सन्तुष्टता का श्रेष्ठ, महान गुण ?

(140+ पॉइंट्स) सन्तुष्टता का श्रेष्ठ, महान गुण ? (महिमा, प्राप्तियां, विधि, निशानियां, प्रकार)

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(इन 10 अव्यक्त मुरली ? पर आधारित ?? – 12.3.84, 18.3.85, 5.10.87, 17.3.91, 3.4.94, 16.3.95, 20.10.08, 30.11.09, 20.3.12, 31.12.12)

A) ? सन्तुष्टता की शक्ति की महान महिमा / महत्व

सबसे बड़े से बड़ी स्थिति है ही सन्तुष्टता की।
यह सन्तुष्टता की शक्ति सबसे महान है।
सन्तुष्टता की शक्ति बहुत श्रेष्ठ है।

इस संगमयुग में विशेष बापदादा की देन ✋? सन्तुष्टता है।
ब्राह्मण जीवन का वर्सा, प्रॉपर्टी सन्तुष्टता है।
सन्तुष्टता ही बड़े ते बड़ा खज़ाना ? है।

संगमयुग का विशेष वरदान सन्तुष्टता है।
संगमयुग की विशेषता ‘सन्तुष्टता’,
यह है ब्राह्मण जीवन की विशेष प्राप्ति
ब्राह्मण जीवन का सुख है ही सन्तुष्टता।

सन्तुष्टता – ब्राह्मण जीवन का विशेष गुण कहो या खजाना कहो या विशेष जीवन का श्रृंगार ✨ है। सन्तुष्टता विशेषता है।

सन्तुष्टता, रुहानियत की सहज विधि है
सन्तुष्टता ज्ञान ? की सब्जेक्ट का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
सन्तुष्टता ब्राह्मण जीवन का जीयदान है।

सन्तुष्टता ही ब्राह्मण जीवन के प्योरिटी की पर्सनालिटी है।
सन्तुष्टता ब्राह्मण जीवन का विशेष परिवर्तन का दर्पण ? है।
यही मजे की जीवन है, मौज की जीवन है।

ब्राह्मण जीवन की उन्नति का सहज साधन है।
सन्तुष्टता सफलता का सहज आधार है।
सन्तुष्ट मणि अर्थात् सिद्धि स्वरूप तपस्वी।

यही ब्राह्मण जीवन की महिमा है।
संगमयुग है ही सन्तुष्ट रहने और सन्तुष्ट बनाने का युग।

B)? सन्तुष्टता से होने वाली प्राप्तियां / सन्तुष्टता के फायदे

a) ऐसी सन्तुष्ट मणियाँ सदा बाप के मस्तक में मस्तक मणियों ? समान चमकती हैं।

एक सन्तुष्टता की विशेषता और विशेषताओं को भी सहज अपने समीप लाती है।
सन्तुष्टता सदा सर्व प्राप्ति सम्पन्न है क्योंकि जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ अप्राप्त कोई वस्तु नहीं।

सन्तुष्टता जहाँ है वहाँ सर्वशक्तियां ⚡ सन्तुष्टता में समाई हुई हैं।
जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ सर्व शक्तियां सर्व गुण ? स्वत: ही आते हैं। एक सन्तुष्टता अनेक गुणों को अपना लेती है।

जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ खुशी जरूर है।
सन्तोषी आत्मायें स्वयं को भी प्रिय और सर्व को भी प्रिय और बाप को तो प्रिय हैं ही।

ऐसी सन्तुष्टमणियाँ ही बापदादा के गले का हार बनती है, राज्य अधिकारी ? बनती है और भक्तों के सिमरण की माला ? बनती हैं।

b) जो सदा सन्तुष्ट रहता है उससे सभी का स्वत: ही दिल का प्यार ❤️ होता है।
जो सन्तुष्ट रहेगा उसके प्रति स्वत: ही सभी का स्नेह रहेगा।

अगर हर एक सन्तुष्ट रहेगा तो चारों ओर क्या होगा! वाह वाह! का गीत ? बजेगा।
सन्तुष्टता बाप की और सर्व की दुआएं दिलाती है।

सन्तुष्ट आत्मा को सदा सभी स्वयं ही समीप लाने वा हर श्रेष्ठ कार्य में सहयोगी बनाने का प्रयत्न करेंगे।

सन्तुष्टता उस आत्मा की पहचान दिलाती है।
हर एक की दिल होगी इससे बातें करें, इससे बैठें।

सन्तुष्टता सदा सर्व के स्वभाव संस्कार को मिलाने वाली होती है।
सन्तुष्टमणि आत्मायें सर्व की दिल को अपना बना सकती हैं।

c) सन्तुष्टता सदा स्वमान की सीट ? पर सेट रहने का साधन है।
सन्तुष्टता हद के मेरे तेरे के चक्र से मुक्त कराए स्वदर्शन चक्रधारी ? बनाती है।

सदा बापदादा के दिलतख्तनशीन ?, सहज स्मृति के तिलकधारी, विश्व परिवर्तन के सेवा के ताजधारी, इसी अधिकार के सम्पन्न स्वरुप में स्थित करती है।
सन्तुष्टता बेफिकर बादशाह बनाती है।

सन्तुष्टता महादानी, विश्व कल्याणी, वरदानी सदा और सहज बनाती है।
सन्तुष्ट आत्मा सदा सर्व के, बाप के समीप और समान स्थिति में रहती है।

d) सन्तुष्टता सदा निर्विकल्प, एकरस के विजयी आसन ? की अधिकारी बनाती है।
सन्तुष्ट आत्मायें सदा मायाजीत हैं ही।

सन्तुष्टता की स्थिति सदा प्रगतिशील है। आपके आगे कैसी भी हिलाने वाली परिस्थिति ऐसे ही अनुभव होती है जैसे पपेट ? (कठपुतली) शो वा कार्टून ? शो। (जिसको साक्षी स्थिति में सदा सन्तुष्टता के स्वरूप में देखते रहो। अपनी शान में रहते हुए देखो-सन्तुष्ट मणि हूँ, सन्तोषी आत्मा हूँ।)

सन्तुष्टता की शक्ति कैसा भी वायुमण्डल हो, कैसा भी सरकमस्टांश हो उनको सहज परिवर्तन कर सकती है।

C) ?सन्तुष्ट, सन्तोषी आत्मा अर्थात् सन्तुष्टमणि की निशानियाँ

a) सम्बन्धित गुण / अनुभूतियां

सन्तुष्ट मणि अर्थात् बेदाग मणि। सन्तुष्टता की निशानी है – सन्तुष्ट आत्मा सदा प्रसन्नचित्त ? स्वयं को भी अनुभव करेगी और दूसरे भी प्रसन्न होंगे। ऐसा प्रसन्नचित्त सदा निश्चिन्त रहता है।

सन्तुष्टता अर्थात् दिल-दिमाग सदा आराम में होंगे। सुख-चैन ? की स्थिति में होंगे।

जिसका प्रसन्नचित्त होता है उसके मन­बुद्धि के व्यर्थ की गति फास्ट नहीं होगी। सदा निर्मल, निर्मान। निर्मान होने के कारण सभी को अपने प्रसन्नचित्त की छाया में शीतलता ?️ देंगे।

सन्तुष्ट आत्मा में सन्तुष्टता का नेचरल नेचर है।

b) स्वरूप

तपस्या ? का अर्थ ही है सन्तुष्टता की पर्सनालिटी नयनों ? में, चैन में, चेहरे में, चलन में दिखाई दे।

औरों को भी सन्तुष्टता की अनुभूति अपनी दृष्टि ?️, वृत्ति और कृति द्वारा सदा कराते।

सदा संकल्प ? में, बोल ? में, संगठन के सम्बन्ध-सम्पर्क में, कर्म में सन्तुष्टता के गोल्डन पुष्प ? बापदादा द्वारा अपने ऊपर बरसाने का अनुभव करते और सर्व प्रति सन्तुष्टता के गोल्डन पुष्पों की वर्षा सदा करते रहते हैं।

वह मन से, दिल ? से, सर्व से, बाप से, ड्रामा से सन्तुष्ट होंगे; उनके मन और तन में सदा प्रसन्नता की लहर दिखाई देगी। (चाहे कोई भी परिस्थिति आ जाए, चाहे कोई आत्मा हिसाब-किताब चुक्तू करने वाली सामना करने भी आती रहे, चाहे शरीर का कर्म-भोग सामना करने आता रहे।)

दूसरों को भी सन्तुष्टता की झलक का वायब्रेशन फैलाते रहते हैं। उनका चेहरा सदा प्रसन्नचित्त दिखाई देगा।

सन्तुष्टता की शक्ति स्वत: और सहज चारों ओर वायुमण्डल फैलाती है। उनका चेहरा उनके नयन वायुमण्डल में भी सन्तुष्टता की लहर ? फैलाते हैं।

c) अनुभव

सन्तुष्ट आत्मा के संकल्प में भी यह क्यों, क्या ❓ की भाषा स्वप्न में भी नहीं आयेगी क्योंकि उस आत्मा को तीन विशेष बातें, तीन बिन्दियां, आत्मा, परमात्मा और ड्रामा, तीन ही समय ? पर कार्य में लगा सकते हैं

D) सन्तुष्टता की विधि / आधार

a) सन्तुष्टता का आधार – सर्व प्राप्तियां

सन्तुष्टता का बीज / कारण / आधार बाप द्वारा सर्व प्राप्तियाँ हैं। जहाँ सर्व प्राप्ति हैं वहाँ सदा सन्तुष्टता स्वत: और स्वाभाविक है ही।

प्राप्तियों में विशेष सम्बन्ध और सम्पत्ति आवश्यक है।

एक ही वर्तमान संगमयुग है जिसमें सर्व अविनाशी सम्बन्ध एक ?? बाप से अनुभव कर सकते। जिस सम्बन्ध की आकर्षण हो, अनुभूति करना चाहे वो सम्बन्ध परम आत्मा द्वारा अनुभव कर सकते। एक से सर्व सम्बन्ध प्राप्त हैं। (सदा अपने रूहानी बेहद के सम्पूर्ण अधिकार के निश्चय और नशे में रहो। कितने श्रेष्ठ अधिकारी हो जो स्वयं बाप ऑलमाइटी अथॉरिटी के ऊपर अधिकार रख दिया। परमात्म-अधिकारी-इससे बड़ा अधिकार और है ही क्या! बच्चे तो बाप के भी हजूर हैं, मालिक हैं ना। जब बीज को अपना बना लिया तो वृक्ष ? तो समाया हुआ है ही।)

2. सर्व गुणों की सम्पत्ति, सर्व शक्तियों की सम्पत्ति और श्रेष्ठ सम्पन्न ज्ञान ? की सम्पत्ति – आप सबके पास यह श्रेष्ठ सम्पत्तियाँ हैं। आप सबको वरदाता बाप सर्वश्रेष्ठ सम्पत्ति भव का वरदान देते हैं।

सम्बन्ध, सम्पत्ति और तीसरी होती है सेहत, तन्दुरूस्ती।

3. आत्मा सदा शक्तिशाली ✊? है। संगम पर श्रेष्ठ सेहत वा तन्दुरूती है आत्मा की तन्दुरूस्ती। अमृतवेले हर रोज बापदादा सदा तन्दुरूस्त भव का वरदान देता है। इस समय के आत्मा की तन्दुरूस्ती जन्म-जन्म के शरीर की तन्दुरूस्ती भी दिलाती है।

वैसे भी देखो, दुनिया में भी मुख्य प्राप्ति सभी क्या चाहते हैं? हर एक चाहता है कि अपना नाम अच्छा हो, दूसरा मान और तीसरा शान।
4.a) स्वयं भगवान आपका नाम जपता है! तो इससे बड़ा नाम क्या होगा!
b) आप ब्राह्मण हो ना, तो ब्राह्मणों के नाम से आज भी नामधारी ब्राह्मण कितना कमा रहे, कितना ऊंचे गाये जाते हैं! तो आपके नाम की कितनी महिमा है!
c) तो अपने नाम की महिमा याद रखो कि मेरा नाम बाप के दिल पर है, विजय माला में है, अन्त तक मेरा नाम सेवा कर रहा है।

5.a) और आपका मान कितना है? भगवान ने भी आपको अपने से आगे रखा है! पहले बच्चे। तो स्वयं बाप ने मान दे दिया। (बच्चे डबल पूजे जाते हैं, बाप सिंगल। तो आपका मान बाप से ज्यादा हुआ ना! इतना श्रेष्ठ मान मिल गया!)
b) कितना आपका मान है, उसका प्रुफ देखो कि आपके जड़ चित्रों का भी लास्ट जन्म तक कितना मान है! जब आपके चित्र ही इतने माननीय, पूजनीय हैं तो चैतन्य में हैं तब भी चित्रों का मान है।

6. और शान कितना है! अपने एक­एक शान को याद करो और किसने शान में बिठाया? बाप ने बिठाया। बाप के दिलतख्तन­शीन ❣️ हैं। सबसे बड़े ते बड़ी शान राज्य पद है ना! तो आपको तख्त­ताज मिल गया है ना! जो परम आत्मा के तख्तनशीन हैं इससे बड़ी शान क्या है!

परमात्मा बाप द्वारा सर्व शक्तियां, सर्व गुण, सर्व खज़ाने प्राप्त की हुई आत्मा सदा सन्तुष्ट रहती… और बाप की, सर्व आत्माओं की अति प्रिय हो जाती है।

b) सन्तुष्टता की विधि – प्राप्तियों के स्मृति-स्वरूप रहना

प्राप्तियों के खजानों को स्मृति-स्वरूप बन कार्य में लगाना

2. तो सर्व प्राप्तियाँ हैं ना। सम्पत्ति भव भी है, ‘सर्व सम्बन्ध भव’ भी है और ‘सदा तन्दुरूस्त भव’ भी हैं। तीनों वरदान वरदाता बाप से मिले हुए हैं। तो वरदानों को समय ⌚ पर कार्य में लगाओबार-बार स्मृति ? का पानी ? दो, वरदान के स्वरूप में स्थित होने की धूप दो, फिर देखो वरदान सदा फलीभूत ? होता रहेगा, और वरदानों को भी साथ में लायेगा।)

3.a) सबसे सहज सदा सन्तुष्ट रहने की विधि है- सदा अपने सामने कोई न कोई विशेष प्राप्ति को रखो। बाप से क्या­क्या मिला, कितना मिला है, वेरायटी ? पसन्द आती है ना!
b) ज्ञान के खज़ाने की प्राप्ति कितनी है, योग से शक्तियों की प्राप्ति कितनी है, दिव्यगुणों की प्राप्तियाँ कितनी हैं, प्रैक्टिकल नशे में, खुशी में रहने की प्राप्तियाँ कितनी हैं? बहुत लिस्ट ? है ना!
c) तो रोज कोई न कोई प्राप्ति स्वरूप का अनुभव अवश्य करो।

E) सन्तुष्टता के प्रकार / विस्तार

(1) स्व की स्व से सन्तुष्टता (2) बाप द्वारा सदा सन्तुष्टता (3) ब्राह्मण परिवार द्वारा सन्तुष्टता

मन की अर्थात् स्वयं की सन्तुष्टता, सर्व की सन्तुष्टता अनुभव होती है?

स्व से सन्तुष्ट, परिवार से सन्तुष्ट और परिवार उनसे सन्तुष्ट।

a) स्वयं से अर्थात् स्वयं के पुरूषार्थ से, स्वयं के संस्कार परिवर्तन के पुरूषार्थ से, स्वयं के पुरूषार्थ की परसेन्टेज में, स्टेज में सदा सन्तुष्ट हो?
b) अच्छा दूसरा प्रश्न- स्वयं के मन्सा, वाचा और कर्म, अर्थात् सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा सेवा में सदा सन्तुष्ट हो? तीनों ही सेवा में और सदा सन्तुष्ट हो?
c) अच्छा, तीसरा प्रश्न- सर्व आत्माओं के सम्बन्ध-सम्पर्क में स्वयं द्वारा वा सर्व द्वारा सदा सन्तुष्ट हो?

सदा सन्तुष्ट हो? कभी स्वयं से असन्तुष्ट वा कभी ब्राह्मण आत्माओं से असन्तुष्ट वा कभी अपने संस्कारों से असन्तुष्ट वा कभी वायुमण्डल के प्रभाव से असन्तुष्ट तो नहीं होते हो ना!

स्वयं की स्वयं से असन्तुष्टता, कभी परिस्थितियों द्वारा असन्तुष्टता, कभी स्वयं की हलचल द्वारा असन्तुष्टता और कभी छोटी-बड़ी बातों से असन्तुष्टता

F) सन्तुष्टता से सम्बंधित और बातें

1. जितने उमंग-उत्साह से (मधुबन) आये हो उतना ही बापदादा भी सदा बच्चों को ऐसे उमंग-उत्साह से सन्तुष्ट आत्मा के रूप में देखने चाहते हैं। 

2. बापदादा का विशेष वरदान है सन्तुष्टता के शक्ति भव! सन्तुष्ट रहना, सन्तुष्ट करना और सन्तुष्टता की शक्ति से विश्व ? में भी सन्तुष्टता का वायब्रेशन फैलाना। 

3. हर एक सन्तुष्टमणि बन सन्तुष्टता की शक्ति को विशेष कार्य में लगाते जाओ।

4. बापदादा विशेष सन्तुष्टता की शक्ति हर एक बच्चे में ब्रह्मा बाप समान देखने चाहते हैं। आदि से लेके अन्त तक ब्रह्मा बाप ने सन्तुष्टता की शक्ति से हर परिस्थिति पर विजय प्राप्त की।

5. हर स्थान निर्विघ्न सन्तुष्टता की शक्ति से सम्पन्न हो। बापदादा ने देखा सन्तुष्टता की शक्ति चाहे स्वयं में, चाहे संगठन में अभी अटेंशन देने की आवश्यकता है।

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