Becoming a pure thinker! | Avyakt Murli Churnings 11-08-2019
स्व-चिन्तन, शुभ-चिन्तन से बनते शुभ-चिन्तक!
- स्व-चिन्तन अर्थात… अपने आदि-अनादि स्वरूप के स्मृति-स्वरूप बनना… कमझोरी का चिन्तन नहीं
- शुभ-चिन्तन अर्थात… ज्ञान के राज को जान, सदा उसके मनन-खेलने-अनुभवों से भरपूर रहना… व्यर्थ के लिए समय-स्थान ही नहीं
- शुभ-चिन्तक… जिनके स्वयं के संकल्प-स्वभाव-संस्कार शुभ है, उनकी औरों के प्रति दृष्टि-वृत्ति स्वतः शुभ रहती… अशुभ-घृृणा नहीं
शुभ-चिन्तक अर्थात:
- कमझोर को उमंग-उत्साह-शक्ति के शुभ भावना-कामना का सहयोग देना, भरपूर करना
- नाउम्मीद को उम्मीदवार बनना
- दिलशिकश को दिलखुश
- गिरे को पंख दे उड़ाना
- कमझोरी न देख विशेषताओं की समर्थी भरते
- अपने खजानों को सेवा में लगाने वाले नम्बर-वन सच्चे सेवाधारी
माताओं से
1. भगवान् ने हमें अपना बनाकर, चरणों की दासी से सिरताज, चार दिवारों के बीच से विश्व का मालिक, खाली से भरपूर किया है… ऎसे सदा खुश मायाजीत बनना हैै… सदा बाबा के संग में रंगे नष्टोमोहा
2. सबसे बड़ा पुण्य है अपने खजानें-शक्ति को औरों के प्रति दान करना, जितना देते उतना बढ़ता, सदा काल का जमा होता … इसी उमंग से सेवा में आगे बढ़ते, सेवा का गोल्डन चान्स लेने वाले चांसलर बनना है
और पॉइंट्स
1. बाबा अपने स्नेही बच्चों को बहुत स्नेह-सहयोग-याद-प्यार देते… बाबा से मिले हुए स्नेह के स्वरूप बन सेवा करने से, सब बाबा के स्नेही बनेंगे, स्नेह ही आकर्षित करता
2. सबसे बङा भाग्य है स्वयं भाग्यविधाता ने अपना बना लिया, हम लक्की सितारे है… औरों का भी दीप जगाकर दीपमाला-राजतिलक मनाना है
3. नम्रचित्त-निर्माण-गुणग्राही बनने से सहज सिद्ध होंगे… जिद्द करने से प्रसिद्ध नहीं होंगे
4. स्वयं-दूसरों के प्रश्नों से परे रह, सब को देते रहने से… प्रशंसा-योग्य बनेंगे
सार
तो चलिए आज सारा दिन… सदा अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में रख, अपने आदि-अनादि स्वरूप का स्व-चिन्तन करते, ज्ञान रत्नों के शुभ-चिन्तन से भरपूर बन, सबका कल्याण करने वाले शुभ-चिन्तक निर्माण बन, सतयुग बनाते रहे… ओम् शान्ति!
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