The power of Shrimat! | (44th) Avyakt Murli Revision 24-01-70
1. बाबा के वर्से के अधिकारी बनना अर्थात, देह-सम्बन्ध-वस्तु-माया से अधीन नहीं… बाबा को नैया देना अर्थात, श्रीमत पर हर कर्म को अलौकिक बनाना (जिससे सबको प्रेरणा मिलती) … सदा आत्म-अभिमानी रहने से सदा सुखी रहते
2. सदा अव्यक्त-स्थिति का वरदान याद रखने से, सहज अव्यक्त आनंद-स्नेह-शक्ति अनुभव होता… इसके लिए सिर्फ वरदान-वरदाता को याद रखना है, जो कि सबसे प्रिय वस्तु है… विस्मृती का कारण है कमजोरी, जो श्रीमत पर न चलने से आती, इसलिए सदा कर्म पहले चेकिंग करनी है, तो कर्म-जीवन श्रेष्ठ रहेंगा
3. औरों को बाबा का परिचय देने से वर्तमान-भविष्य दोनों श्रेष्ठ बनता… स्वयं को जगत-माता समझना (जिससे कल्याण होता) वा शिव-शक्ति समझना है (कमझोरी समाप्त), दोनों साथ याद रखने से मायाजीत बनते… नष्टोमोहा (देह से भी) बनने से स्मृति-स्वरूप बनेंगे, इसके लिए स्वयं को समर्पित-निमित्त समझना है, तो बाबा भी गुण-सहित हम पर समर्पण होंगे
4. सदा स्वयं को विजयी रत्न समझना है, निश्चयबुद्धि की कभी हार नहीं हो सकती… विघ्नों को पेपर समझना है (जो भिन्न-भिन्न होते), घबराने के बजाय गहराई में जाना है, अव्यक्त वातावरण बनाने में बिजी रहना है
5. शिव-शक्ति सबकुछ कर सकती, भल माया शेर-रूप में आए, हमें स्वयं को बदलना है… हम ही कल्प पहले वाली विजयी आत्माएं है, हिम्मत रखने से मदद मिलती, संकल्प का फाउण्डेशन मजबूत रखना है… कोशिश समाप्त कर अव्यक्त कशिश लानी है… संकल्प-बोल-कर्म समान, यही है तीव्र पुरूषार्थी
6. बाबा को याद करना सहज है… जिससे ज्ञान emerge होता, सहयोग मिलता, और स्मृति वहां भी काम आती… मैं परमधाम-निवासी आत्मा अवतरित हुई हूँ, ऎसी योगयुक्त स्थिति में, दो बोल भी भाषण-समान है
7. जो एम रखा है, उसे प्राप्त जरूर करना है… कोशिश शब्द समाप्त, निश्चय-बुद्धि विजयन्ती..
8. समय से पहले तैयार रहने से, एकरस स्थिति रहेंगी… सम्पूर्ण लक्ष्य रख, सम्पूर्ण पुरुषार्थ करना है, बाप-समान… जानना, और तुरन्त स्थिति बनना-धारणा में आना
9. यहां का सुख-शान्ति-विश्राम साथ ले जाना है… हम सर्वशक्तिमान के बच्चे, वातावरण भी परिवर्तन कर सकते… सिर्फ एक बाबा और मैं, तीसरा कोई नहींं, एसी ऊँची स्थिति में रहना है
10. बाबा-साथ की याद-अग्नि द्बारा, माया दूर से ही भाग जाएंगी, शक्तिशाली-विजयी रहेंगे… फिर कम समय में, ज्यादा सेवा होंगी
11. हम थके हुए हैं (आधा-कल्प से), इसलिए बाबा को विशेष स्नेह है… कहां भी याद कर सकते (जिससे मन के भाव शुद्ध) होते… सेवा के बंधन में अपने को बांधने से, और सब बंधन समाप्त हो जाते, श्रेष्ठ कर्म से श्रेष्ठाचारी बनते, ललकार करनी है
12. अव्यक्त में बाबा की छत्रछाया नीचे सब होता, हम भी वहां आते-जाते रहने से अव्यक्त-फ़रिश्ता समान रहते… हल्के, बन्धन-मुक्त… एक आँख में सम्पूर्ण स्थिति, दूसरे में राज्य पद
सार
तो चलिए आज सारा दिन… सदा श्रीमत पर बाबा की छत्रछाया के नीचे, आत्म-अभिमानी अव्यक्त स्वमान-धारी स्थिति में स्थित रह, वरदाता बाप कि याद-अग्नि द्बारा… संकल्पों को मजबूत रख, हर कर्म अलौकिक-विजयी बनाते… सबकी सेवा करते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!
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