Baba’s elevated vision! | (26th) Avyakt Murli Churnings 27-08-69
1. बाबा हमें सिरमोर, नैनों के नूर, नूरे रत्न, रूहें गुलाब, गुलदस्ते की शोभा के श्रेष्ठ रूप में देखते… तो हमें भी अपने को रूह समझ देह से न्यारा-प्यारा रहना है, तो सदा अथक रहेंगे, इसी हिम्मत से बाबा की मदद मिलती, कलियुगी पहाड़ उठता… बाबा अब भी हमारी जिम्मेवारी-सम्भाल करने, तो हमें भी पवित्रता का कंगन पक्का बाँधना है
2. हमें अपने ताज-तख्त को बुद्धि में रख, हमारे लक्ष्य लक्ष्मी-नारायण समान नैन-चलन धारण करने है… ऎसे दिव्यगुणों (नम्रता, सरलता) से स्वयं को सजाकर खुशबू फैलानी है
3. समय कल्याणकारी है, इसलिए सेवा में सफलता मिलती रहेंगी, फिर भी पुरुषार्थ करना है… यज्ञ को आगे बढ़ाते रहना है, बुद्धि चुस्त-दूरांदेशी रख (जिसके लिए ताज-तख्त मिला है)
सार
तो चलिए आज सारा दिन… अपने को पवित्र रूह समझ बाबा के दिए हुए स्वमानों के स्वरूप बन, लक्ष्मी-नारायण समान दिव्यगुणों की खान बन, दूरांदेशी-कल्याणकारी बन सबकी अथक सेवा करते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!
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