पवित्रता अर्थात् क्या? | man ki pavitrata in hindi
Q. योग ? में आत्मा ✨ के 7 अनादि गुणों ? (ज्ञान ?, पवित्रता, शान्ति, प्रेम ❤️, सुख, आनंद, शक्ति ⚡) की अनुभूति ? में आप ज्ञान के बाद पवित्रता लेते… तो योग में पवित्रता अर्थात् क्या? (ज्ञान का तो पहले भेजा था!)
A) पवित्रता अर्थात् देह-दुनिया बिल्कुल स्मृति ? में न आये… मन-बुद्धि को कोई भी स्थूलता अंश-मात्र आकर्षित न करे (सिर्फ आत्मा, ☝? परमात्मा, दिव्यगुण, घर, सतयुग, आदि की दिव्य अनुभूतियों में रहे; स्वतः, निरन्तर योगी!)… बुद्धि का चित्र भी एक एंगल में स्थिर! ?
?? इस मूल धारणा में अनेक धारणाएं समाई हुई है ??:
- निरन्तर स्वभाविक आत्मिक दृष्टि ?️ रहै… थोड़ा भी देह दिखे, तो याद रहे कि आत्मा इस साधन ? को चला रही (फॉकस आत्मा पर!)
- पवित्रता अर्थात् आत्म-अभिमानी; निरन्तर देह-भान से परे… थोड़ा भी देह याद आये; तो स्मृति रहे यह बाबा की अमानत ? हैं, सेवा के लिए अमूल्य ? सौगात ?! ?
- कम संकल्प ? में ही योगयुक्त हो जाते (एक संकल्प में स्थित होना भी सहज!)… मन सहज धैर्यवत होता, स्वतः ज्ञान का ही चिन्तन चलता,… बुद्धि / आंखें ? स्थिर, शरीर अशरीरी (statue) सहज… दिव्यगुणों के संस्कार नेचुरल नेचर! ?
- पवित्रता अर्थात् एक बाबा दूसरा न कोई… कोई याद आये, तो भी वह बाबा के बच्चे लगे, अर्थात् बाबा याद आये! ?
- पवित्रता अर्थात् चित्त बिल्कुल साफ-स्वच्छ-खाली; इसलिए मुरली ? की हर पॉइंट सुनते (साथ में)… उसकी अनुभूति अन्दर समाती जाती, स्वरुप बनते जाते! ?
- बाबा ने कहा है पवित्रता अर्थात् दिनचर्या ? जरा भी ऊपर-नीचे भी न हो… साधारणता से भी परे (अर्थात् निरन्तर विशेष!)
B) इस सम्पूर्ण पवित्रता की कई विशेष प्राप्तियां है… जैसे:
° पवित्रता में शान्ति, प्रेम, सुख, आनंद आदि सर्व दिव्यगुण व प्राप्तियां ? समाई हुई है! ?
° बहुत सारी शक्ति ⚡ बचती; अथक, हल्के रहते
° पवित्र आत्मा सदा ही बाबा को बहुत समीप, साथ अनुभव करती ?
° सभी धारणाएं / श्रीमत / मर्यादा नेचुरली प्रिय ❤️ लगती!
° सेवा में स्वतः एक अद्भूत जौहर ?️ भर जाता
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A) पवित्रता अर्थात् देह-दुनिया बिल्कुल स्मृति ? में न आये… मन-बुद्धि को कोई भी स्थूलता अंश-मात्र आकर्षित न करे (सिर्फ आत्मा, ☝? परमात्मा, दिव्यगुण, घर, सतयुग, आदि की दिव्य अनुभूतियों में रहे; स्वतः, निरन्तर योगी!)… बुद्धि का चित्र भी एक एंगल में स्थिर! ?
?? इस मूल धारणा में अनेक धारणाएं समाई हुई है ??:
- निरन्तर स्वभाविक आत्मिक दृष्टि ?️ रहै… थोड़ा भी देह दिखे, तो याद रहे कि आत्मा इस साधन ? को चला रही (फॉकस आत्मा पर!)
- पवित्रता अर्थात् आत्म-अभिमानी; निरन्तर देह-भान से परे… थोड़ा भी देह याद आये; तो स्मृति रहे यह बाबा की अमानत ? हैं, सेवा के लिए अमूल्य ? सौगात ?! ?
- कम संकल्प ? में ही योगयुक्त हो जाते (एक संकल्प में स्थित होना भी सहज!)… मन सहज धैर्यवत होता, स्वतः ज्ञान का ही चिन्तन चलता,… बुद्धि / आंखें ? स्थिर, शरीर अशरीरी (statue) सहज… दिव्यगुणों के संस्कार नेचुरल नेचर! ?
- पवित्रता अर्थात् एक बाबा दूसरा न कोई… कोई याद आये, तो भी वह बाबा के बच्चे लगे, अर्थात् बाबा याद आये! ?
- पवित्रता अर्थात् चित्त बिल्कुल साफ-स्वच्छ-खाली; इसलिए मुरली ? की हर पॉइंट सुनते (साथ में)… उसकी अनुभूति अन्दर समाती जाती, स्वरुप बनते जाते! ?
- बाबा ने कहा है पवित्रता अर्थात् दिनचर्या ? जरा भी ऊपर-नीचे भी न हो… साधारणता से भी परे (अर्थात् निरन्तर विशेष!)
B) इस सम्पूर्ण पवित्रता की कई विशेष प्राप्तियां है… जैसे:
° पवित्रता में शान्ति, प्रेम, सुख, आनंद आदि सर्व दिव्यगुण व प्राप्तियां ? समाई हुई है! ?
° बहुत सारी शक्ति ⚡ बचती; अथक, हल्के रहते
° पवित्र आत्मा सदा ही बाबा को बहुत समीप, साथ अनुभव करती ?
° सभी धारणाएं / श्रीमत / मर्यादा नेचुरली प्रिय ❤️ लगती!
° सेवा में स्वतः एक अद्भूत जौहर ?️ भर जाता
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