Becoming free from subtle bondages! | Avyakt Murli Churnings 29-12-2019
1. आज बाबा सच्चे-ब्राह्मणों के स्थान-स्थिति को देख रहे थे… कई स्थान तपस्या-वायुमण्डल वाले सादगी-श्रेष्ठता सम्पन्न थे… और स्थिति में, जबकि हम बन्धनमुक्त-योगयुक्त-जीवनमुक्त एवर-रेडी आत्माएं है (कर्मातीत बनने वाली)… बाप-समान (बाबा को बच्चों से प्यार होते भी, समय पर सम्पूर्ण बन किनारा छोड़ दिया)… फिर भी बच्चों में दो सूक्ष्म-बन्धन देखे (जो महीन-बुद्धि से दिखते):
- सेवा के साथी (जिनकी गुण-विशेषता-मदद-सहयोग कारण सेवा में वृद्धि होती) प्रति झुकाव-लगाव-सहारा बनना (उससे “ही” बात करना-सुनना अच्छा लगता)… इसलिए समय पर बाप बदले, वह याद आते (फिर बाबा से याद की लिंक जोड़ने की मेहनत करनी पड़ती)… यह कमज़ोरी फिर पक्की बन जाती
- साधनों के वश हो सेवा करना… जबकि हमारा आधार सिर्फ एक बाबा है, विनाशी-साधन सिर्फ सेवा-वृद्धि लिए मिले है
2. परखने की शक्ति बढ़ाने से स्व वा सेवा में उन्नति होंगी… जिसके लिए बुद्धि की लगन एक बाप में एकाग्र-मगन करनी है, फिर ही उड़ती कला में एकरस होंगेे… जिद्द-सिद्ध नहीं करना, नहीं तो कमज़ोरी और बढ़ेंगी… एक-एक बात सहज क्रॉस कर विजयी बनना… रॉयल-धागे (सोने के हिरण) पीछे बाबा का साथ-मौज नहीं छोड़ना.. हम बाबा के संकल्प से पैदा हुए, योग्य-बच्चों को बाबा सम्पूर्ण-योगी बनाना चाहते
3. (परदादी से)… पहले से सदा साथ रहे, अब भी साथ का अनुभव कम नहीं (हमें तो सदा साथ का वायदा-वरदान मिला है, सारे कल्प का सम्बन्ध)… हम सेवा के उमंग-उत्साह वाली वरदानी आत्माएं है, वरदान-दृष्टि से सेवा करनी वाली चैतन्य मुर्ति-देवीयां
सार
सदा बाबा के साथ-लगन में एकाग्र हो परखने की शक्ति-सम्पन्न बन… सर्व सूक्ष्म बन्धनों से परे, बाप-समान योगयुक्त-जीवनमुक्त उड़ती-कला में एकरस रह… अपने वरदानी स्वरूप-दृष्टि द्वारा सबकी सेवा करते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!
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