Tu hi Tu Nazar Aaye – BK Song Lyrics in Hindi

Tu hi Tu Nazar Aaye – BK Song Lyrics in Hindi

तू ही तू नज़र आए… तू ही तू नज़र आए
जी करता है बाबा मैं, खोया रहूं तेरे प्यार में।
बस तू ही तू नज़र आए, बाबा मेरे संसार में।

तू ही मेरा सच्चा साथी, जीवन का आधार है।
कैसे कहूं मैं ओ बाबा, मुझे तुमसे कितना प्यार है।
बसे हो मेरे नैनो में, सांसों के तार तार में।
(बस तू ही तू नजर आए, बाबा मेरे संसार में…)

रह ना पाऊं बिन तेरे मैं, तू ही जीवन दाता है।
मेरा बाबा मेरा बाबा, यही गीत दिल गाता है।
हमने पाया निराकार को, संगम पर साकार में।
(बस तू ही तू नजर आए, बाबा मेरे संसार में…)

जिसको पुकारा जन्म-जन्म, तुम ही वो भगवान हो।
सुख शान्ति और पवित्रता का, मेरे लिए वरदान हो।
अनुभव पाया एक अनोखा, प्रभु तेरे दीदार में।
(बस तू ही तू नजर आए, बाबा मेरे संसार में…)


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Aavaj Se Pare – BK Song Lyrics in Hindi

Aavaj Se Pare – BK Song Lyrics in Hindi

आवाज़ से परे, मधुर साज़ से भरे
अंदाज में बुलाए बाबा, पुकार के
बच्चे आओ…..
सितारों से दूर, सितारों का जहा,
रहता परम सितारा, बेहद सुकून वहां।
बच्चे आओ…..

नूरे समंदर, दिखता सुंदर
लहराए निरंतर, आनंदित अंतर।
मौजों की मौज लेने का है समा
वो प्रेम डोर से खींचे वहां।
जी भर निहारके, लिए पंख प्यार के
हम उड़ चले…
(आवाज़ से परे..)

राहें देखे बाबा बांहे खोले
दिल से सुन ले, मृदुल स्वर में वो बोले
कुर्बान करके आ पुराना जहां
सुन प्यार से पुकारे वो शिव शमा।
(जी भरे निहार के…)

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Us Rab Ka Shukrana – BK Song Lyrics in Hindi

Us Rab Ka Shukrana - BK Song Lyrics in Hindi

Us Rab Ka Shukrana – BK Song Lyrics in Hindi

उसे देखना इबादत है, उसे सोचना इबादत है
सुनना भी इबादत है, उसे दिल की सुनाना,
उस रब का शुक्राना

कभी भूलकर भी ना उसको भूलाना, ऐ दिल मेरे गाना
(उस रब का शुक्राना..)

अपना बनाने का, आंखो में बसाने का,
दिल में बिठाने का, लाखों शुक्राना
(उस रब का शुक्राना..)

गज़ब का प्यार दिया, हंसी परिवार दिया,
ऐहसान हम पे किया, मुश्किल है सुनाना
(उस रब का शुक्राना..)

सबका जो सपना है, मेरा वो अपना है,
प्यारा वो कितना है, खुशी का ना ठिकाना
(उस रब का शुक्राना..)

जीना सिखाया है, मंजिल दिखाया है
खूबी से सजाया है, जिंदगी बनाना
(उस रब का शुक्राना..)

दादी गुलज़ार जी की मुख्य विशेषताएं

शारदा बहन (अहमदाबाद) ने एक बार दादी गुलजार जी से पूछा… जब भी आपके पास आते, तो शान्ति की जैसे करन्ट मेहसूस होती, आप ऐसा कौन-सा पुरूषार्थ करते?

दादी का जबरदस्त उत्तर… मैं देह-भान में कभी आती ही नहीं !

अर्थात्‌ सदा आत्म-अभिमानी (Soul Conscious) स्थिति… आज हम भी प्रण करे, दादी समान हम भी एसी सर्वोत्तम स्थिति अवश्य बनायेंगे ! ?


दादी ने एक बार कहा था मैं चलते-फिरते अशरीरी स्थिति में स्थित रहती हूँ !

हम सोचते थे चलते-फिरते तो देही-अभिमानी स्थिति रहती (अर्थात्‌ मैं आत्मा शरीर द्वारा कर्म कर रही)… परन्तु दादी ने तो अशरीरी स्थिति लिए कहा, तो उनका बैठे हुए ही कितना पावरफुल अभ्यास होगा, जो चलते-फिरते भी कायम रहा !

जब भी योग में बैठे, दादी की इस श्रेष्ठ योग की धारणा को अवश्य याद करे..


जब हम अप्रैल ’15 में बाबा मिलन लिए मधुबन में थे, दादी जी की तबियत नर्म होते भी दादी ने हिम्मत रखी थी, बाबा भी आये थे (पार्ला, मुंबई से)

दादी, आपकी अथक सेवाएं सदा हमारे लिए प्रेरणा-स्त्रोत है… आपके पास हम सारे ब्राह्मण परिवार की पद्मापद्म दुआएं सदा है… हम आपके कदमों पर चल, आपसा श्रेष्ठ बाबा के दिल-तख्तनशीन अवश्य बनेंगे!


बहुत वर्ष पहले जब दादी गुलज़ार जी हॉस्पिटल में थे और दादी जानकी उन्हें मिलने गए थे… उनके स्वस्थ्य के पूछने पर, दादी गुलज़ार ने सिर्फ दो शब्द का उत्तर दिया..

साथी (बाबा की) और साक्षी (देह-परिस्थितियों से)!

हम समझते दादी ने इन धारणाओं को अपने जीवन में कूट-कूट कर भरा था, जिस कारण दादी निरन्तर योगी और निरन्तर साक्षी रहे… अब भी दादी साक्षी हो सकाश दे रहे, जो हम भी साथी और साक्षी की धारणा को पक्का कर ले! ?


दादी जी को एक बार एक बहन ने कहा, फलानी ऐसी है..

दादी ने कहा… अरे, राजधानी बन रही, सबका अपना-अपना पार्ट है!

दादी ने कितनी सहजता से सबको स्वीकार किया, विशेषताएं देख आगे बढ़ाकर सर्वश्रेष्ठ महान बनाया… हम भी सदा ऊंची स्थिति में स्थित रह, और प्रभावों से परे, सबकी विशेषताएं देख सबको आगे बढ़ाते रहे! ?


जब 50s में सेवा शुरू हुई, बाबा ने गुलज़ार दादी को लखनऊ भेजा था… दादी को यह भी नहीं पता था लखनऊ कहां आता, फिर भी ट्रेन में चढ़ गये, और इतनी विशाल सेवा की!

कितना परमात्म महावाक्यों पर निश्चय, एक बल एक भरोसा !

हम भी मुरली के हर महावाक्य पर ऐसे निश्चयबुद्धि बने… स्वयं, ड्रामा, परिवार पर भी निश्चयबुद्धि विजयी ! ?


दादी गुलज़ार जी सिर्फ 8-9 वर्ष के थे जब बाबा से मिले, और मिलते ही तुरन्त ध्यान में चले गए, श्रीकृष्ण का साक्षात्कार हुआ!

अर्थात्‌ दादी के कल्प पहले वाले दिव्यता के संस्कार सेकण्ड में जागृत हो गये। तो सोचने की बात है, दादी का पूरा कल्प ही कितना सर्वश्रेष्ठ, महान, अन्तर्मुखी बीता होगा!

हम भी उनकी दिव्य प्रेरणा ले, सदा “मैं हीरो एक्टर हूँ’ इसी स्मृति से अपना हर कर्म सर्वश्रेष्ठ कला-समान बनाए… अर्थात्‌ सुख, शान्ति, प्रेम, आनंद वा सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न बनते-बनाते रहे!.. तो यह सर्वश्रेष्ठ भाग्य हर कल्प रिपीट होता रहेंगा! ?


दादी गुलज़ार जी का मुख्य गुण… असीम शान्ति
दादी प्रकाशमणि का… बेहद प्यार
दादी जानकी (और ईशू दादी)… उमंग-उत्साह, खुशी, आनंद
मम्मा थी… शक्ति स्वरूपा
ब्रह्मा बाबा (और जगदीश भाई)… ज्ञान स्वरूप
दीदी मनमोहिनी थे नियम मर्यादा में पक्के… अर्थात्‌ सम्पूर्ण पवित्रता

तो हमारे पूर्वजों जैसे हम भी सतोगुणी आत्मा (ज्ञान, पवित्रता, शान्ति, प्रेम, सुख, आनंद, सर्व शक्तियों से सम्पन्न) बन जाएं… मन-वाणी-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क, स्मृति-वृत्ति दृष्टि में ! ?


Deep Silence, unwavering Love for God, & a personality radiating Divinity at every step..

Your illustrious teachings continue to be our guiding light: you’ll keep shining in our hearts & practical life always..

Loving homages to Most Respected Rajyogini Dadi Hridaya Mohini Ji… A true instrument of God, an embodiment of greatness! ??


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दादी ईशू जी की मुख्य विशेषताएं

दादी ईशू जी की मुख्य विशेषताएं

मैं बहुत खुश!

ईश्वर के साथ रहने वाले इशू दादी जी!

काफी वर्षों से, जब भी किसी ग्रूप को मिलते, दादी एक ही बात कहते थे ‘मैं बहुत खुश हूँ’ वा ‘मैं बहुत खुश हुई’… दादी जी इतने आनंद से सम्पन्न रहते थे, तो सोचने की बात है दादी जी की पूरी यात्रा ही कितनी खुशियों से भरी हुई रही होंगी… जो अब भी सदा ही बेफिक्र बादशाह, रूहानी मौज में नजर आते थे! ?

आपकी विभिन्न, बेहद, अथक सेवाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद दादी जी… आप सदा हमारे लिए प्रेरणा स्रोत रहेंगे! ???


सम्पूर्ण विश्वास पात्र, इकॉनमी के अवतार

आदि से दादी जी अपनी पूर्ण ईमानदारी के कारण बापदादा के *सम्पूर्ण विश्वास पात्र* थे, तब तो भण्डारे (Treasury) के निमित्त बनी… हम भी परमात्म विश्वास पात्र बने! ?

सदा *इकॉनमी की अवतार* थी, इसलिए बाबा-मम्मा उन्हें moneyplant कहते, जरूरत के समय सदा उनकी बचत काम आती थी! ?

हम भी एकनामी-economy द्वारा अपने सर्व समय-श्वास-संकल्प ज्ञान-गुण-शक्तियों के *ख़ज़ाने* को *जमा* कर विश्व कल्याण में हर पल *सफल* किया करे! ?


मुरली का बहुमुल्य योगदान!

दादी जी ही वह महान् आत्मा थे, जो साकार बापदादा की तेजस्वी तेज वाणी को फटाफट shorthand में *लिख लेते* थे! ?

उन्ही के बदौलत आज भी हम उस समय (टेप मशीन के पहले) की साकार मुरलियों को *accurate शब्दे-शब्द* पढ़ पाते!… दादी जी का कितना न धन्यवाद करे! ?

तो ऐसी मुरली का *पुरा regard* रखने… सदा क्लास के पहले कुछ समय योग में बैठ, फिर *सच्चे गोप-गोपी* बन ज्ञान मुरली की तान पर झूम उठे… फिर सारा दिन *मास्टर मुरलीधर* बन उसी ज्ञान की स्मृति, वा मनन-चिन्तन-मंथन-सिमरण द्वारा योगयुक्त शान्ति-प्रेम-आनंद से भरपूर हो, हर पल स्वयं-सर्व का कल्याण करते रहे! ?


समाने की महान शक्ति!

दादी जी की सम्पूर्ण विश्वास पात्रता कारण बाबा ने उन्हें *पत्र व्यवहार* में राइट हैण्ड रूप में निमित्त रखा था! ?

तो दादी जी को खुशखबरी-अच्छी बातों के साथ-साथ कुछ सेंटरो से कमजोरी-समस्याओं की बातें भी ज्ञात होती होगी… फिर भी दादी जी इतना *शुद्ध-ह्रदय दिव्य-दर्पण* थे, इतनी विशाल समाने की शक्ति थी, जो सदा उनके मुख से शुभ भावना के ही बोल सुनते थे!

हम भी घर-ऑफिस के बड़े है, तो सबकी बातों को ऐसा समा ले; और अपने श्रेष्ठ *धारणा-मूर्त* example, *गुणग्राही* दृष्टि, शक्तिशाली *शुभ भावना* द्वारा सबको सशक्त कर उनकी काबिलियत के शिखर पर पहुंचाया करे!… यह भी बहुत बड़ा योगदान है, जिससे बहुत *दुआएं* मिलती! ?


बाबा की सौगात!

दादी जी को साकार बाबा ने एक घड़ी सौगात में दी थी (जो बिना battery, pulse से चलती)… दादी जी को इसका *इतना regard / नशा* था, वह सदा पहने रखते, सदा क्लास में दिखाते थे! ?

हमें भी बाबा ने बहुत सौगातें दी है – *विशेषताएं* , *वरदान* कार्ड, स्पेशल अटेन्शन / पालना, आदि… हमें भी उसका नशा हो, उस विशेषता / वरदान को *स्मृति* में रख, उसका *स्वरूप* ही बनके रहे!… तो स्वतः उसी स्मृति अनुसार श्रेष्ठ संकल्प-बोल-कर्म *स्वतः* चलेंगे; हमारे *उदाहरण* से और सब भी धारणा-मूर्त बनते जायेंगे, हम साथ में *सतयुग* लाएंगे! ?


अन्त तक सेवा!

दादी जी *अन्त तक अपनी सेवा पर उपस्थित* रहे… हर बाबा मिलन टर्न में यदि दादी से यज्ञ-कारोबार हेतु मिलना चाहो, तो time announce करते थे! ?

उनके सामने हमारी सेवाएं तो कितनी छोटी और कम है… तो हमें तो कितना *प्यार* से, *दिल* से, *निमित्त* -निर्मान-निःस्वार्थ-निर्मल हो सेवा में रहना चाहिए! ?

और सेवा से सबसे पहले फायदा हमारा ही होता, किसी को *गुलाब देने से सुगंध हमारे हाथों में* रह जाती, तो क्यों न ऐसे जीवन रूपी गुलदस्ते को ख़ुशनुमा बन महाकाया करे! ?


एक बाबा दूसरा न कोई!

दादी जी की एक और मुख्य विशेषता थी, जिस कारण उन्हें Treasury और पत्र व्यवहार में निमित्त रखा था… व थी एक बल एक भरोसा, *एक बाबा दूसरा ना कोई*, सम्पूर्ण वफादारी; क्योंकि भल उनकी संगठन में सबके साथ बहुत अच्छी मैत्री थी, परन्तु किसी एक प्रति भी विशेष एक्स्ट्रा झुकाव नहीं था! ?

हम भी एक बाबा को साथ रख, सबको देते रहे… क्योंकि जब ऐसे एकव्रता हो बाबा के साथ ही *combined सर्व गुण-शक्तियों से सम्पन्न* रहते, तो स्वतः हमारे हर कदम, स्मृति-वृत्ति-दृष्टि-कृति से औरों को भी वह *दिव्य सतोगुण* प्रवाहित होते रहते… तो अपने प्यारे संबंधों की सच्ची सेवा करने के लिए ही, एक बाबा दूसरा ना कोई की धारणा अवश्य पक्की किया करें! ?


निर्माण-चित्त!

दादी जी की एक मुख्य विशेषता थी नम्रता; क्योंकि भल उन्हें यज्ञ की बहुत मुख्य ऊँच सेवाओं (Treasury वा पत्र-व्यवहार) के निमित्त रखा था, परन्तु इस बात का उन्हें जरा भी उल्टा भान नहीं था… *बिल्कुल निर्मान-नम्रचित्त-निरहंकारी* हो रहते थे! ?

वास्तव में हमारे ब्राह्मण जीवन में अहंकार तो आ ही नहीं सकता, क्योंकि हम जानते हैं पहले हम क्या थे, और जो भी कुछ है सब *बाबा के ज्ञान-गुण-शक्तियों की कमाल* हैं (और अभी बहुत पुरूषार्थ बाकी है!)… तो ऐसे नम्रचित्त होंगे तो बहुत ही सहज-स्वतः-स्वाभाविक सबको बाबा से जोड़ेंगे, जैसे हमारा अस्तित्व बिल्कुल ही समर्पित हो गया, और हममे *बाबा ही बाबा दिखाई देंगे* … यही तो प्रत्यक्षता है! ?


वर्णन नहीं!

दादी जी ने कभी अपनी सेवाओं का *वर्णन नहीं किया* (शायद इसी कारण उनकी सेवाओं को सभी कम जानते)… और इसी *गुप्त-निमित्त भाव* कारण उन्होंने जबरदस्त आध्यात्मिक कमाई-प्रालब्ध जमा की है! ?

तो हम छोटी से छोटी सेवा भी करे, याद रखे मार्क्स ज्यादा स्थिति-भाव-भावना पर है… जितनी *योगयुक्त* -ऊंची-महान स्थिति, जितनी बेहद की उदारता- *कल्याण* की भावना, उतना *प्राप्ति* ज्यादा… फिर इन प्राप्तियां को और बाबा की सेवा में लगा सकेंगे, ऐसे *हर पल सफल* करते, स्वयं-सर्व को कल्याण करते रहेंगे! ?


छोटे बच्चे प्रिय!

दादी जी को छोटे बच्चे बहुत ही *प्रिय* थे, स्टेज पर उनके साथ झूम उठते थे! ?

दादी जी की सूक्ष्म उपस्थिति अब भी हम बच्चों के साथ सदा है… सभी दादीयां हमें अब *सम्पूर्णता* की ओर प्रेरित कर रहे, तो अभी सदा बैठे शक्तिशाली अशरीरी स्थिति, और चलते-फिरते कर्म में निरन्तर *फरिश्ता* स्थिति में स्थित रहा करे… तो औरों लिए भी हम *साक्षात्* example बन, सबको बाबा से ही लवलीन करते रहेंगे… यही समय है! ?


ईश्वर के साथ!

*ईश्वर के साथ रहने वाले इशू दादी जी*… आप सदा हमे बाबा के समीप-पास-साथ रहने की प्रेरणा देते रहेंगे! ?

जब भी मन-बुद्धि द्वारा बाबा के साथ रहने (वा कोई भी योग का) अभ्यास करते, वह *संस्कार बनता* जाता… अर्थात्‌ फिर वह संकल्प दोहराना, visualise सहज हो जाता, तुरन्त उस *अनुभूति* में समा सकते… इसलिए कभी किया योग व्यर्थ नहीं जाता (भल कभी परिस्थिति हावी हो भी जाये, फिर उस संस्कार द्वारा *श्रेष्ठ स्थिति* में जल्दी-से आ सकते!) ?

थोड़ा भी यथार्थ प्रयास *प्राप्ति* देता ही देता! (स्वास्थ्य अच्छा होता जाता, मन खुश, कार्य-क्षमता श्रेष्ठ, संबंध मधुर, वातावरण आदि)… जिससे हमें और प्रोत्साहन मिलता, चार्ट को *और कुछ मिनट* बढ़ाते, 4-8 घंटे के लक्ष्य तक तेज़ी से बढ़ते जाते!… इसलिए इस सहजयोग की युक्ति *‘बाबा मेरे साथ है’* को तो अपने जीवन का महामंत्र ही बना ले! ?


अन्तर्मुखी!

दादी जी को ज्यादा भाषण करने-बोलने का शौक नहीं था, सदा *अन्तर्मुखी* रह बाबा की दी हुई सेवा प्यार से करना पसंद करते थे!… बोलने का कहने पर “हाँ जी” का पाठ अवश्य बजाते थे, और 2-4 वाक्यों में ही *दिल छू लेते!* ?

जब हम मन और मुख का *मौन* रखते, तो हर पल सफल बहुत सहज कर सकते, हर पल मन को सशक्त करने में उन्नति अनुभव करते (क्योंकि व्यक्त भाव ही एकाग्रता तोड़ उन्नति से दूर करता)… तो कुछ समय मौन रखने के साथ-साथ याद रखे, सबसे बड़ा मौन है *व्यर्थ जानकारी से परे* जाना (कुछ बहुत जरूरी हो, तो 1-2 मिनट से ज्यादा नहीं)… क्योंकि इसी *होली-हंस धारणा* से मन को स्वच्छ रख, सुबह डले ज्ञान-योग के बीज को सारा दिन बहुत सुन्दर फलीभूत कर सकते (यही हमारे जीवन का अनुभव है!)… इससे हमारी छूपी विशेषताएं निखरने लगती, बाबा की आशाओं को पूर्ण करने लगते, हमारे *हीरो पार्ट* को सही अर्थ में बजा सकते! ?

तो सदा व्यर्थ जानकारी का मौन रख, अन्तर्मुखी हो हर पल ज्ञान-योग के हर पॉइंट की गहराई का अनुभव करते-कराते, *अपने वरदानी जीवन को स्वर्णिम हीरे-समान* बनाते रहे! ?


सार

आज हमने दादी जी की मुख्य विशेषताएं देखी… उनकी विभिन्न सेवाएं (Treasury में इकॉनमी, पत्र व्यवहार में समाने की शक्ति, मुरली shorthand का अमूल्य योगदान, आदि)… और उसमें प्रयोग किये महान गुण (सम्पूर्ण वफादारी, निमित्त भाव, वर्णन नहीं, अन्तर्मुखी, आदि) ?

हमने दादी जी के महामंत्र “मैं बहुत खुश हूँ / हुई” को भी समझा, कैसे उनको बाबा को दी हुई घड़ी का regard-नशा था, वा बच्चों कितने प्रिय थे। ?

उनका नाम (ईशू दादी) ही हमें सदा ईश्वर के साथ रहने की प्रेरणा देता रहेंगा! ?

सदा मुरली में यादप्यार लेते, स्वराज्य अधिकारी बन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति से सदा खुश रह, सुख शान्ति की किरणें फैलाओ | Baba Milan Murli Churnings 23-03-2021

1. आज बापदादा हर बच्चे के मस्तक में भाग्य की रेखायें देख रहे, इतना बड़ा भाग्य सारे कल्प में किसी का नहीं क्योंकि भाग्य देने वाला स्वयं भाग्य दाता है। हर एक के:

  • मस्तक में चमकता हुआ सितारा। 
  • मुख में मधुर वाणी। 
  • होठों पर मधुर मुस्कान। 
  • दिल में दिलाराम बाप के लवलीन। 
  • हाथों में सर्व खज़ानों के श्रेष्ठता। 
  • पांव में हर कदम में पदम। 

इसलिए आपके यादगार चित्रों का भी भाग्य वर्णन होता। बापदादा मुबारक दे रहे – वाह बच्चे वाह! सतयुग का भाग्य भी संगम के पुरूषार्थ की प्रालब्ध है इसलिए संगमयुग की प्राप्ति ज्यादा है। अपने भाग्य में खो जाओ। भाग्य स्मृति में लाओ तो वाह मेरा भाग्य! सदा नशा रहता है? पाना था वह पा लिया। कोई अप्राप्त वस्तु ही नहीं। 

2. सिर्फ बाप को जाना, माना, अपना बनाया तो भाग्य मिल गया। इस भाग्य को जितना स्मृति में लाते रहेंगे, भाग्यवान आत्मा का चेहरा सदा हर्षित रहेगा। उनकी दृष्टि-वृत्ति-प्रवृत्ति सदा स्वयं भी सन्तुष्ट, दूसरों को भी सन्तुष्ट बनायेगी। सन्तुष्टता का आधार है सर्व प्राप्ति। आपने कहा मेरा बाबा और बाप ने कहा मेरा बच्चा। सिर्फ एक को जानने से कितना वर्सा मिल गया, आपकी जीवन ही सुख शान्ति सम्पन्न हो गई! 

3. बापदादा यही चाहते कि सदा स्वराज्य अधिकारी रहो, यह वरदान बाप ने इस संगमयुग लिए पूरा दिया है। सभी कर्मेन्द्रियों के मन बुद्धि संस्कार के भी मालिक हो। सबके लिए मेरा शब्द बोलते, तो मेरे के ऊपर सदा अधिकार रहता इसके लिए चलते फिरते कार्य करते मालिकपन का निश्चय-नशा होना चाहिए। 

4. अब तो आत्माओं को मन्सा द्वारा सेवा देने का समय है। चिल्लाते हे पूर्वज हमें थोड़ा सा सुख-शान्ति की किरणें दे दो। कुछ भी आपदा अचानक आनी है इसके लिए सेकण्ड में फुलस्टाप, वह प्रैक्टिस कर रहे हो, फिर प्रैक्टिकल करने का समय होंगा। कितना सहज है मैं भी बिन्दी, लगाना भी बिन्दी, सिर्फ अटेन्शन देना।

5. बापदादा विशेष बच्चों को सौगात देते बच्चे मैं आपके सदा साथ हूँ। बाबा कहा और सदा हजूर हाजिर। तो जहाँ भगवान साथ है वहाँ विजयी बनना क्या मुश्किल है, विजय आपका जन्म सिद्ध अधिकार। सिर्फ मेरा बाबा कहा तो विजयी है ही। इसलिए सदा विजयी बनना जो याद में रहता उसके लिए अति सहज है। 

6. मधुबन में आके आपस में भी मिलते, बाप से भी मिलते और सर्विस की लेन देन भी करते। और तो कहाँ इतना बड़ा परिवार इकठ्ठा देख नहीं सकते। तो दिल में आता वाह बाबा और वाह मेरा ईश्वरीय परिवार! 

7. बापदादा की रोज यादप्यार मिलती रहती, अगर रोज विधिपूर्वक मुरली पढ़ते। यह है बापदादा के प्यार की निशानी। मुरली नहीं मिस करनी, क्योंकि बाप रोज परमधाम से आते हैं कितना दूर से आते। जैसे खाना नहीं मिस करते हो तो यह भी आत्मा का भोजन है। 

8. रोज रात्रि को अपने को बापदादा का यादप्यार-मुबारक देना। साथ रहेंगे साथ चलेंगे और साथ आयेंगे।

9. सब बापदादा की कमाल देखते जाओ और दुनिया की धमाल सुनते जाओ। आप तो बेफिकर बादशाह हो। जो होगा अच्छा होगा आपके लिए। संगम अमृतवेला, तो अमृतवेले बाद दिन आता है ना! क्या होगा! यह संकल्प भी नहीं, अपना राज्य होना ही है। निश्चित बात कभी बदल नहीं सकती।


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इस शिवरात्रि पर अज्ञान मैं-पन की नींद से जाग, सम्पूर्ण पवित्रता का व्रत पक्का कर, सम्पन्न कर्मातीत लाइट हाउस बन प्राप्ति की किरणें फैलाओ | Baba Milan Murli Churnings 10-03-2021

1. आज शिव बाप अपने सालिग्राम बच्चों के साथ अपनी और बच्चों के अवतरण की वन्डरफुल जयन्ती मनाने आये हैं। आप बच्चों का और बाप का आपस में बहुत-बहुत-बहुत स्नेह है। इसलिए जन्म भी साथ-साथ, रहते भी सारा जन्म कम्बाइण्ड अर्थात् साथ, आक्युपेशन भी एक ही विश्व परिवर्तन करने का और वायदा है परमधाम, स्वीट होम में भी साथ-साथ चलेंगे। न बाप अकेला कुछ कर सकता, न बच्चे। इसलिए इस अलौकिक अवतरण के जन्म दिवस पर पदमापदम बार मुबारक दे रहे। चारों ओर बच्चे खुशी में झूम रहे हैं। वाह! बाबा, वाह! हम सालिग्राम आत्मायें! वाह! वाह! के गीत गा रहे।

2. भगत भी पवित्रता का व्रत लेते लेकिन हर वर्ष लेते एक दिन के लिए। आप सभी ने तो जन्म लेते एक बार सम्पूर्ण पवित्रता का व्रत ले लिया है! चार (क्रोध, आदि) का भी व्रत लिया कि सिर्फ एक का? बच्चों को यह 5 विकार महाभूत से प्यार कम हो गया लेकिन इनके बाल बच्चे छोटे-छोटे अंश मात्र, वंश मात्र, उससे थोड़ा-थोड़ा प्यार है। पवित्रता आप ब्राह्मणों का सबसे बड़े से बड़ा श्रृंगार है, प्रापर्टी है, रॉयल्टी है, पर्सनाल्टी है। दूसरा खाने-पीने का व्रत पक्का है? तीसरा आप अज्ञान नींद से जागने का व्रत लेते। कभी भी अज्ञान अर्थात् कमज़ोरी की, अलबेलेपन की, आलस्य की नींद नहीं आये। आपने जन्म से व्रत ले लिया है इसीलिए आज के दिन पिकनिक करेंगे।

3. बापदादा से सभी बच्चों का दिल से प्यार है 100% से भी ज्यादा। परन्तु प्रतिज्ञा कमज़ोर होने का एक ही कारण-शब्द है – `मैं’। मैंने जो कहा-किया-समझा, वही राइट है। वही होना चाहिए। जब पूरा नहीं होता तो फिर दिलशिकस्त, मैं कर नहीं सकता, चल नहीं सकता, बहुत मुश्किल है। एक बॉडीकॉन्सेसनेस का `मैं’ बदल जाए, `मैं’ स्वमान भी याद दिलाता। `मैं’ दिलशिकस्त भी करता, `मैं’ दिलखुश भी करता। अभिमान अपमान सहन नहीं करायेगा। शिवरात्रि पर यह “मैं” “मैं” की बलि चढ़ा दो, फुल सरेण्डर।

4. सेवा जोर-शोर से करना अर्थात् सम्पूर्ण समाप्ति के समय को समीप लाना। ब्रह्मा बाप सभी बच्चों से पूछते हैं कि गेट खोलने की डेट बताओ। आज मनाना अर्थात् बनना, मैं को समाप्त करेंगे। सम्पन्न बनने का प्लैन बनाओ। धुन लगाओ, कर्मातीत बनना ही है। कुछ भी हो जाए बनना ही है, करना ही है, होना ही है। सब बहुत दु:खी हैं, बापदादा को इतना दु:ख देखा नहीं जाता। सिवाए आपके कोई रहम नहीं कर सकता। अभी रहम के मास्टर सागर बनो, स्वयं पर भी अन्य प्रति भी। अभी अपना यही स्वरूप लाइट हाउस बन भिन्न-भिन्न लाइट्स की किरणें दो। सारे विश्व की अप्राप्त आत्माओं को प्राप्ति की अंचली की किरणें दो। अच्छा।


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स्वमान कमेंटरी | मैं सम्पूर्ण पवित्र पूज्य पावन देव आत्मा हूँ | Avyakt Murli Churnings 07-03-2021

मैं महान्… परमात्म-भागयवान… ऊँच ते ऊँच ब्राह्मण आत्मा हूँ

मैं चैतन्य… पूज्य पावन… शुद्घ आत्मा, इष्ट देव हूँ

मैं सम्पूर्ण पवित्र आत्मा… संकल्प, वृत्ति-वायुमण्डल, वाणी-सम्पर्क सब शुद्ध है… हर संकल्प-सेकण्ड सफल कर, श्रेष्ठ जमा करता

मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा… सदा भाग्य-भाग्यविधाता की स्मृति में… ‘वाह मेरा भाग्य’ का गीत गाता, उड़ती कला का अनुभवी हूँ

मैं रूहानी योद्धा… सदा बाबा को साथ रख… विजयी रहता, आशा-विश्वास से सम्पन्न



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योग कमेंटरी | मैं हीरो एक्टर, समझदार, रूहानी योद्धा हूँ | Sakar Murli Churnings 26-02-2021

मैं अपने तन-मन-धन को सफल कर… सर्व खजानों को बढ़ाने वाली… समझदार आत्मा हूँ

मैं देह-भान की बदबू से परे… ज्ञान-योग के पंख से मजबूत उड़ता पंछी… ऊपर वतनवासी हूँ

मैं रूहानी योद्धा… सदा बाबा की श्रीमत पर, आत्म-अभिमानी, बाबा की यादों में… व्यर्थ से परे, खुशी से भरपूर हूँ

मैं हीरो एक्टर… सबके पार्ट को स्वीकार करता… ऊँच ते ऊँच क्रियेटर-डायरेक्टर मुझे विजयी बनना रहे



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परमात्म-प्यार में आज व्यर्थ-मुक्ति दिवस मनाकर सदा खुश रह विश्व को सुख-प्यार-सन्तोष की अंचली देने की डबल सेवा करो| Baba Milan Murli Churnings 25-02-2021

1. आज बापदादा अपने परमात्म प्यारे बच्चों को देख रहे। ऐसे कोटो में कोई बच्चे हैं क्योंकि परमात्म प्यार सिर्फ संगमयुग पर अनुभव होता। कोई पूछे परमात्मा कहाँ है? मेरे साथ ही रहते हैं। हमारे दिल में बाप, बाप के दिल में हम रहते। जानते हो यह परमात्म प्यार का नशा हमें ही अनुभव करने का भाग्य प्राप्त है।

2. किसी से प्यार होता तो निशानी है उसपर कुर्बान होना। बाप की चाहना है मेरा एक एक बच्चा बाप समान बने। वह श्रेष्ठ स्थिति है सम्पूर्ण पवित्रता। ऐसी पवित्रता जो स्वप्न में भी अपवित्रता का नामनिशान आ न सके। समय समीपता अनुसार व्यर्थ संकल्प भी अपवित्रता है। अगर बाप की दी हुई विशेषताओं को अपनी विशेषता समझ अभिमान में आते, मेरेपन के अशुभ संकल्प मैं कम नहीं हूँ, मैं भी सब जानता हूँ, यह भी व्यर्थ संकल्प हुआ। अभी पवित्र दुनिया-राज्य की स्थापना का समय समीप लाने वाले आप निमित्त हो, आपका वायब्रेशन चारों ओर फैलता।

3. अभी डबल सेवा चाहिए। वाणी की सेवा तो धूमधाम से चल रही, उल्हना निकाल रहे। लेकिन अभी चाहिए मन्सा सेवा द्वारा सकाश, हिम्मत, उमंग-उत्साह देना। आप इस कल्प वृक्ष का फाउण्डेशन पूर्वज और पूज्य हो। बापदादा तो दु:खी बच्चों का आवाज सुनते, आपके पास उन्हों के पुकार का आवाज पहुंचना चाहिए। आपको अभी प्यार-सन्तुष्टता-खुशी की अंचली देने की आवश्यकता है।

4. अपने नयनों-चेहरे-चलन द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करो। अभी तक यह आवाज हुआ है कि ब्रह्माकुमारियां मनुष्य आत्मा को अच्छा, अशुद्ध व्यवहार से मुक्त कर देती। लेकिन अभी परमात्मा बाप आ गया है, परमात्म ज्ञान यह दे रही, मेरा बाप वर्सा देने आ गया है, अभी बाप की तरफ नजर जाने से उन्हों को भी परमात्म प्यार, परमात्मा की आकर्षण आकर्षित करेगी। अच्छा-अच्छा तो हो गया है लेकिन परमात्मा बाप की प्रत्यक्षता आकर्षित कर अच्छा बनायेगी। तो अभी मन्सा द्वारा बाप के समीप लाओ। अभी वर्सा नहीं लिया तो कब लेंगे! समाप्ति को समीप लाने वाले कौन? हर एक बच्चा समझता है ना मैं ही निमित्त हूँ। सन शोज फादर

5. अभी से व्यर्थ को समाप्त कर सदा समर्थ बन समर्थ बनाओव्यर्थ का समाप्ति दिवस मनाओ। दूसरा दु:ख और अशान्ति की समाप्ति का दिवस समीप लाना। दूसरों को वर्सा दिलाने के ऊपर रहम आना चाहिए। छोटी छोटी बातों में क्यों, क्या के क्यूं में टाइम नहीं देना। अभी हे बापदादा के सिकीलधे पदम पदम वरदानों के वरदानी बच्चे! अभी संकल्प को दृढ़ करो। कर्मयोगी बनो, लाइफ सदाकाल होती है। तो अभी अपना कृपालु-दयालु, दु:खहर्ता-सुख देता स्वरूप को इमर्ज करो। अचानक के पहले भक्तों की पुकार पूरी करो। दु:खियों के दु:ख के आवाज तो सुनो। अभी हर एक छोटा बड़ा विश्व परिवर्तक, विश्व के दु:ख परिवर्तन कर सुख की दुनिया लाने वाले जिम्मेवार समझो।

6. अभी चारों ओर के परमात्म प्रेमी बच्चों को जो सदा बाप के प्यार में उड़ते रहते तीव्र पुरूषार्थी हैं और सेवा में निर्विघ्न सच्चे सेवाधारी हैं, ऐसे चारों ओर के बच्चों को बापदादा भी देख रहे, सदा खुश रहो और खुशी बांटों, यह वरदान दे रहे। खुश चेहरा, कोई भी देखे खुश हो जाए। सभी के लिए एक वरदान है। कभी चेहरा मुरझाया हुआ नहीं। अगर आप मुरझायेंगे तो विश्व का हाल क्या होगा! आपको सदा खुशनुमा चेहरा-चलन में रहना-रहाना है।