The most wonderful Crown, Throne & Tilak! | (86th) Avyakt Murli Revision 01-02-71
1. अकाल-तख्त से purity की लाइट का ताज स्वतः मिलता, और बाबा के दिल-तख्त के साथ जिम्मेवारी का ताज… इन्हें सदा धारण कर सकते, कर्मेन्द्रियों कंट्रोल में रहती (इसलिए अपना सम्पूर्ण ताज-तख्त का चित्र सदा सामने रखना है, नशा-निशाना स्पष्ट), फिर वहां भी डबल-ताज मिलेंगा… अभी नहीं तो कभी नहीं, इसको छोड़ने से कांटों के जंगल में चले जाएंगे
2. जैसे तिलक श्रृंगार-सुहाग-भक्त की निशानी है, आत्मिक-स्मृति का तिलक योगी की निशानी है… फिर औरों के मन का भावों को भी कैच करेंगे, इसलिए संकल्पों में mixture न हो, बाप से समानता के समीप रहना है
3. सदा याद रखना है, स्टेज (मैं स्टेज पर हूँ, तो attention रहेगा, ऊँच कर्तव्य की प्रेरणा मिलती) और स्टेटस् (तो एसे-वैसे कर्म नहीं होंगे)… मधुबन वरदान-भूमि है, वायुमण्डल में भी वरदान, और निमित्त आत्माओं के प्रैक्टिकल कर्म (स्नेह-सहयोग-सेवा-त्याग) से भी बहुत सहज सीख सकते
सार
तो चलिए आज सारा दिन… सदा अपने को अकाल-मूर्त पवित्र-आत्मा समझ, बाबा की दिलतख्त-नशीन सजनी बन, कर्मेन्द्रिय-जीत हो सारे विश्व की सेवा करते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!
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