Becoming a light-house! | (60th) Avyakt Murli Revision 19-06-70
1. हम भी त्रिमूर्ति है, जिनसे 3 प्रकार की लाइट निकालती… नयन से (बल्ब-समान ज्योति, हीरा), मस्तक से (सर्चलाइट जैसे), और माथे पर (लाइट का क्राउन)… तब ही फ़रिश्ता कहेंगे
2. सब हमारे पास हल्के हो जाएँगे… हमारा स्थान (मधुबन) लाइट का स्थान बन जाएँगा, ऎसा लाइट-हाउस बनना है… बाबा-मिलन अर्थात उनके गुण-कर्तव्य से मिलन
3. कार्य करने पहले सोचना, बाबा ने निमित्त बनाया… और अन्त में भी सबकुछ समर्पण-स्वाहा कर देना, तो कोई संकल्प नहीं चलेगा… किसी से सहयोग मिला हो, तो उसे एक्स्ट्रा सहयोग देना है, शुभ भावना-वृत्ति द्बारा, जिसका प्रभाव सदाकाल रहता, उन्हें भी अनुभव होता
4. बाबा का हमसे अविनाशी स्नेह है, तो हमें भी ऎसा अटूट स्नेह उनसे जोड़ना है, फिर यही स्नेह 21 जन्म चलेगा… यही बैंक है, 21 जन्म चलने वाली, तो संकल्प भी व्यर्थ न जाए, हमारी ऎसी ऊँची मंजिल है
सार
तो चलिए आज सारा दिन… सदा अपने को हल्का लाइट-हाउस फ़रिश्ता समझ, बाबा से अविनाशी स्नेह जोड़… सबको शुभ भावना से सम्पन्न करतेे, निमित्त भाव से सेवा करतेे, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!
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