1. आज बापदादा अपने परमात्म प्यारे बच्चों को देख रहे। ऐसे कोटो में कोई बच्चे हैं क्योंकि परमात्म प्यार सिर्फ संगमयुग पर अनुभव होता। कोई पूछे परमात्मा कहाँ है? मेरे साथ ही रहते हैं। हमारे दिल में बाप, बाप के दिल में हम रहते। जानते हो यह परमात्म प्यार का नशा हमें ही अनुभव करने का भाग्य प्राप्त है।
2. किसी से प्यार होता तो निशानी है उसपर कुर्बान होना। बाप की चाहना है मेरा एक एक बच्चा बाप समान बने। वह श्रेष्ठ स्थिति है सम्पूर्ण पवित्रता। ऐसी पवित्रता जो स्वप्न में भी अपवित्रता का नामनिशान आ न सके। समय समीपता अनुसार व्यर्थ संकल्प भी अपवित्रता है। अगर बाप की दी हुई विशेषताओं को अपनी विशेषता समझ अभिमान में आते, मेरेपन के अशुभ संकल्प मैं कम नहीं हूँ, मैं भी सब जानता हूँ, यह भी व्यर्थ संकल्प हुआ। अभी पवित्र दुनिया-राज्य की स्थापना का समय समीप लाने वाले आप निमित्त हो, आपका वायब्रेशन चारों ओर फैलता।
3. अभी डबल सेवा चाहिए। वाणी की सेवा तो धूमधाम से चल रही, उल्हना निकाल रहे। लेकिन अभी चाहिए मन्सा सेवा द्वारा सकाश, हिम्मत, उमंग-उत्साह देना। आप इस कल्प वृक्ष का फाउण्डेशन पूर्वज और पूज्य हो। बापदादा तो दु:खी बच्चों का आवाज सुनते, आपके पास उन्हों के पुकार का आवाज पहुंचना चाहिए। आपको अभी प्यार-सन्तुष्टता-खुशी की अंचली देने की आवश्यकता है।
4. अपने नयनों-चेहरे-चलन द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करो। अभी तक यह आवाज हुआ है कि ब्रह्माकुमारियां मनुष्य आत्मा को अच्छा, अशुद्ध व्यवहार से मुक्त कर देती। लेकिन अभी परमात्मा बाप आ गया है, परमात्म ज्ञान यह दे रही, मेरा बाप वर्सा देने आ गया है, अभी बाप की तरफ नजर जाने से उन्हों को भी परमात्म प्यार, परमात्मा की आकर्षण आकर्षित करेगी। अच्छा-अच्छा तो हो गया है लेकिन परमात्मा बाप की प्रत्यक्षता आकर्षित कर अच्छा बनायेगी। तो अभी मन्सा द्वारा बाप के समीप लाओ। अभी वर्सा नहीं लिया तो कब लेंगे! समाप्ति को समीप लाने वाले कौन? हर एक बच्चा समझता है ना मैं ही निमित्त हूँ। सन शोज फादर।
5. अभी से व्यर्थ को समाप्त कर सदा समर्थ बन समर्थ बनाओ। व्यर्थ का समाप्ति दिवस मनाओ। दूसरा दु:ख और अशान्ति की समाप्ति का दिवस समीप लाना। दूसरों को वर्सा दिलाने के ऊपर रहम आना चाहिए। छोटी छोटी बातों में क्यों, क्या के क्यूं में टाइम नहीं देना। अभी हे बापदादा के सिकीलधे पदम पदम वरदानों के वरदानी बच्चे! अभी संकल्प को दृढ़ करो। कर्मयोगी बनो, लाइफ सदाकाल होती है। तो अभी अपना कृपालु-दयालु, दु:खहर्ता-सुख देता स्वरूप को इमर्ज करो। अचानक के पहले भक्तों की पुकार पूरी करो। दु:खियों के दु:ख के आवाज तो सुनो। अभी हर एक छोटा बड़ा विश्व परिवर्तक, विश्व के दु:ख परिवर्तन कर सुख की दुनिया लाने वाले जिम्मेवार समझो।
6. अभी चारों ओर के परमात्म प्रेमी बच्चों को जो सदा बाप के प्यार में उड़ते रहते तीव्र पुरूषार्थी हैं और सेवा में निर्विघ्न सच्चे सेवाधारी हैं, ऐसे चारों ओर के बच्चों को बापदादा भी देख रहे, सदा खुश रहो और खुशी बांटों, यह वरदान दे रहे। खुश चेहरा, कोई भी देखे खुश हो जाए। सभी के लिए एक वरदान है। कभी चेहरा मुरझाया हुआ नहीं। अगर आप मुरझायेंगे तो विश्व का हाल क्या होगा! आपको सदा खुशनुमा चेहरा-चलन में रहना-रहाना है।