The power to transform! | परिवर्तन शक्ति |(80th) Avyakt Murli Revision 31-12-70
नये वर्ष में नये उमंग-उत्साह-संकल्प-स्वभाव-संस्कार धारण करने के लिए, वा विश्व कल्याणकारी सो विश्व राज्य अधिकारी बनने लिए चाहए, परिवर्तन-शक्ति:
- अमृतवेला-आदिकाल में प्रथम-श्रेष्ठ-समर्थ संकल्प, “मैं आत्मा हूँ”… मैं ब्राह्मण आत्मा, भगवान् से मिलन मनाने पधारी हूँ
- सम्बन्ध का परिवर्तन… मेरे सर्व सम्बन्ध-प्राप्तियां बाबा से है, जिससे सहजयोगी-अधिकारी बनते
- फिर कर्म में… यह मन्दिर है, जिसमें बाबा की अति-प्रिय मूर्ति (मैं आत्मा) विराजमान हूँ, जिसकी बाबा महिमा करते… मैं इसका ट्रस्टी हूँ, सम्भालने-सजाने
- फिर मैं श्रेष्ठ गोडली स्टूडेंट हूँ, स्वयं भगवान्-श्री श्री, दूरदेश से मुझे पढ़ाने आते… हर एक बोल पद्मों की कमाई कराने वाला हैं… सुनाने वाले को नहीं देखो, अव्यक्त-निराकार को देखना
- सेवा में… सम्बन्ध सेवा के है, तो स्वीकार करना सहज होता, तंग होने के बजाय तरस से विश्व कल्याण करते… अटैचमेंट के बदले त्याग-तपस्या… धन कमाने के साथ याद भी, व्यवहार के साथ परमार्थ, डबल कमाई करने वाले कर्मयोगी
- व्यक्ति के साथ आत्मिक-भाव… वस्तु-वैभव के साथ अनासक्त-भाव
- साधन-दृश्य में साधना नहीं भूलना, मैं सिद्धि-स्वरूप आत्मा हूँ… हर बात से ज्ञान-अलौकिकता उठाना
- सोना बाबा की गोदी में… स्वप्न फरिश्तों की दुनिया के
सार
तो चलिए आज सारा दिन… अमृतवेला से रात तक परिवर्तन-शक्ति का प्रयोग कर… सदा अपने को आत्मा समझ, बाबा से सर्व सम्बन्ध अनुभव करते… सारा दिन योगयुक्त-स्थिति, अनासक्त-भाव से साधनों का प्रयोग करते, आत्मिक-भाव से सबसे व्यवहार करते… मन्दिर की मूर्ति समान दिव्य-पवित्र बनते-बनाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!
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