योग कमेंटरी | Creative Commentary on Rain

योग कमेंटरी | Creative Commentary on Rain

ऊपर परमधामसूक्ष्मवतन से… बाबा का प्यार बरस रहा है.. मैं सदा उनके प्यार में डूबा रहता

मेरा चित्त सूखा, एक बूंद का प्यासा था… अब सागर मिल गया है… उसमें ही डूबकी लगाता रहता

बाबा के प्यार में सदा रिफ्रेश… तरो-ताझा रहता… शान्ति प्रेम आनंद से सम्पन्न

इस बारिश में, मैं कांटे से फूलरूहें गुलाब बन गया हूँ… हीरे-समान

औरों को भी परमात्म प्यार के छींते बांट… गुणवान… सर्व प्राप्ति सम्पन्न बनाना है… ओम् शान्ति!

गीत: बरस रही है बाबा…


और योग कमेंटरी:

Thanks for reading this meditation commentary on ‘Rain’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *