The love for Purusharth! | (10th) Avyakt Murli Churnings 17-04-69 (1/2)
1. पुरुषार्थ से स्नेह सबसे श्रेष्ठ है, क्यूंकि:
- बाबा से भी स्नेह है, क्यूंकि वह पुरुषार्थ कराते
- प्रालब्ध से स्नेह के पहले है, पुरूषार्थ से स्नेह
- जब पुरुषार्थ से स्नेह है, तो परिवार के भी प्यारे बनते
2. पुरुषार्थ के स्नेह से अनेक प्राप्तियां है:
- कल्प-कल्पान्तर का भाग्य बनता
- बाबा का स्नेह मिलता
3. अव्यक्त स्नेह से याद की यात्रा सहज होती… अब यही पाठ पक्का कर सर्विस का सबूत देना है… इसके लिए परिस्थिति (तन-सम्बन्ध-मन-धन-समय की समस्या) के आधार पर स्व-स्थिति नहीं बनानी (यह कमझोरी है), लेकिन स्व-स्थिति के आधर पर परिस्थिति (यह है शक्तिशाली), इतनी स्व-स्थिति में शक्ति है
4. रिजल्ट है:
- महारथी शेर से नहीं घबराते, चिति से घबराते
- घोड़ेसवार साइडसीन देखते (औरों को)
- और प्यादे राय को पहाड़ बनाकर घबराते
फिर भी आधे से ज्यादा को चेंज होने की लगन है, बाबा खुश हैं … यदि हम भी ऊँची स्थिति में स्थित होंगे, तो सबकुछ खेल अनुभव करेंगे
सार
तो चलिए आज सारा दिन… कैसी भी परिस्थिति हो, सदा पुरुषार्थ से स्नेह रख अपनी स्व-स्थिति को मजबुत करते रहे… इसको भी और सहज करने बाबा से स्नेह बढ़ाते रहे, तो स्वतः हमारी स्थिति ऊँची-श्रेष्ठ रहेंगी… सबको भी श्रेष्ठ बनाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!
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