Going beyond the bondage of body-consciousness | (69th) Avyakt Murli Revision 06-08-70

Going beyond the bondage of body-consciousness | (69th) Avyakt Murli Revision 06-08-70

1. बन्धन-मुक्त अर्थात अव्यक्त ने व्यक्त का आधार लिया है, जब चाहे प्रयोग करे-छोड़े, बाप-समान… जितना बन्धन-मुक्त, उतना योगयुक्त, उतना जीवनमुक्त… जितना न्यारा, उतना बाप-सर्व का प्यारा

2. सर्विस में सफलता अर्थात सब को बनाना स्नेही (बाबा से), सहयोगी (बाबा के कर्तव्य में), शक्तिशाली (पुरुषार्थ में)…. इसके लिए साक्षी बनना है, तो स्वतः साक्षात्-रूप (ज्ञान-योग का प्रत्यक्ष प्रमाण) व साक्षात्कार-मूर्त (बाप का साक्षात्कार कराने वाले) बनेंगे… वृत्ति-दृष्टि-वाणी-कर्म में पहले आप लाने से बाप-समान बना सकते, विश्व महाराजन् बन सकते… regard देने से हमारा रिकॉर्ड ठीक रहता, सर्व के स्नेही बनते… निर्माण बनने से प्रत्यक्ष-षप्रमाण दे, विश्व का निर्माण कर सकते

3. सम्मेलन अर्थात सब को बाप से मिलाना… जितना खुद प्राप्ति-स्वरूप, उतना सब को प्राप्ति करा सकेंगे… कब के बदले अब, ऎसा परिवर्तित हो, नजदीक प्रजा बनाने लिए नाज़ुकपना-अलबेलापन छोड़ राजयुक्त बनना है… शरीर छोड़ने के अभ्यास से रूहानियत कायम रहती… जितना संकल्प-बोल-कर्म सब में रेगुलर, उतना रूलर बनेंगे

सार

तो चलिए आज सारा दिन… अभी से सदा रूहानीयत का अभ्यास कर बाबा से जुड़े रहने में रेगुलर रह, प्राप्ति-स्वरुप जीवनमुक्त साक्षात्-रूप बन… सब को regard देते, निर्माणता से सेवा करते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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