योग कमेंटरी | शरीर जैसे कि है ही नहीं

योग कमेंटरी | शरीर जैसे कि है ही नहीं

इस शरीर को चलाने वाली शक्ति… मैं आत्मा हूँ… यह देह अलग, मैं आत्मा अलग हूँ…

मैं चैतन्य ऊर्जा हूँ… सोचती-महसूस करती, निर्णय करने वाली शक्ति … शान्ति, प्रेम, आनंद से भरपूर

यह देह सिर्फ निमित्त यंत्र है… मैं इससे बिल्कुल न्यारी-उपराम हूँ… जैसे कि शरीर है ही नहीं

मैं अकेली-निराकार हूँ… (visualise करने लिए) सब जगह घूम रही हूँ… सिर्फ़ आत्मा-रूप में

कोई से आदान-प्रदान नहीं… बिल्कुल अन्तर्मुखी… अव्यक्त स्थिति में स्थित हूँ

स्थूल चीज़ें… और स्थूलता से परे… बिल्कुल आत्म-अभिमानीदिव्य-सतोगुणी… सतयुगी हूँ… ओम् शान्ति!


और योग कमेंटरी:

Thanks for reading this article on ‘शरीर जैसे कि है ही नहीं’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *