The importance of time! | (45th) Avyakt Murli Revision 25-01-70
1. कर्म करते भी अव्यक्त स्थिति कायम रखनी है… इसके लिए बुद्धि की लाइन सदा clear चाहिए, अपने पर attention-निश्चय, बातों को सेकंड में परिवर्तन करना… समय कम है (तकदीर बनाने का, सतयुगी मंजिल पर पहुंचने का), इसलिए एक सेकंड भी व्यर्थ न जाए, जम्प लगानी है … बाबा से गुण-ग्रहण करते, सर्वगुण सम्पन्न बनना, फिर स्नेह की सौगात वापिस ले जाना है, जिससे विजयी बनते
2. जिस्म देखने से दुःख होता, रूह देखने से राहत मिलती… शूरवीर अर्थात स्वयं के विघ्न सेकंड मे समाप्त (परिस्थित-वायुमंडल को परिवर्तन करने वाले बहादुर), सारा समय सेवा के लिए… सम्पूर्णता का नक्शा तैयार कर तेज पुरुषार्थ करना है, तो बाबा की पूरी मदद मिलेंगी… सम्पूर्ण आहुति (मन-वचन-कर्म से) देने से ही सम्पूर्ण सफलता मिलती, इसका यही समय है
3. नयों को समय-परिस्थिति का सहयोग है, सिर्फ हिम्मत-निश्चय पक्का चाहिए, सेकंड में जन्मसिद्ध अधिकार मिलता… सदा सुखदाई बन रहना है, हम न्यारे-अलौकिक है, कुछ खिंच नहीं सकता… बाबा से compare करते रहने से, चलन श्रेष्ठ होती जाएंगी
4. हम एक मधुबन घर के है, सबका कनेक्शन एक से है, ऎसे एकरस रहेंगे… एक की ही याद से सर्व प्राप्ति है, माया सिर्फ आखिरी शो कर रही, घबराकर कमझोर होने से ही माया का वार होता-बेहोश करती, हमारे साथ तो सर्वशक्तिमान है… हमें स्मृति-स्वरूप रहना है (बाबा हमें कितना ऊंच देवता बनाते), विस्मृति के संस्कार-गंदगी समाप्त करने है (अन्त से पहले)… व्यर्थ संकल्प-समस्या का बिस्तरा बन्द, कब के बदले अब
5. बाबा से स्नेह है, तो जल्दी सम्पूर्ण बनना है, औरों को भी आगे बढ़ाना है… कर्म के पहले (वा बीच-बीच) में भी चेकिंग करने से स्थिति एकरस रहेंगी, आदत पड़ जाएंगी
सार
तो चलिए आज सारा दिन… समय कम है, इसलिए सभी पुरुषार्थ की युक्तियों को प्रैक्टिकल में लाते, सेकंड में परिवर्तन का जम्प लगाकर, सदा सर्वशक्तिमान बाबा से combined… सर्व गुण-प्राप्ति सम्पन्न-सम्पूर्ण बनते, सबको सुखदाई बनते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति
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