पवित्रता अर्थात् क्या? | man ki pavitrata in hindi

पवित्रता अर्थात् क्या? | man ki pavitrata in hindi

Q. योग ? में आत्मा ✨ के 7 अनादि गुणों ? (ज्ञान ?, पवित्रता, शान्ति, प्रेम ❤️, सुख, आनंद, शक्ति ⚡) की अनुभूति ? में आप ज्ञान के बाद पवित्रता लेते… तो योग में पवित्रता अर्थात् क्या? (ज्ञान का तो पहले भेजा था!)

A) पवित्रता अर्थात् देह-दुनिया बिल्कुल स्मृति ? में न आये… मन-बुद्धि को कोई भी स्थूलता अंश-मात्र आकर्षित न करे (सिर्फ आत्मा, ☝? परमात्मा, दिव्यगुण, घर, सतयुग, आदि की दिव्य अनुभूतियों में रहे; स्वतः, निरन्तर योगी!)… बुद्धि का चित्र भी एक एंगल में स्थिर! ?

?? इस मूल धारणा में अनेक धारणाएं समाई हुई है ??:

  1. निरन्तर स्वभाविक आत्मिक दृष्टि ?️ रहै… थोड़ा भी देह दिखे, तो याद रहे कि आत्मा इस साधन ? को चला रही (फॉकस आत्मा पर!)
  2. पवित्रता अर्थात्‌ आत्म-अभिमानी; निरन्तर देह-भान से परे… थोड़ा भी देह याद आये; तो स्मृति रहे यह बाबा की अमानत ? हैं, सेवा के लिए अमूल्य ? सौगात ?! ?
  3. कम संकल्प ? में ही योगयुक्त हो जाते (एक संकल्प में स्थित होना भी सहज!)… मन सहज धैर्यवत होता, स्वतः ज्ञान का ही चिन्तन चलता,… बुद्धि / आंखें ? स्थिर, शरीर अशरीरी (statue) सहज… दिव्यगुणों के संस्कार नेचुरल नेचर! ?
  4. पवित्रता अर्थात् एक बाबा दूसरा न कोई… कोई याद आये, तो भी वह बाबा के बच्चे लगे, अर्थात्‌ बाबा याद आये! ?
  5. पवित्रता अर्थात् चित्त बिल्कुल साफ-स्वच्छ-खाली; इसलिए मुरली ? की हर पॉइंट सुनते (साथ में)… उसकी अनुभूति अन्दर समाती जाती, स्वरुप बनते जाते! ?
  6. बाबा ने कहा है पवित्रता अर्थात् दिनचर्या ? जरा भी ऊपर-नीचे भी न हो… साधारणता से भी परे (अर्थात्‌ निरन्तर विशेष!)

B) इस सम्पूर्ण पवित्रता की कई विशेष प्राप्तियां है… जैसे:
° पवित्रता में शान्ति, प्रेम, सुख, आनंद आदि सर्व दिव्यगुण व प्राप्तियां ? समाई हुई है! ?
° बहुत सारी शक्ति ⚡ बचती; अथक, हल्के रहते
° पवित्र आत्मा सदा ही बाबा को बहुत समीप, साथ अनुभव करती ?
° सभी धारणाएं / श्रीमत / मर्यादा नेचुरली प्रिय ❤️ लगती!
° सेवा में स्वतः एक अद्भूत जौहर ?️ भर जाता


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A) पवित्रता अर्थात् देह-दुनिया बिल्कुल स्मृति ? में न आये… मन-बुद्धि को कोई भी स्थूलता अंश-मात्र आकर्षित न करे (सिर्फ आत्मा, ☝? परमात्मा, दिव्यगुण, घर, सतयुग, आदि की दिव्य अनुभूतियों में रहे; स्वतः, निरन्तर योगी!)… बुद्धि का चित्र भी एक एंगल में स्थिर! ?

?? इस मूल धारणा में अनेक धारणाएं समाई हुई है ??:

  1. निरन्तर स्वभाविक आत्मिक दृष्टि ?️ रहै… थोड़ा भी देह दिखे, तो याद रहे कि आत्मा इस साधन ? को चला रही (फॉकस आत्मा पर!)
  2. पवित्रता अर्थात्‌ आत्म-अभिमानी; निरन्तर देह-भान से परे… थोड़ा भी देह याद आये; तो स्मृति रहे यह बाबा की अमानत ? हैं, सेवा के लिए अमूल्य ? सौगात ?! ?
  3. कम संकल्प ? में ही योगयुक्त हो जाते (एक संकल्प में स्थित होना भी सहज!)… मन सहज धैर्यवत होता, स्वतः ज्ञान का ही चिन्तन चलता,… बुद्धि / आंखें ? स्थिर, शरीर अशरीरी (statue) सहज… दिव्यगुणों के संस्कार नेचुरल नेचर! ?
  4. पवित्रता अर्थात् एक बाबा दूसरा न कोई… कोई याद आये, तो भी वह बाबा के बच्चे लगे, अर्थात्‌ बाबा याद आये! ?
  5. पवित्रता अर्थात् चित्त बिल्कुल साफ-स्वच्छ-खाली; इसलिए मुरली ? की हर पॉइंट सुनते (साथ में)… उसकी अनुभूति अन्दर समाती जाती, स्वरुप बनते जाते! ?
  6. बाबा ने कहा है पवित्रता अर्थात् दिनचर्या ? जरा भी ऊपर-नीचे भी न हो… साधारणता से भी परे (अर्थात्‌ निरन्तर विशेष!)

B) इस सम्पूर्ण पवित्रता की कई विशेष प्राप्तियां है… जैसे:
° पवित्रता में शान्ति, प्रेम, सुख, आनंद आदि सर्व दिव्यगुण व प्राप्तियां ? समाई हुई है! ?
° बहुत सारी शक्ति ⚡ बचती; अथक, हल्के रहते
° पवित्र आत्मा सदा ही बाबा को बहुत समीप, साथ अनुभव करती ?
° सभी धारणाएं / श्रीमत / मर्यादा नेचुरली प्रिय ❤️ लगती!
° सेवा में स्वतः एक अद्भूत जौहर ?️ भर जाता


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सुख अर्थात् क्या? | what is sukh

सुख अर्थात् क्या? | what is sukh

Q. 7 गुण ? (ज्ञान ?, पवित्रता ✨, शान्ति, प्रेम ❤️, सुख, आनंद, शक्ति ⚡) की अनुभूति में ज्ञान ?, पवित्रता, शान्ति, प्रेम ? के बाद सुख आता… तो सुख अर्थात्‌ क्या?

A. सुख अर्थात्‌ एक बहुत मीठी, हल्की-सी गुड-फीलिंग जो निरन्तर ? अन्दर बहती रहे! ?… इसे कई नाम दे सकते:

  1. सुख अर्थात्‌ सन्तुष्टता… जो बेहद की अर्थात् subconscious तक भरी हुई हो! ?
  2. सुख अर्थात्‌ तृप्ति… जो गहरी समाई हो, बहुत समय ⏰ के सतोगुणी ? अनुभवों के फलस्वरुप! ?
  3. सुख अर्थात्‌ सर्व प्राप्तियों की भरपूरता… जबकि बाबा ने हमें सभी ज्ञान-गुण-शक्तियों के खज़ाने ?, सर्व सम्बन्धों की अनुभूति से सम्पन्न किया है! ?
  4. सच्चा सुख अर्थात् अतीन्द्रिय सुख… जो बाबा के ज्ञान ?-चिन्तन ?, बाबा से योग ? द्वारा ही प्राप्त होता!
  5. सुख अर्थात् सर्व आवश्यकताएं पूरी… क्योंकि वास्तव में आत्मा को 7 अनादि गुणों ? की ही आवश्यकता होती; जिसका बाबा तो अखुट सागर ? है!
  6. सुख की अनुभूति बढ़ती जब हमारी आत्म-बैटरी ? चार्ज होती… इसके लिए तो बाबा ने अमृतवेले से रात्री हमें ऐसी नम्बरवन योगी दिनचर्या ? दी है! ?

B) सुख से कुछ विशेष प्राप्तियां:
° सुखी आत्मा नेचुरली प्रसन्न, हर्षित ? रहती; इच्छा मात्रम अविद्या!
° सुख का ही ऊंच स्तर आनंद है, जिसकी अनुभूति में सर्व शक्तियां ⚡ strongerge होती!
° उनके प्रकंपन ✨ से औरों को भी सम्पन्नता की अनुभूति होती!


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सतोप्रधान अर्थात् क्या? | satopradhan meaning

सतोप्रधान अर्थात् क्या? | satopradhan meaning

Q. सतोप्रधान बनना अर्थात् क्या?

A. सतोप्रधान अर्थात् आत्मा रूपी battery को फुल चार्ज करना (तमो से रजो से सतो, 1% से 25%, 50% और आखिर 100%!) ?

इससे मुख्य प्राप्ति – हम सदा अपने सतोगुण (ज्ञान, पवित्रता, शान्ति, प्रेम, सुख, आनंद, सर्व शक्तियां वा सारे दिव्यगुणों) के अनुभव में रहेंगे (बिना किसी आधार, परिस्थिति-व्यक्ति-कमजोर शरीर होते भी!)… और भविष्य में तो नंबरवन सूर्यवंशी पद प्राप्त कर, प्रकृति का सम्पूर्ण सुख प्राप्त करेंगे (सारा कल्प भी विभिन्न प्राप्तियां होती रहेंगी, क्योंकि battery धीरे-धीरे उतरती) ?

योग द्वारा सतोप्रधान बनने की विधि है मन को स्वच्छ -शुद्घ कर, अशरीरी (Statue!) हो… अपनी बुद्धि रूपी तार को powerhouse (निराकार ज्योति-बिन्दु स्वरूप शिवबाबा, सर्व गुण-शक्तियों के सागर!) से लगाना, तो इस स्मृति की करन्ट से सतोगुण का अनुभव हो आत्मा रूपी battery चार्ज होती… बुद्धि का कनेक्शन जारी रखने मन द्वारा भी भिन्न-भिन्न योग के संकल्प करते रहना! ?

जीवन में लगातार battery को चार्ज करते रहने की सर्वोत्तम विधि है “चार्ट” … भल शुरू में कई बार “0, No, कम संख्या” लिखनी पड़े; परन्तु यही चार्ट हमारे पुरूषार्थ की गाड़ी को धक्का देंगी… फिर जैसे ही थोड़ी-सी भी प्राप्ति होंगी, तो चार्ट की लगन लग जायेंगी, और फिर तो प्राप्ति ही प्राप्ति है! ?


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डबल लाइट अर्थात् क्या? | double light

डबल लाइट अर्थात् क्या? | double light image

डबल लाइट अर्थात् क्या? | double light

Q. डबल लाइट ??‍♂️ अर्थात् क्या? ?

A. लाइट अर्थात् हल्का-पन ? भी और प्रकाश ✨ भी; और यह दोनों अर्थ आत्मा ⭐ और सूक्ष्म फरिश्ता ? शरीर दोनों पर लागू होते (तो लाइट के 4 अर्थ हो गये!)

तो डबल लाइट अर्थात् आत्मा ? हल्की ?️ भी और प्रकाश स्वरूप ? भी; और सूक्ष्म शरीर ? भी हल्का ? और प्रकाशमय ? (तो 4x लाइट ? हो गया!)

फिर डबल लाइट अर्थात् आत्मा ?️ और सूक्ष्म शरीर ? दोनों प्रकाशवान ?; और दोनों हल्के ☁️ भी (तो फिर 4x लाइट हो गया!)

डबल लाइट अर्थात् डबल (तेज ?!) प्रकाश ? भी कह सकते… ‘डबल लाइट’ शब्द ✍? को बाबा शक्तिशाली ⚡ हल्का-पन ? (2x हल्का) के रूप में भी कभी प्रयोग ? करते! ?

(चिन्तन ?)

  1. डबल लाइट अर्थात् स्वयं भी हल्के ?? रहे; औरों को भी हल्का ?? रखे! ✅
  2. डबल लाइट अर्थात् हम भी ?? लाइट, ☝? बाबा भी लाइट ( दोनों लाइट कम्बाइन्ड ?!) ?
  3. डबल लाइट अर्थात् वर्तमान ? में लाइट है, तो भविष्य में भी लाइट ही होंगे! ?✔️
  4. डबल लाइट अर्थात् मन ? पर भी कोई बोझ नहीं, बुद्धि भी पवित्र ?️, दिव्य ?! ?
  5. डबल लाइट अर्थात् वृत्ति ?️ भी लाइट, तो वाणी ?️ और व्यवहार ? भी स्वतः लाइट ( संकल्प ?️ लाइट, तो बोल-कर्म ✋? भी लाइट!)

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कविता / गीत (original)

अशरीरी स्थिति (योग का फाउण्डेशन) | Ashariri

योग का फाउन्डेशन – अशरीरी स्थिति | Ashariri

योग का लक्ष्य है हमारे आंतरिक अनादि गुणों (ज्ञान, पवित्रता, शान्ति, प्रेम, सुख, आनंद, शक्ति) को अनुभव कर, उन्हें अपने जीवन के हर कर्म में प्रवाहित कर emerge रखना

परन्तु जब भी हम योग में हिलते है, तो देह-भान फिर जागृत होता, योग टूट जाता.. इसलिए यदि योग का प्रथम अभ्यास कोई है, वह है अशरीरी स्थिति!

बहुत सहज विधि है, अशरीरी अर्थात् जरा भी हिलना नहीं.. जैसे हम बचपन में खेलते थे, कोई कहे Statue तो स्थिर हो जाना, आँखों सहीत.. यही है अशरीरी स्थिति, जिसका थोड़ा भी अभ्यास करने से हमारी चेतना स्वतः जैसे एक zone में समा जाती; जहां बहुत स्थिर, शक्तिशाली, शान्ति का निरन्तर अनुभव रहता! ?

इस अवस्था में फिर बहुत सहज कोई भी visualization वा अनुभूति (आत्मिक स्थिति, बाबा की याद, फरिश्ता स्थिति, आदि) में लम्बा समय naturally स्थित रह सकते.. फिर जब कर्म में आते, वही सतोगुणी ऊर्जा कर्म में भी प्रवाहित होती रहती, जिससे हमारे संस्कारों में भी बहुत सहज स्वतः परिवर्तन दिखता! ?

Also read: योग कमेंटरी | अशरीरी स्थिति का अभ्यास | Practising the Bodyless stage

Creative Song / Poem | Amritvela Song Brahma Kumaris

Creative Song / Poem | Amritvela Song Brahma Kumaris

(गीत)
अमृतवेला शुद्ध पवन ?️ है, मिलने का नया उमंग है
आँख खुली बाबा याद आया, उत्साह का फैला तरंग है
(अमृतवेला शुद्ध पवन है…)

प्रभु का मधुर निमंत्रण, साथ बैठो आमंत्रण है
संग में रंगने की वेला, सद्गुणों का मेवा ही मेवा है
जीवन में भरे सतरंग ?
(अमृतवेला शुद्ध पवन…)

खज़ानों के खुले भण्डार, सर्व प्राप्ति होती अथाह है
बाबा बैठे हैं दिव्य वरदान लुटाने, पापों को मिटाने
मन को करे सुमन ?
(अमृतवेला शुद्ध पवन…)

शक्तियां पाने की अमर वेला, है भाग्य की निर्मल वर्षा ?️
खुशियों से भरे अन्तर झोली, बांटे दिनभर मधुर बोली
धरती करती जिसे नमन
(अमृतवेला शुद्ध पवन…)


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सन्तुष्टता का श्रेष्ठ, महान गुण ?

(140+ पॉइंट्स) सन्तुष्टता का श्रेष्ठ, महान गुण ? (महिमा, प्राप्तियां, विधि, निशानियां, प्रकार)

#MegaAvyaktMurliResearch

(इन 10 अव्यक्त मुरली ? पर आधारित ?? – 12.3.84, 18.3.85, 5.10.87, 17.3.91, 3.4.94, 16.3.95, 20.10.08, 30.11.09, 20.3.12, 31.12.12)

A) ? सन्तुष्टता की शक्ति की महान महिमा / महत्व

सबसे बड़े से बड़ी स्थिति है ही सन्तुष्टता की।
यह सन्तुष्टता की शक्ति सबसे महान है।
सन्तुष्टता की शक्ति बहुत श्रेष्ठ है।

इस संगमयुग में विशेष बापदादा की देन ✋? सन्तुष्टता है।
ब्राह्मण जीवन का वर्सा, प्रॉपर्टी सन्तुष्टता है।
सन्तुष्टता ही बड़े ते बड़ा खज़ाना ? है।

संगमयुग का विशेष वरदान सन्तुष्टता है।
संगमयुग की विशेषता ‘सन्तुष्टता’,
यह है ब्राह्मण जीवन की विशेष प्राप्ति
ब्राह्मण जीवन का सुख है ही सन्तुष्टता।

सन्तुष्टता – ब्राह्मण जीवन का विशेष गुण कहो या खजाना कहो या विशेष जीवन का श्रृंगार ✨ है। सन्तुष्टता विशेषता है।

सन्तुष्टता, रुहानियत की सहज विधि है
सन्तुष्टता ज्ञान ? की सब्जेक्ट का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
सन्तुष्टता ब्राह्मण जीवन का जीयदान है।

सन्तुष्टता ही ब्राह्मण जीवन के प्योरिटी की पर्सनालिटी है।
सन्तुष्टता ब्राह्मण जीवन का विशेष परिवर्तन का दर्पण ? है।
यही मजे की जीवन है, मौज की जीवन है।

ब्राह्मण जीवन की उन्नति का सहज साधन है।
सन्तुष्टता सफलता का सहज आधार है।
सन्तुष्ट मणि अर्थात् सिद्धि स्वरूप तपस्वी।

यही ब्राह्मण जीवन की महिमा है।
संगमयुग है ही सन्तुष्ट रहने और सन्तुष्ट बनाने का युग।

B)? सन्तुष्टता से होने वाली प्राप्तियां / सन्तुष्टता के फायदे

a) ऐसी सन्तुष्ट मणियाँ सदा बाप के मस्तक में मस्तक मणियों ? समान चमकती हैं।

एक सन्तुष्टता की विशेषता और विशेषताओं को भी सहज अपने समीप लाती है।
सन्तुष्टता सदा सर्व प्राप्ति सम्पन्न है क्योंकि जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ अप्राप्त कोई वस्तु नहीं।

सन्तुष्टता जहाँ है वहाँ सर्वशक्तियां ⚡ सन्तुष्टता में समाई हुई हैं।
जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ सर्व शक्तियां सर्व गुण ? स्वत: ही आते हैं। एक सन्तुष्टता अनेक गुणों को अपना लेती है।

जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ खुशी जरूर है।
सन्तोषी आत्मायें स्वयं को भी प्रिय और सर्व को भी प्रिय और बाप को तो प्रिय हैं ही।

ऐसी सन्तुष्टमणियाँ ही बापदादा के गले का हार बनती है, राज्य अधिकारी ? बनती है और भक्तों के सिमरण की माला ? बनती हैं।

b) जो सदा सन्तुष्ट रहता है उससे सभी का स्वत: ही दिल का प्यार ❤️ होता है।
जो सन्तुष्ट रहेगा उसके प्रति स्वत: ही सभी का स्नेह रहेगा।

अगर हर एक सन्तुष्ट रहेगा तो चारों ओर क्या होगा! वाह वाह! का गीत ? बजेगा।
सन्तुष्टता बाप की और सर्व की दुआएं दिलाती है।

सन्तुष्ट आत्मा को सदा सभी स्वयं ही समीप लाने वा हर श्रेष्ठ कार्य में सहयोगी बनाने का प्रयत्न करेंगे।

सन्तुष्टता उस आत्मा की पहचान दिलाती है।
हर एक की दिल होगी इससे बातें करें, इससे बैठें।

सन्तुष्टता सदा सर्व के स्वभाव संस्कार को मिलाने वाली होती है।
सन्तुष्टमणि आत्मायें सर्व की दिल को अपना बना सकती हैं।

c) सन्तुष्टता सदा स्वमान की सीट ? पर सेट रहने का साधन है।
सन्तुष्टता हद के मेरे तेरे के चक्र से मुक्त कराए स्वदर्शन चक्रधारी ? बनाती है।

सदा बापदादा के दिलतख्तनशीन ?, सहज स्मृति के तिलकधारी, विश्व परिवर्तन के सेवा के ताजधारी, इसी अधिकार के सम्पन्न स्वरुप में स्थित करती है।
सन्तुष्टता बेफिकर बादशाह बनाती है।

सन्तुष्टता महादानी, विश्व कल्याणी, वरदानी सदा और सहज बनाती है।
सन्तुष्ट आत्मा सदा सर्व के, बाप के समीप और समान स्थिति में रहती है।

d) सन्तुष्टता सदा निर्विकल्प, एकरस के विजयी आसन ? की अधिकारी बनाती है।
सन्तुष्ट आत्मायें सदा मायाजीत हैं ही।

सन्तुष्टता की स्थिति सदा प्रगतिशील है। आपके आगे कैसी भी हिलाने वाली परिस्थिति ऐसे ही अनुभव होती है जैसे पपेट ? (कठपुतली) शो वा कार्टून ? शो। (जिसको साक्षी स्थिति में सदा सन्तुष्टता के स्वरूप में देखते रहो। अपनी शान में रहते हुए देखो-सन्तुष्ट मणि हूँ, सन्तोषी आत्मा हूँ।)

सन्तुष्टता की शक्ति कैसा भी वायुमण्डल हो, कैसा भी सरकमस्टांश हो उनको सहज परिवर्तन कर सकती है।

C) ?सन्तुष्ट, सन्तोषी आत्मा अर्थात् सन्तुष्टमणि की निशानियाँ

a) सम्बन्धित गुण / अनुभूतियां

सन्तुष्ट मणि अर्थात् बेदाग मणि। सन्तुष्टता की निशानी है – सन्तुष्ट आत्मा सदा प्रसन्नचित्त ? स्वयं को भी अनुभव करेगी और दूसरे भी प्रसन्न होंगे। ऐसा प्रसन्नचित्त सदा निश्चिन्त रहता है।

सन्तुष्टता अर्थात् दिल-दिमाग सदा आराम में होंगे। सुख-चैन ? की स्थिति में होंगे।

जिसका प्रसन्नचित्त होता है उसके मन­बुद्धि के व्यर्थ की गति फास्ट नहीं होगी। सदा निर्मल, निर्मान। निर्मान होने के कारण सभी को अपने प्रसन्नचित्त की छाया में शीतलता ?️ देंगे।

सन्तुष्ट आत्मा में सन्तुष्टता का नेचरल नेचर है।

b) स्वरूप

तपस्या ? का अर्थ ही है सन्तुष्टता की पर्सनालिटी नयनों ? में, चैन में, चेहरे में, चलन में दिखाई दे।

औरों को भी सन्तुष्टता की अनुभूति अपनी दृष्टि ?️, वृत्ति और कृति द्वारा सदा कराते।

सदा संकल्प ? में, बोल ? में, संगठन के सम्बन्ध-सम्पर्क में, कर्म में सन्तुष्टता के गोल्डन पुष्प ? बापदादा द्वारा अपने ऊपर बरसाने का अनुभव करते और सर्व प्रति सन्तुष्टता के गोल्डन पुष्पों की वर्षा सदा करते रहते हैं।

वह मन से, दिल ? से, सर्व से, बाप से, ड्रामा से सन्तुष्ट होंगे; उनके मन और तन में सदा प्रसन्नता की लहर दिखाई देगी। (चाहे कोई भी परिस्थिति आ जाए, चाहे कोई आत्मा हिसाब-किताब चुक्तू करने वाली सामना करने भी आती रहे, चाहे शरीर का कर्म-भोग सामना करने आता रहे।)

दूसरों को भी सन्तुष्टता की झलक का वायब्रेशन फैलाते रहते हैं। उनका चेहरा सदा प्रसन्नचित्त दिखाई देगा।

सन्तुष्टता की शक्ति स्वत: और सहज चारों ओर वायुमण्डल फैलाती है। उनका चेहरा उनके नयन वायुमण्डल में भी सन्तुष्टता की लहर ? फैलाते हैं।

c) अनुभव

सन्तुष्ट आत्मा के संकल्प में भी यह क्यों, क्या ❓ की भाषा स्वप्न में भी नहीं आयेगी क्योंकि उस आत्मा को तीन विशेष बातें, तीन बिन्दियां, आत्मा, परमात्मा और ड्रामा, तीन ही समय ? पर कार्य में लगा सकते हैं

D) सन्तुष्टता की विधि / आधार

a) सन्तुष्टता का आधार – सर्व प्राप्तियां

सन्तुष्टता का बीज / कारण / आधार बाप द्वारा सर्व प्राप्तियाँ हैं। जहाँ सर्व प्राप्ति हैं वहाँ सदा सन्तुष्टता स्वत: और स्वाभाविक है ही।

प्राप्तियों में विशेष सम्बन्ध और सम्पत्ति आवश्यक है।

एक ही वर्तमान संगमयुग है जिसमें सर्व अविनाशी सम्बन्ध एक ?? बाप से अनुभव कर सकते। जिस सम्बन्ध की आकर्षण हो, अनुभूति करना चाहे वो सम्बन्ध परम आत्मा द्वारा अनुभव कर सकते। एक से सर्व सम्बन्ध प्राप्त हैं। (सदा अपने रूहानी बेहद के सम्पूर्ण अधिकार के निश्चय और नशे में रहो। कितने श्रेष्ठ अधिकारी हो जो स्वयं बाप ऑलमाइटी अथॉरिटी के ऊपर अधिकार रख दिया। परमात्म-अधिकारी-इससे बड़ा अधिकार और है ही क्या! बच्चे तो बाप के भी हजूर हैं, मालिक हैं ना। जब बीज को अपना बना लिया तो वृक्ष ? तो समाया हुआ है ही।)

2. सर्व गुणों की सम्पत्ति, सर्व शक्तियों की सम्पत्ति और श्रेष्ठ सम्पन्न ज्ञान ? की सम्पत्ति – आप सबके पास यह श्रेष्ठ सम्पत्तियाँ हैं। आप सबको वरदाता बाप सर्वश्रेष्ठ सम्पत्ति भव का वरदान देते हैं।

सम्बन्ध, सम्पत्ति और तीसरी होती है सेहत, तन्दुरूस्ती।

3. आत्मा सदा शक्तिशाली ✊? है। संगम पर श्रेष्ठ सेहत वा तन्दुरूती है आत्मा की तन्दुरूस्ती। अमृतवेले हर रोज बापदादा सदा तन्दुरूस्त भव का वरदान देता है। इस समय के आत्मा की तन्दुरूस्ती जन्म-जन्म के शरीर की तन्दुरूस्ती भी दिलाती है।

वैसे भी देखो, दुनिया में भी मुख्य प्राप्ति सभी क्या चाहते हैं? हर एक चाहता है कि अपना नाम अच्छा हो, दूसरा मान और तीसरा शान।
4.a) स्वयं भगवान आपका नाम जपता है! तो इससे बड़ा नाम क्या होगा!
b) आप ब्राह्मण हो ना, तो ब्राह्मणों के नाम से आज भी नामधारी ब्राह्मण कितना कमा रहे, कितना ऊंचे गाये जाते हैं! तो आपके नाम की कितनी महिमा है!
c) तो अपने नाम की महिमा याद रखो कि मेरा नाम बाप के दिल पर है, विजय माला में है, अन्त तक मेरा नाम सेवा कर रहा है।

5.a) और आपका मान कितना है? भगवान ने भी आपको अपने से आगे रखा है! पहले बच्चे। तो स्वयं बाप ने मान दे दिया। (बच्चे डबल पूजे जाते हैं, बाप सिंगल। तो आपका मान बाप से ज्यादा हुआ ना! इतना श्रेष्ठ मान मिल गया!)
b) कितना आपका मान है, उसका प्रुफ देखो कि आपके जड़ चित्रों का भी लास्ट जन्म तक कितना मान है! जब आपके चित्र ही इतने माननीय, पूजनीय हैं तो चैतन्य में हैं तब भी चित्रों का मान है।

6. और शान कितना है! अपने एक­एक शान को याद करो और किसने शान में बिठाया? बाप ने बिठाया। बाप के दिलतख्तन­शीन ❣️ हैं। सबसे बड़े ते बड़ी शान राज्य पद है ना! तो आपको तख्त­ताज मिल गया है ना! जो परम आत्मा के तख्तनशीन हैं इससे बड़ी शान क्या है!

परमात्मा बाप द्वारा सर्व शक्तियां, सर्व गुण, सर्व खज़ाने प्राप्त की हुई आत्मा सदा सन्तुष्ट रहती… और बाप की, सर्व आत्माओं की अति प्रिय हो जाती है।

b) सन्तुष्टता की विधि – प्राप्तियों के स्मृति-स्वरूप रहना

प्राप्तियों के खजानों को स्मृति-स्वरूप बन कार्य में लगाना

2. तो सर्व प्राप्तियाँ हैं ना। सम्पत्ति भव भी है, ‘सर्व सम्बन्ध भव’ भी है और ‘सदा तन्दुरूस्त भव’ भी हैं। तीनों वरदान वरदाता बाप से मिले हुए हैं। तो वरदानों को समय ⌚ पर कार्य में लगाओबार-बार स्मृति ? का पानी ? दो, वरदान के स्वरूप में स्थित होने की धूप दो, फिर देखो वरदान सदा फलीभूत ? होता रहेगा, और वरदानों को भी साथ में लायेगा।)

3.a) सबसे सहज सदा सन्तुष्ट रहने की विधि है- सदा अपने सामने कोई न कोई विशेष प्राप्ति को रखो। बाप से क्या­क्या मिला, कितना मिला है, वेरायटी ? पसन्द आती है ना!
b) ज्ञान के खज़ाने की प्राप्ति कितनी है, योग से शक्तियों की प्राप्ति कितनी है, दिव्यगुणों की प्राप्तियाँ कितनी हैं, प्रैक्टिकल नशे में, खुशी में रहने की प्राप्तियाँ कितनी हैं? बहुत लिस्ट ? है ना!
c) तो रोज कोई न कोई प्राप्ति स्वरूप का अनुभव अवश्य करो।

E) सन्तुष्टता के प्रकार / विस्तार

(1) स्व की स्व से सन्तुष्टता (2) बाप द्वारा सदा सन्तुष्टता (3) ब्राह्मण परिवार द्वारा सन्तुष्टता

मन की अर्थात् स्वयं की सन्तुष्टता, सर्व की सन्तुष्टता अनुभव होती है?

स्व से सन्तुष्ट, परिवार से सन्तुष्ट और परिवार उनसे सन्तुष्ट।

a) स्वयं से अर्थात् स्वयं के पुरूषार्थ से, स्वयं के संस्कार परिवर्तन के पुरूषार्थ से, स्वयं के पुरूषार्थ की परसेन्टेज में, स्टेज में सदा सन्तुष्ट हो?
b) अच्छा दूसरा प्रश्न- स्वयं के मन्सा, वाचा और कर्म, अर्थात् सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा सेवा में सदा सन्तुष्ट हो? तीनों ही सेवा में और सदा सन्तुष्ट हो?
c) अच्छा, तीसरा प्रश्न- सर्व आत्माओं के सम्बन्ध-सम्पर्क में स्वयं द्वारा वा सर्व द्वारा सदा सन्तुष्ट हो?

सदा सन्तुष्ट हो? कभी स्वयं से असन्तुष्ट वा कभी ब्राह्मण आत्माओं से असन्तुष्ट वा कभी अपने संस्कारों से असन्तुष्ट वा कभी वायुमण्डल के प्रभाव से असन्तुष्ट तो नहीं होते हो ना!

स्वयं की स्वयं से असन्तुष्टता, कभी परिस्थितियों द्वारा असन्तुष्टता, कभी स्वयं की हलचल द्वारा असन्तुष्टता और कभी छोटी-बड़ी बातों से असन्तुष्टता

F) सन्तुष्टता से सम्बंधित और बातें

1. जितने उमंग-उत्साह से (मधुबन) आये हो उतना ही बापदादा भी सदा बच्चों को ऐसे उमंग-उत्साह से सन्तुष्ट आत्मा के रूप में देखने चाहते हैं। 

2. बापदादा का विशेष वरदान है सन्तुष्टता के शक्ति भव! सन्तुष्ट रहना, सन्तुष्ट करना और सन्तुष्टता की शक्ति से विश्व ? में भी सन्तुष्टता का वायब्रेशन फैलाना। 

3. हर एक सन्तुष्टमणि बन सन्तुष्टता की शक्ति को विशेष कार्य में लगाते जाओ।

4. बापदादा विशेष सन्तुष्टता की शक्ति हर एक बच्चे में ब्रह्मा बाप समान देखने चाहते हैं। आदि से लेके अन्त तक ब्रह्मा बाप ने सन्तुष्टता की शक्ति से हर परिस्थिति पर विजय प्राप्त की।

5. हर स्थान निर्विघ्न सन्तुष्टता की शक्ति से सम्पन्न हो। बापदादा ने देखा सन्तुष्टता की शक्ति चाहे स्वयं में, चाहे संगठन में अभी अटेंशन देने की आवश्यकता है।

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2. ? *App अथवा वेबसाइट* में पढ़ सकते, *मधुबन मुरली* (App / Website) अथवा *बाबा पोर्टल* (App / Website) में

3. ? *सुन* सकते, *मधुबन मुरली* (App / Website) से अथवा *Avyakt Murli Audiobooks* यूट्यूब चैनल पर

4. ? उस मुरली पर वरिष्ठ भाईयों का चिन्तन ? सुन सकते… यूट्यूब पर *अमूल्य रत्न* वा *मुरली मंथन*

5. ? ओरिजनल वीडियो (बाबा मिलन) देख सकते… यूट्यूब पर AvyaktMurlis चैनल पर


3 Written & Creative BK Numasham Yog Commentary

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1. मीठी बातें | 2. मन्सा सकाश | 3. सतोगुणी अनुभूति


नुमःशाम योग 1: मीठी बातें

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इस नुमःशाम के सुन्दर समय में… हम बैठे हैं अपने मन के साथ… एक बहुत लंबी (5000 वर्ष की!) यात्रा पूरी किये हुए

अपने साथ बातें करते… हे मेरे मन, तू कितना न भाग्यशाली है… तेरे द्वार स्वयं भगवान् आये हैं

एक धीमी आवाज सुनाई देती “आओ बच्चे”… मैं सर्व ज्ञान-गुण-शक्तियों का सागर हूँ… मेरा सबकुछ तुम्हारा है (पवित्रता, शान्ति, प्रेम, सुख, आनंद सब)… तुम मेरे वारिस बच्चे हो

इस सुन्दर दृश्य (बापदादा बाहें पसारे हुए) को मैं कुछ समय निहारता रहता… बाबा की बाहों में समाता जाता… बाबा मुझे दृष्टि-वरदान देते कितना प्यार करते

परमधाम में प्रकाशमय बिन्दु… ज्ञान सूर्य, मेरा मीठा बाबा है… उनकी सतोगुणी उर्जा में नहाकर… मैं तरोताजा हो गया हूँ


नुमःशाम योग 2: मन्सा सकाश (BK Numasham Yog Commentary)

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(नुमःशाम योग 2)… इस नुमःशाम की पावन वेला में… मैं फरिश्ता सो देवता आत्मा… मन-बुद्धि से विश्व का चक्र लगा रहा हूँ

मेरा बुद्धियोग परमधाम शिवबाबा से जुड़ा हुआ है… पवित्रता, शान्ति, प्रेम, सुख, आनंद, शक्ति से मेरा अन्तर्मन भर चुका है… यह उर्जा स्वतः चारों ओर फैलती

इस सतोगुणी उर्जा (वा स्वतः फैलते सकाश) का प्रवाह जारी रखने… मैं बाबा से मीठी-मीठी बातें करते रहता… अपने भाग्य की सराहना करता

बाबा आप कितने मीठे हो… हमें क्या से क्या बना देते… अपने दिल में ही हमको स्थान दे दिया है

मेरा फरिश्ते समान जीवन, दिव्य मुस्कान ?, गुण-मूर्त स्वरूप, ईश्वरीय दिनचर्या द्वारा… मैं सबके दिल की आश, उदाहरण-मूर्त, आधार-मूर्त आत्मा हूँ

सदा बाबा से लवलीन ❤️ रह… सबको बेहद प्यार बांटने वाली… मैं निरन्तर सेवाधारी, विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ


नुमःशाम योग 3: सतोगुणी अनुभूति (BK Numasham Yog Commentary)

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इस नुमःशाम के विश्राम की पलों में… मैं आत्मा deep silence का अनुभव करती… बिल्कुल ही संकल्पों को कम कर दें

इसी शान्ति की गहराई में… परमात्म-प्यार समाया है (जिसने यह शान्ति सिखाई)… इसी प्यार के अनुभव में सुख है

यही सुख की गहराई आनंद का रूप लेती… यही सतोगुणी अनुभूति मेरी आन्तरिक शक्ति बढ़ा रही… यही शक्ति मुझे स्वराज्य अधिकारी (सो विश्व राज्य अधिकारी) बनाती

मेरा आभामण्डल (aura) दिव्य बन रहा है… आसपास वातावरण सुगंधित हो रहा… वायुमण्डल शक्तिशाली

यह प्रकंपन स्वतः चारों ओर फैलते… शिवबाबा की याद में, मेरी स्थिति परिपक्व (एकरस, अचल, अड़ोल) हो गई है…सबके लिए विघ्न-विनाशक हूँ… सतयुगी ऊँच पद निश्चित है


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