योग कमेंटरी | मैं ट्रस्टी हूँ

योग कमेंटरी | मैं ट्रस्टी हूँ

मेरा तन-मन-धन सब बाबा का है… मैं सिर्फ आत्मा हूँ… बाबा की

सबकुछ उसकी अमानत है… उसमे ख्यानत नहीं करनी… सदा उसकी श्रीमत पर चलते रहना है

श्रीमत ही श्रेष्ठ बनाती… जिससे सभी खज़ाने (समय, श्वास, संकल्प) सफल होते… सर्वश्रेष्ठ भाग्य बनता

मैं निमित्त हूँ… करावनहार बाबा है… मेरा भाग्य है, जो मुझे अपनी श्रेष्ठ सेवा के लिए योग्य समझा

सदा बाबा का हाथ और साथ अनुभव कर… निश्चिंत, बेफिक्र हूँ… सदा सर्व प्राप्ति सम्पन्न बन… शान्ति, प्रेम, आनंद की अनुभुती में उड़ता रहता हूँ… ओम् शान्ति!


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Thanks for reading this meditation commentary on ‘मैं ट्रस्टी हूँ’

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