Being in God’s spiritual army! | Avyakt Murli Churnings 15-12-2019
मुरली सदा क्लास में पूरी सुननी चाहिए… अतः इस लेख का सिर्फ यह उद्देश्य है, कि मुरली सहज याद रहे, ताकि सारा दिन उसका अभ्यास-धारण करना सहज हो जाए… लेकिन मुरली पहले क्लास में ही सुननी है
सार
1. आज रूहानी-सेनापति-बाप, हम नई-विश्व-रचना वाले रूहानी-सेना को देख रहे, कहाँ तक नॉलेज द्वारा शक्तिशाली-शस्त्रधारी बने है, कि … एक जगह बैठे दूर आत्माओं को टच कर सके… ऐसा विजय-चक्र हमें मिला हुआ है, ऐसे हम निश्चयबुद्धि स्वदर्शन-चक्रधारी है
2. एक पढ़ाई होते भी नम्बर-वार होने का कारण है, कोई ज्ञान को पॉइंट-रूप में धारण करते, कोई शक्ति-रूप से… जैसे कि:
- कोई ड्रामा की पॉइन्ट समझते-वर्णन करते भी रोते रहते (क्या हो गया)… कोई सदा एकरस-अचल-अडो़ल बन जाते
- आत्मा की पॉइंट (मैं शक्ति-स्वरूप आत्मा हूँ, सर्वशक्तिमान की सन्तान).. फिर कोई परिस्थिति बड़ी नहीं
ऐसे ही परमात्मा, 84 चक्र का पॉइंट, आदि… बुद्धि में धारण कर सेवा में लगने कारण सेफ तो रहते (लेकिन सदा मायाजीत नहीं रह सकते)… इसलिए ज्ञानवान (नॉलेजफुल) के साथ शक्तिशाली (पावरफुल) बनना है, लाइट-माइट सम्पन्न… समय पर विजयी बनना अर्थात् ही, नॉलेज को शस्त्र के रूप में धारण (मायाजीत बनने लिए तो शस्त्र मिले है)
3. जैसे कोर्स-प्रोग्राम सब प्यार-लगन-अथक हो करते (तन-मन-धन से), वैसे अब फोर्स भरना है… इसलिए कोर्स को फिर से revise करना (हर पॉइंट में क्या-कितनी शक्ति है, किस समय काम आती)… फिर चेक करना, सारा दिन कितना प्रैक्टिकल में रहा (परिस्थिति में भी)
4. यूथ में बुद्धि-शरीर दोनों की शक्ति है, जिसे हम शान्त-स्वरूप बन, दुःख दूर कर बिगड़ी बनाने लिए प्रयोग कर रहें… जबकि हम दुःखधाम से संगम पर आ गए, तो दुःख का एक भी संकल्प न हो
5. जैसे पढ़ाई-बाप-सेवा से प्यार है (नॉलेजफुल-सर्विसएबुल-तीव्र पुरूषार्थी भी है)… ऐसे अब सदा निर्विघ्न-खुश-हल्के-बाबा की छत्रछाया में रहना है (सदा साफ़, कोई दाग-जोड़ नहीं)… सब सहज है (जबकि समय का भी साथ है, अव्यक्त-मदद है, निमित्त की पालना है, सब बना-बनाया है)
6. अनन्य-रत्न सदा आगे बढ़ते, हर कदम पद्मो की कमाई जमा करते-कराते रहते… उनके हर संकल्प से सेवा होती, सब उमंग-उत्साह में आ जाते.. बाबा हमें देख निश्चिंत है (faith है), सब एक-दो से आगे, विशेष है
चिन्तन
सदा अपने को बाबा की रूहानी-सेना के शक्तिशाली-शस्त्रधारी समझ, बाबा की छत्रछाया-मदद-पालना का अनुभव करते… ज्ञान के हर पॉइंट को शक्ति-रूप से धारण कर, सदा एकरस-अचल-अडो़ल मायाजीत-वजयी बन… सदा हल्के-खुश-निर्विघ्न रहते, सब की बिगड़ी को बनाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!
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