Becoming a Maharathi! | (50th) Avyakt Murli Revision 26-03-70

Becoming a Maharathi! | (50th) Avyakt Murli Revision 26-03-70

1. बोलते हुए भी बोल से परे रहे, एसी स्थिति बनानी है… महारथी अर्थात प्रैक्टिस-प्रैक्टिकल, संकल्प-कर्म में कोई अन्तर नहीं, जैसे ब्रह्मा बाप… महारथी अर्थात कर के दिखाने वाले, निश्चय-बुद्धि महान

2. नई दुनिया का प्लान प्रैक्टिकल में लाना, अर्थात पुराने कोई संस्कार-संकल्प प्रैक्टिकल में नहीं लाना… वृत्ति-दृष्टि-संकल्प-संस्कार-स्वरूप तक भी परिवर्तन… अगर बाप-समान संस्कार नहीं, तो उन संस्कारों को टच भी नहीं करना है… बाप जैसे गुण-कर्तव्य-सीरत अपनानी हे

3. हम सफलता के सितारे है… गुड्डी का खेल (अर्थात व्यर्थ संकल्प की रचना-बर्थ कर, उनसे तंग होने वाले नहीं), एसी कमजोरी के संस्कार बहुत पुराने लगे, एसी सम्पूर्णता की छाप लगानी है, तब और भी सम्पूर्णता के समीप आएँगे

4. मैं-मेरा, तू-तेरा से भी उपराम रह बाबा-बाबा करना है, तब प्लेन याद रहेंगी… बिन्दु स्वरूप में टिकना सहज करने, सारा दिन उपराम-प्लेन रहना है, हम सबके लिए प्रेरणा-मूर्त है… हद के boundary से ही bondage होती… बेहद में रहने से बेहद स्थिति अनुभव करेंगे… ऎसा सम्पूर्ण अभी से बनना है, जिससे हमारी प्रत्यक्षता होगी (वा करनी है)

5. अपनी दृष्टि-वृत्ति पलटाने से, नज़र से निहाल कर सकेंगे, अर्थात स्नेह-सम्बन्ध में लाएंगे… एक जगह बैठकर अनेकों की सेवा करनी है (वह अनुभव करे जैसे कोई हाथ पकड़ कर ले आ रहे, तमोगुणी के भी संस्कार परिवर्तन होने लगेे)… अब बेहद को सुख देना है, तब ही सब सुखदाता के रूप में स्वीकार करेंगे… फील-फेल होने से परे, फ़्लोलेस, फूल पास बनना है

सार

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि हम नई दुनिया को प्रैक्टिकल लाने वाले है, तो सदा पुराने-पन से उपराम बन… सदा बिन्दु रूप में सहज स्थित रह, बाबा की प्लेन याद में रह बाप-समान सम्पूर्ण फ़्लोलेस बन अनेकों को सुख देते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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