है साकार में (तो अव्यक्त मुलाकात का अलौकिक अनुभव ले सकेंगे)… इसके लिए अमृतवेला शक्तिशाली चाहिए (जिससे थकावट दूर होती), अन्तर्मुखता-Silence (वाणी से परे)-अव्यक्त में रहते कर्मणा में आने का अभ्यास ज्यादा सारा दिन

2. सर्व समर्पण अर्थात देह-भान से भी परे (मरे हुए) और श्वासों-श्वास स्मृति, तब सम्पूर्ण कर्मबन्धन-मुक्त बन साथ जाएँगे.. एसी आत्माएं सहनशील होने कारण सदा शक्तिशाली-हर्षित रहेंगे… वाणी से भी निर्बल बोल नहीं निकलेंगे, संकल्प ड्रामा की पट्टी पर accurate चलेंगे

सार

तो चलिए आज सारा दिन… अमृतवेला-अन्तर्मुखता-Silence की अघ्छी प्रैक्टिस द्बारा अव्यक्त स्थिति को अपनी नैचुरल नेचर बना… सदा बाबा की दी हुई श्रेष्ठ स्मृतियों में स्थित, देह भान से परे रह… सबको अविनाशी खज़ाने बांटते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Being decorated always! | Sakar Murli Churnings 02-07-2019

Being decorated always! | Sakar Murli Churnings 02-07-2019

1. हम सभी आत्माएं भाई-भाई है, बेहद के बाप के बच्चे… जो संगम पर आकर सारा ज्ञान दे (आत्मा की realization, बाबा का परिचय, कल्प वृक्ष, आदि) हमें पावन-देवता बनाकर नई दुनिया-स्वर्ग बनाते… फिर द्वापर से और धर्म आते, यह ड्रामा accurate बना हुआ है

2. हमें एम-ऑब्जेक्ट मिल गया है, बाबा हमें रोज़ श्रृंगारते, तो इस श्रृंगार को सदा कायम रखना है, फिर हम सतयुग में भी श्रृंगारे रहते… सदा हर्षित-मुस्कराते रहना है, ड्रामा पर अचल अडो़ल-एकरस-स्थेरियम रहेंगे, तब ही श्रेष्ठ पुरुषार्थ कर सकते

चिन्तन

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि बाबा हमें रोज़ ज्ञान-गुण-शक्तियों से श्रृंगारते, तो सदा इस श्रृंगार को कायम रखने… योग से अपने को शक्तिशाली कर, ज्ञान द्बारा व्यर्थ से बचते… सदा खुश रह, सबको भी आप समान सम्पन्न बनाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Becoming free from sorrow! | Sakar Murli Churnings 01-07-2019

Becoming free from sorrow! | Sakar Murli Churnings 01-07-2019

मनुष्य पाप-आत्मा होने कारण रावण कि जेल वा गर्भ-जेल में दुःखी होते हैं, देह-अभिमान है मुख्य… इसलिए बाप आए हैं हमें सत्य ज्ञान देकर देही-अभिमानी civilised-निर्विकारी लक्ष्मी-नारायण समान बनाने… सम्पूर्ण (देह-भान मुक्त) बनने में समय लगता, इसलिए अच्छे से पढ़ते, बाबा की याद करते, सेवा में लगे रहना है, श्रेष्ठ धारणा-मूर्त बन (उल्टी sulti बातें सुनना, दुःख देना आदि छोड़ते).. जब तक शरीर में है 

चिन्तन

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि बाबा हमें दुःख के अंश-मात्र से भी मुक्त करना चाहते, तो सदा बाबा की प्यार भरी यादों में मग्न रह, सभी बाह्य प्रभावों से परे… सदा खुश रह, सबको खुशी बांटते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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