Making soul-consciousness our natural nature | देही-अभीमानी स्थिति का नैचुरल नेचर | Avyakt Murli Churnings 02-02-2019
बाबा की आश!
बाबा हम बालक सो डबल मालिक बच्चों को देख रहे हैं, बाबा के सर्व खझानों के मालिक और स्वराज्य के मालिक… तो सदा ऊँची स्थिति में रहने लिए, बाबा की आश को पूर्ण करे, यही स्नेह की सौगात दे, कि कारण शब्द को निवारण (अर्थात समस्या को समाधान) में परिवर्तन कर दे, निर्वाणधाम पहुंचा दे… स्वयं मुक्त हो, सबको मुक्ति दिलानी है, हमारे पास सबकी क्यू लगेगी
अभी क्या सेवा करनी है?
सबको अनुभव कराने है, अनुभव से सब समीप आते, अनुभव जीवन-भर नहीं भूलता… इसलिए जैसे साइन्स गर्मी को ठंडी कर सकता, ऎसे साइलेंस पावर से नैन-मस्तक चेहरे-चलन से सबको शान्ति शक्ति खुशी की अनुभुती करानी है
कैसे?
उमंग-उत्साह खुशी को सदा कायम रखने बेहद की वैराग्य वृत्ति भी चाहिए… समय से पहले, सदाकल के लिए… तब ही समाधान स्वरूप, तीव्र पुरुषार्थी बनेंगे… भल प्रशंसा साधन अधिक मिले, हमें साधना का बैलेंस बनाएं रखना है
पुराने देह-भान के संस्कार, इस मुख्य कारण को अंश-सहित निवारण कर, देही-अभीमानी स्थिति को नैचुरल नेचर बनाना है
अन्य पॉइन्ट्स
समय का इन्तज़ार नहीं… उनसे पहले परिवर्तन होना है, समय हमारी रचना है, हम समय को खींचने वाले हैं
लास्ट सो फास्ट सो फ़र्स्ट बनने का चांस ले, chancellor बनना है!
सार
तो चलिए आज सारा दिन… देही-अभीमानी स्थिति को अपना नैचुरल नेचर बनाए, सदा शान्ति प्रेम आनंद के शक्तिशाली अनुभवों में रहे… तो स्वतः हमारे features से औरों को अनुभूति होती रहेंगी, उन्हें भी श्रेष्ठ जीवन बनाने की प्रेरणा मिलेंगी, और हम साथ में सतयुग बना लेंगे… ओम् शान्ति!