The True Meaning of Surrender | (37th) Avyakt Murli Revision 28-11-69
1. सम्पूर्ण समर्पण अर्थात दृष्ट-वृत्ति में रूहानियत (रूह को देखना), तो दृष्टि स्वतः शुद्ध पवित्र बन, वृत्ति कहीं नहीं जाएंगी… देह को देखते हुए न देखे, अर्थात लौकिक को अलौकिक में परिवर्तन करे:
- सम्बन्धि ब्रह्मा-वंशी है
- पाँव चलाने के साथ बुद्धि को अलौकिक कार्य (वा याद की यात्रा) में चलाना
- भोजन के साथ आत्मा को याद की शक्ति देना
- देखना-बोलना भी अलौकिक
तो सबको देह से न्यारे-प्यारे अनुभव होंगे… स्वयं-प्रभुु-लोक प्रिय, इसलिए पहले स्वयं को परिवर्तन करना है
2. जैसे छोटे वामन ने माया बलि से तीन-पैर पृथ्वी से सम्पूर्ण समर्पण कराया, ऎसे:
- मन्सा में… देह-सम्बन्ध भूल मामेकम् याद
- वाचा से… सिर्फ रत्न निकालने है
- कर्मणा में… जैसा हम करेंगे (वह पाएंगे), और हमें देख सब करेंगे
अपने समर्पण को अविनाशी करना है, नहीं तो डगमग हो, सबके आगे तमाशा हो जाएँगा
3. बाबा का सहयोग सदा मिलता है, अन्तिम सांसो में भी जान भरते, मांगने के बदले हम तो अधिकारी है… बीती से सीख बिन्दी लगाकर आगे बढ़ना है, क्यों-क्या में नहीं जाना
4. भट्ठी के बाद मन्सा-वाचा-कर्मणा तन-मन-धन से सम्पूर्ण मददगार-वफादार होने से बाबा-परिवार के स्नेही-सहयोगी बनेंगे:
- समय-तन भी प्रवृत्ति के साथ सेवा में लगाना, अपना समाचार शॉर्ट-स्पष्ट लिखने से स्थिति-पुरुषार्थ भी स्पष्ट रहता
- जो भी कमझोरी है, उन्हें सम्पूर्ण रीति भूल जाना… पुरूषार्थी-समय-औरों को देखने के बहाने नहीं
5. 4 शक्तियां धारण करनी (समाने, समेटने की अर्थात 10 के बदले 2 शब्द, सहन, सामना)… जैसे बाबा ने हमें प्रत्यक्ष किया, हमें उसके कर्तव्य को प्रत्यक्ष करना है, सबके अन्दर बाबा के प्रति स्नेह-सम्बन्ध जगाना है… अब गुप्त कार्य को प्रत्यक्ष करने के प्लान्स रचने है, एक दो के स्नेही-सहयोगी बन
6. मुख्य है मन का समर्पण (व्यर्थ संकल्प भी नहीं), बाकि सब कुछ आपेही ठीक रहेगा
सार
तो चलिए आज सारा दिन… कमझोरी-पुरानी बातों को बिन्दी लगाकर… सम्पूर्ण समर्पण अर्थात अपनी स्थिति-दृष्टि-वृत्ति में रूहानियत भर अपने हर कार्य में अलौकिकता लाते रहे… तो बाबा-परिवार की सम्पूर्ण स्नेह-मदद मिलते, हम सब का कल्याण करने, सतयुग बनाते रहेंगे… ओम् शान्ति!
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