योग कमेंटरी | मैं ताज-तख्त-तीलकधारी हूँ

योग कमेंटरी | मैं ताज-तख्त-तीलकधारी हूँ

बाबा ने मुझे… रूहानी अलौकिक… ताज-तख्त-तीलकधारी बना दिया है

मेरे मस्तक पर आत्मिक स्मृति का तिलक लगाकर… सदा सुहागिन… विजयी रत्न बना दिया है… मैं अकाल-तख्त-नशीन हूँ

बाबा ने अपने दिल-तख्त-नशीन बनाकर… मुझे स्वराज्य अधिकारी… सो विश्व राज्य अधिकारी बना दिया है

मुझ पवित्र आत्मा के… चारों ओर पवित्रता का आभामण्डल है… मैं लाइट का ताजधारी हूँ

विश्व कल्याण की जिम्मेदारी का ताज देकर… डबल ताजधारी बनाया है… अभी, सो सतयुग में

मैं दिव्य दर्शनीय मूर्त… साक्षात्कार मूर्त… बाबा की अति प्रिय आत्मा हूँ… ओम् शान्ति!


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Thanks for reading this meditation commentary on ‘मैं ताज-तख्त-तीलकधारी हूँ’

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