Becoming Karmateet! | Avyakt Murli Churnings 18-12-87
1. बाबा देख रहे… हम कहाँ तक विदेही-कर्मातीत, बाप के समीप-समान बने हैं (तब ही साथ जा सकते)
2. कर्मातीत अर्थात:
- कर्म में आते भी कर्म-बन्धन से न्यारे… कर्म के फल के वशीभूत-परवश-भटकते नहीं, लेकिन अथार्टी-मालिक कामना-मुक्त हो कर्मेंद्रीयां द्बारा कर्म कराने वाले… कर्मेंद्रीयों की आकर्षण आकर्षित न करे, सदा स्वराज्य अधिकारी (आंखों का उदाहरण)
- देह-पदार्थ-सम्बन्ध के बन्धन से अतीत-न्यारे… अधीन होने से ही परेशान-दुःखी-उदास होते, सबकुछ होते भी खाली मेहसूस करते, चाहिए-चाहिए के कारण असन्तुष्ट, नाराज अर्थात राज को न जानने वाले… अधिकारी अर्थात न्यारा-प्यारा
- पिछले कर्मों के हिसाब-किताब के बन्धन से भी मुक्त (तन का रोग, मन के संस्कार, सम्बन्ध में टक्कर, आदी)… उन्हें भी कर्मयोगी बन मुस्कराते हुए सूली से कांटा कर चूकत-भस्म करते, वर्णन-परेशान-चिल्लाना तो दूर की बात… यह होता
- अशरीरी बनने से, जिससे देह-भान से परे जाते (बेहोशी के injection जैसे)
- फोलो फादर-आज्ञाकारी बनने से दिल की दुआएँ प्राप्त करने से
3. यदि हिसाब-किताब से वा ड्रामा में कुछ नुकसान जैसी बातें आती… फिर भी धैर्यवत-अन्तर्मुखी हो देखने से उसमे भी फायदा दिखता… हम ऎसे फायदा देखने वाले होली-हंस है
4. साधारण आत्मा परिस्थिति में क्या-क्यों के चक्कर में आती… कर्मातीत आत्मा के लिए सबकुछ अच्छा होता (स्वयं-बाप-ड्रामा सब)… यह कैंची का कार्य करता, जो कर्मबन्धन कांटता… संगम की हर सेकण्ड कल्याणकारी है,
सार
तो चलिए आज सारा दिन… सदा अपने को देह में रहते विदेही आत्मा समझ, मालिक-अधिकारी बन कर्मेन्द्रियों का प्रयोग करते रहे… अशरीरी-पन वा फालो फादर के बल से सब परिस्थितियों में फायदा-कल्याण देखते… सबके लिए श्रेष्ठ उदाहरण बनते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!
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