The complete stage! | (46th) Avyakt Murli Revision 26-01-70
1. जैसे बाबा स्वयं को मेहमान समझते (आना और जाना)… ऎसे समझने से न्यारा-उपराम-अव्यक्त-अलग कर्मातीत रहेंगे… संकल्प किया और हुआ
2. अपने को परमधाम-निवासी (यहां पर ईश्वरीय कार्य लिए अवतरित) समझनै से मधुरता-स्नेह-वैराग्य सम्पन्न बनेंगे, सब भी सहज मेहसूस करेंगे… सफलता स्वरूप बन-बनाएंगे (यही संगम की प्रारब्ध है, जबकि हम सर्वशक्तिमान की सन्तान है), इसी स्मृति में रहना है… स्मृति में निश्चय-शक्ति है, तो स्थिति-कर्म भी ऎसे रहेंगे, कभी हार नहीं होगी
3. फर्ज-भाव से माया का मर्ज नहीं लगता… बाबा की मदद सदा रहती… औरों को आगे बढ़ाते रहना है
4. जितनी सेवा कर सकते, उतनी करनी है… एकान्त में गहराई में जाकर परिवर्तन करना है… ईश्वरीय स्नेह-सहयोग देने से मायाजीत बनने का सहयोग मिलता… यहां के ईश्वरीय स्नेह से वहां का स्नेह जुटता, अनेकों के बजाय एक से स्नेह
5. जो ज्ञान मंथन के लिए ख़ज़ाना मिला है, उसे सदा प्रयोग मे लाने से, बुद्धि को बिजी रखने सेे, माया से बचे रहेंगे… जैसे समय बीती को बिंदी लगाता, हमें भी लगाना है कमजोरीयों को, तो हम समय-समान तेज भागेंगे, शक्ति भरेगी, समय से पहले पहुंच जाएंगे
6. बन्धन हो तो भी लगन से याद कर, चरित्रों का अनुभव कर सकते, तो विघ्न भी समाप्त हो जाएंगे… हमारा एक से जुड़ा हो, अनेकों से टूटा हो, तो सहज सर्वशक्तिमान से शक्ति मिलेगी, चेहरा अव्यक्त खुशी से भरपूर रहेंगे सब की सेवा होंगी (रहमदिल बन)… सिर्फ संकल्प शक्तिशाली चाहिए, यह समय वापिस नहीं आएँगा, पूरा अटेंशन चाहिए, होश में रहना है, प्रतीज्ञा से प्रत्यक्ष फल मिलता
7. चलन की अलौकिकता से, लौकिक की सेवा होंगी… अपने परिवर्तन से example बनना है
8. बाबा मिलन सबसे बड़ा भाग्य है, कब को अब करना है, सर्वशक्तिवान साथ है तो स्थिति से परिस्थिति-वायुमंडल बदलना सहज है… सेकंड में पदमों की कमाई, हिम्मत रखना है, माया-शेर पर विजयी, स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन
सार
तो चलिए आज सारा दिन… बीती को बिंदी लगाए, सदा अपने को परमधाम से अवतरित मेहमान समझ शक्तिशाली स्मृति द्बारा श्रेष्ठ स्थिति का अनुभव कर… अलौकिक बन, सबको ईश्वरीय स्नेह-सहयोग देते, खुश-शक्तिशाली बनते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!
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